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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 160 से 162: सार्वजनिक उपद्रव की घटना में मजिस्ट्रेट को मिली शक्तियां

नियम-कानून

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 160 से 162 सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) पर रोक लगाने को लेकर मजिस्ट्रे़ट को मिली शक्तियों को बताती है. सार्वजनिक उपद्रव,पब्लिक प्लेस में हंगामा करना, हाथापाई या शांति व्यवस्था को भंग करना शामिल हैं. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता मजिस्ट्रेट को इन पर रोक लगाने की शक्ति देती है. 

Written by Satyam Kumar |Published : August 22, 2024 11:46 AM IST

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 160 से 162 सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) पर रोक लगाने को लेकर मजिस्ट्रे़ट को मिली शक्तियों को बताती है. सार्वजनिक उपद्रव,पब्लिक प्लेस में हंगामा करना, हाथापाई या शांति व्यवस्था को भंग करना शामिल हैं. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता मजिस्ट्रेट को इन पर रोक लगाने की शक्ति देती है.

भारतीय न्याय संहिता की धारा 270: सार्वजनिक उपद्रव करना अपराध

बीएनएस की धारा 270 सार्वजनिक उपद्रव को परिभाषित करती है, भारतीय न्याय संहिता के अनुसार, वह व्यक्ति सार्वजनिक उपद्रव का दोषी है जो कोई ऐसा कार्य करता है जिससे आम नागरिक या आस-पास के क्षेत्र में रहने वाले या संपत्ति पर कब्जा करने वाले सामान्य लोगों को कोई चोट, खतरा या परेशानी होती है. अनजाने में व्यक्ति के द्वारा सार्वजनिक उपद्रव के मामले में अधिकतम छह महीने जेल की सजा व जुर्माना का प्रावधान है. वहीं जानबूझकर सार्वजनिक उपद्रव के मामले में दो साल जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 160 से 162: सार्वजनिक उपद्रव के मामलों में मजिस्ट्रेट की शक्ति

बीएनएसएस की धारा 160 सार्वजनिक उपद्रव के आरोपी को मजिस्ट्रेट जारी करेगा, जो उस व्यक्ति पर बाध्य होगा.

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160. (1) जब धारा 155 या धारा 157 के अधीन कोई आदेश पूर्ण कर दिया गया हो, तो मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को इसकी सूचना देगा जिसके विरुद्ध आदेश दिया गया था, तथा उससे यह अपेक्षा करेगा कि वह आदेश द्वारा निर्देशित कार्य को सूचना में निर्धारित समय के भीतर पूरा करे, तथा उसे सूचित करेगा कि अवज्ञा की स्थिति में वह भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 223 द्वारा प्रदत्त दण्ड का भागी होगा.

(2) यदि ऐसा कार्य निर्धारित समय के भीतर पूरा नहीं किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट स्वयं उसे पूरा करवा सकता है, तथा उसके पूरा करने की लागत को, उसके आदेश द्वारा हटाए गए किसी भवन, माल या अन्य संपत्ति की बिक्री द्वारा, या मजिस्ट्रेट के स्थानीय क्षेत्राधिकार के भीतर या बाहर ऐसे व्यक्ति की किसी अन्य चल संपत्ति को जब्त करके और बेचकर वसूल कर सकता है, और यदि ऐसी अन्य संपत्ति ऐसे क्षेत्राधिकार के बाहर है, तो आदेश उस मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकित किए जाने पर उसकी कुर्की और बिक्री को प्राधिकृत करेगा, जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार के भीतर कुर्क की जाने वाली संपत्ति पाई जाती है.

(3) इस धारा के अधीन सद्भावपूर्वक की गई किसी बात के संबंध में कोई वाद नहीं लाया जा सकेगा.

जांच लंबित रहने तक निषेधाज्ञा

161. (1) यदि धारा 152 के अधीन आदेश देने वाला मजिस्ट्रेट यह समझता है कि आम नागरिक को खतरे या गंभीर प्रकार की चोट को रोकने के लिए तत्काल उपाय किए जाने चाहिए, तो वह उस व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा निषेधाज्ञा जारी कर सकता है, जिसके विरुद्ध आदेश दिया गया था, जो मामले के निर्धारण तक ऐसे खतरे या चोट को टालने या रोकने के लिए अपेक्षित है.

(2) यदि ऐसा व्यक्ति तत्काल ऐसे निषेधाज्ञा का पालन नहीं करता है, तो मजिस्ट्रेट ऐसे खतरे को टालने या ऐसी चोट को रोकने के लिए स्वयं ऐसे साधनों का प्रयोग कर सकता है या प्रयोग करवा सकता है, जिन्हें वह उचित समझे.

(3) इस धारा के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा सद्भावपूर्वक की गई किसी बात के संबंध में कोई वाद नहीं लाया जा सकेगा.

मजिस्ट्रेट सार्वजनिक उपद्रव की पुनरावृत्ति या जारी रखने पर रोक सकेगा

162. जिला मजिस्ट्रेट या उप-मंडल मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा इस संबंध में सशक्त कोई अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट या पुलिस उपायुक्त किसी व्यक्ति को भारतीय न्याय संहिता, 2023 या किसी विशेष या स्थानीय कानून में परिभाषित सार्वजनिक उपद्रव को दोहराने या जारी न रखने का आदेश दे सकता है.