नई दिल्ली: हर किसी की जान उनके लिए बेहद जरूरी होती है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21 of The Constitution of India) में 'जीने के अधिकार' (Right to Life) का उल्लेख किया गया है जिसके तहत देश के किसी भी नागरिक को जीने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा। इस अधिनियम में एक अपवाद भी है जो यह स्पष्ट करता है कि 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया' के अलावा इस अधिकार को हमेशा संरक्षित रखा जाएगा।
बता दें कि देश में कानून का पालन न करने पर, अलग-अलग मामलों और अपराधों के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है जिनमें सबसे बड़ी और गंभीर सजा मृत्युदंड (Death Penalty) है। मृत्युदंड क्या है, इसका निर्देश किन परिस्थितियों में दिया जाता है और अगर यह सजा किसी गर्भवती महिला को सुनाई जाती है तो क्या होता है? आइए जानते हैं.
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धारा 416 में स्पष्ट किया गया है कि अगर जिस महिला को मृत्युदंड दिया जाता है वो गर्भवती होती है तो क्या किया जाता है। इस धारा के तहत मृत्युदंड की सजा पाने वाली महिला अगर मां बनने वाली होती है तो उच्च न्यायालय सजा के निष्पादन को टाल देते हैं।
इतना ही नहीं, अगर उच्च न्यायालय को यह सही लगता है, तो वह गर्भवती महिला को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदल देते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 368 के तहत उच्च न्यायालयों को मृत्युदंड की सजा को कन्फर्म करने का अधिकार दिया जाता है। भारत में डेथ पेनल्टी सिर्फ सबसे गंभीर अपराध के लिए दी जाती है जो देश के 'सबसे दुर्लभ मामलों' (Rarest Cases) की श्रेणी में आते हैं।
'सबसे दुर्लभ मामलों' की श्रेणी में वो मामले आते हैं जो अदालत को सही लगते हैं। उच्चतम न्यायालय ने कुछ आदर्श स्थापित किए हैं जिनका ध्यान अदालत को मृत्युदंड की सजा सुनाते समय रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना है कि मृत्युदंड की सजा देनी है या नहीं, इसका फैसला करते समय कोर्ट को परिस्थितियों को बढ़ाने और कम करने (Aggravating and Mitigating Circumstances) की एक बैलेंस शीट तैयार करनी होगी।
इस बैलेंस शीट को तैयार करने के बाद 'मिटीगेटिंग सर्कम्स्टैंसेज' को ज्यादा अहमियत दी जानी चाहिए और इसके बाद भी अगर अदालत को लगता है कि उससे काम किसी भी सजा से न्याय नहीं हो सकेगा, मृत्युदंड दिया जाएगा।
'मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य' (Machhi Singh v. State of Punjab) मामले में अदालत ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों का पालन करने के लिए अदालत को आपस में यह सवाल पूछने होंगे कि क्या मामला एक ऐसे अपराध का है जो असाधारण है और जिसके लिए आजीवन कारावास भी उपयुक्त सजा नहीं है? यह भी पूछना होगा कि क्या 'मिटीगेटिंग सर्कम्स्टैंसेज' को सबसे ज्यादा अहमियत देने के बाद भी अपराध की परिस्थतियाँ ऐसी हैं कि मृत्युदंड के अलावा कोई विकल्प नहीं है?