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क्या है आर्टिकल 67? जिसके तहत विपक्षी दल उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कर रहें तैयारी

संविधान की धारा 67 बी के अनुसार,उपराष्ट्रपति को परिषद के सदस्यों के बहुमत संख्या से हटाया जा सकता है, जिसे लोक सभा द्वारा सहमति दी जानी चाहिए. इसके लिए उपराष्ट्रपति को प्रस्तावित हटाने के लिए कम से कम चौदह दिनों का पूर्व नोटिस देना आवश्यक है.

Written by Satyam Kumar |Updated : December 11, 2024 6:16 PM IST

शीतकालीन सत्र में जहां एक ओर नए विधेयकों को लाने की चर्चा हो रही है, तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष राज्यसभा के सभापति व भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं. इसके लिए आज विपक्ष के करीब 60 सदस्यों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है. उपराष्ट्रपति के खिलाफ विश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 14 दिन पहले नोटिस देने का प्रावधान है. हालांकि, ऐसा पहली बार हो रहा है कि राज्यसभा के सभापति को हटाने के लिए विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव ला रही है. बता दें कि भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं और उन्हें उपराष्ट्रपति के पद से हटाने के तरीके से ही राज्यसभा के सभापति पद से हटाने की मांग की जा सकती है. संविधान की आर्टिकल 67(बी), उपराष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया का जिक्र करती है.

आर्टिकल 67 (बी): उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव

संविधान की आर्टिकल 67 बी में उपराष्ट्रति को पदच्युत करने की प्रक्रिया का जिक्र है. आर्टिकल 67 बी के अनुसार उपराष्ट्रपति खुद से अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप सकते हैं. संविधान की धारा 67 बी के अनुसार,उपराष्ट्रपति को परिषद के सदस्यों के बहुमत संख्या से हटाया जा सकता है, जिसे लोक सभा द्वारा सहमति दी जानी चाहिए. इसके लिए उपराष्ट्रपति को प्रस्तावित हटाने के लिए कम से कम चौदह दिनों का पूर्व नोटिस देना आवश्यक है. बता दें कि सामान्य तौर पर उपराष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने पर भी, वे अपने प्रीसीडर के कार्यालय में प्रवेश करने तक अपने पद पर बने रहेंगे.

विपक्ष को बोलने का मौका नहीं दिया गया: कांग्रेस अध्यक्ष

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि राज्यसभा के सभापति सत्ता पक्ष के लोगों को विपक्ष के खिलाफ बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. जब हमने नियम-267 के तहत बोलने की अनुमति मांगी तो उन्होंने हमें नहीं बोलने दिया. जब सत्ता पक्ष के लोगों ने नियम-267 के तहत बोलने की अनुमति मांगी तो उनके सदस्यों को बोलने का मौका दिया गया. अविश्वास प्रस्ताव हमारा व्यक्तिगत मसला नहीं, बल्कि, देश के संविधान और संसदीय लोकतंत्र को बचाने का प्रयास है. हमने देश के संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए मजबूरी में यह कदम उठाया है.

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