नई दिल्ली: आज के समय में ज्यादातर लोगों के पास कोई न कोई वाहन तो होता ही है औ कई ऐसे मौके भी आते हैं जब शख्स को अपनी वाहन बेचनी पड़ती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी भी वाहन को बेचते समय उस वाहन को नए मालिक के नाम पर ट्रांसफर करवाया जाता है। इसका उद्देश्य यह है कि ट्रांसफ़र करने पर सरकार को ड्यूटी मिलती है और यह ड्यूटी राज्य सरकार के रेवेन्यू में शामिल होती है।
कई ऐसे भी मामले सामने आते हैं जहां वाहन को स्टैम्प के माध्यम से बेच दिया जाता है, ट्रांसफर की प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती है; बता दें कि ये गैर-कानूनी है और इससे सरकार के रेवेन्यू पर असर तो पड़ता ही है, वाहन के मूल मालिक को भी इसकी वजह से परेशानी झेलनी पड़ सकती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह अनिवार्य है कि एक वाहन बेचने के बाद मूल मालिक से नए मालिक के नाम पर वाहन का ट्रांसफर किया जाए। 'मोटर वाहन अधिनियम, 1988' (Motor Vehicles Act, 1988) की धारा 50 में यह स्पष्ट किया गया है कि जिस दिन पुराना वाहन बेचा गया है, उस दिन से अगले चौदह दिनों के भीतर, जिस शख्स ने वाहन को खरीदा है, उसे वाहन को अपने नाम पर ट्रांसफर करवा लेना चाहिए।
अगर वाहन का खरीदना-बेचना अलग-अलग राज्यों में हुआ है तो वाहन को अपने नाम पर दर्ज करवाने के लिए नए मालिक को 45 दिनों का समय दिया जाता है। स्टैम्प पर अगर कोई लेखापढ़ी की जाती है तो उसकी वैधता सिर्फ 14 दिन की होती है क्योंकि इस समय के अंदर वाहन की ओनरशिप को ट्रांसफर कर लेना चाहिए।
बता दें कि अगर वाहन के नए मालिक ने उसे अपने नाम पर ट्रांसफर नहीं करवाया है और बिकने के बाद भी गाड़ी मूल मालिक के ही नाम पर है तो इसके कई नुकसान हो सकते हैं। एक वाहन से अगर कोई अपराध होते हैं, या किसी गलत काम के लिए गाड़ी चला रहे नए मालिक को पकड़ा जाता है तो कार्रवाई मूल मालिक के नाम पर होगी, आरोपी भी वही माना जाएगा क्योंकि वाहन उसी के नाम पर रजिस्टर्ड है।
बिकी वाहन से अगर कोई सड़क दुर्घटना होती है तो उसकी जिम्मेदारी भी गाड़ी के मालिक पर ही आएगी, जो कागजी तौर पर मूल मालिक होगा क्योंकि स्वामित्व का ट्रांसफर नहीं हुआ होगा। एक सड़क दुर्घटना में तो तरह के प्रकरण बनते हैं- आपराधिक और सिविल। आपराधिक प्रकरण में सजा जुर्माना और जेल, दोनों हो सकते हैं और कई ऐसी परिस्थितियां होती हैं जब मुकदमा वाहन के मालिक पर भी हो जाता है।
सिविल प्रकरण का उल्लेख 'मोटर वाहन अधिनियम' की धारा 166 में किया गया है जिसके तहत पीड़ित पक्ष को मुआवजा देना पड़ता है; वाहन का बीमा नहीं हुआ है तो इसका भुगतान गाड़ी के मालिक को करना पड़ता है। यहाँ भी परेशानी मूल मालिक पर आ सकती है।
आपको बता दें कि अगर नया मालिक वाहन खरीदने के बाद निर्धारित समय में उसे अपने नाम पर ट्रांसफर नहीं करता है तो मूल मालिक का यह कर्तव्य है कि वो वाहन को ट्रांसफर करवाने के लिए नए मालिक को, रजिस्टर्ड डाक के जरिए एक सूचना पत्र भेजें और उसे जनद से जनद वाहन ट्रांसफर करने की चेतावनी दें।
ट्रांसफर न किये जाने पर वाहन का कब्जा वापस मांगना चाहिए, क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय को एक आवेदन पत्र भेजना चाहिए और उनसे अनुरोध करना चाहिए कि वो रेजिस्ट्रेशन को निरस्त कर दें। बता दें कि इन सब तरीकों से काम न बने तो आप अदालत में जाकर एक नए मालिक के खिलाफ आपराधिक और सिविल मुकदमा भी दर्ज कर सकते हैं।