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राष्ट्रपति को जबावदेह बनाना... उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जताई नाराजगी

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा कि जब सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, तो वह संसद और चुनावों में जनता के प्रति जवाबदेह होती है, न्यायालय को ऐसी कोई जवाबदेही नहीं है.

Vice President Jagdeep Dhankhar

Written by Satyam Kumar |Published : April 17, 2025 7:21 PM IST

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के हाल ही के फैसले से आपत्ति जताई जिसमें राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय की गई. राज्‍यसभा के इंटर्न्स को संबोधित करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा कि यह फैसला लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ न्यायपालिका को अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है और संविधान के अनुच्छेद 142 को 'परमाणु मिसाइल' (Nuclear Missle) की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि इस फैसले से राष्ट्रपति को निर्देशित किया जा रहा है और यह देश के लिए चिंताजनक है. उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद 145(3) पर सवाल उठाया, जिसमें कहा गया है कि महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दों पर कम से कम पाँच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए, लेकिन राष्ट्रपति से संबंधित फैसला दो न्यायाधीशों की पीठ ने दिया था.

संविधान पीठ की न्यूनतम संख्या बढ़ाने की जरूरत: जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति ने हेड ऑफ स्टेट यानि राष्ट्रपति को जबावदारी तय करने को लेकर चिंता जाहिर की. उपराष्ट्रपति ने कहा कि हालिया निर्णय के अनुसार राष्ट्रपति को एक निर्देश दिया गया है. हम किस दिशा में जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जा रहा है, और यदि ऐसा नहीं होता है, तो वह विधेयक, कानून बन जाएगा है.उपराष्ट्रपति ने कहा कि अनुच्छेद 142, जो सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण शक्तियां प्रदान करता है, का उपयोग लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ किया जा सकता है. उन्होंने तर्क दिया कि यह न्यायपालिका को असीमित शक्ति प्रदान करता है और कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियों का अतिक्रमण करता है.

उपराष्ट्रपति ने कहा,

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"हम ऐसी स्थिति नहीं रख सकते जहां आप राष्ट्रपति को निर्देशित करते हैं और किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास केवल अधिकार है कि आप संविधान की व्याख्या करें."

धनखड़ ने आगे कहा कि इस स्थिति में जज विधायिका का कार्य करेंगे, कार्यकारी कार्य करेंगे, और सुपर-पार्लियामेंट के रूप में कार्य करेंगे. उपराष्ट्रपति ने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा कि जब सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, तो वह संसद और चुनावों में जनता के प्रति जवाबदेह होती है, न्यायालय को ऐसी कोई जवाबदेही नहीं है. न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका शासन होने पर जवाबदेही का सवाल उठता है. उन्होंने कहा कि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका तीनों संस्थाओं को एक-दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप किए बिना काम करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि जब पांच न्यायाधीशों की अनिवार्यता निर्धारित की गई थी, तब सुप्रीम कोर्ट की जजों का संख्या आठ थी. अब जब सुप्रीम कोर्ट की शक्ति 34 हो गई है, तो आर्टिकल 145(3) में संशोधन की आवश्यकता है ताकि संविधान पीठ में न्यूनतम न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई जा सके.

FIR का इंतजार पूरा देश कर रहा: जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति ने कहा कि जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने के हालिया विवाद का उल्लेख करते हुए न्यायपालिका की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाए और कहा कि इस मामले में अभी तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है. ज्यूडिशियरी खुद ही जांच भी कर रही है.

उपराष्ट्रपति ने सवाल किया कि क्या यह देरी समझने योग्य या सहनीय है. उन्होंने कहा कि यह सामान्य स्थिति में कानून के शासन को परिभाषित करती है. उन्होंने यह भी कहा कि 21 मार्च को एक समाचार पत्र द्वारा इस घटना का खुलासा किया गया, जिससे देश के लोग चकित रह गए. उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब राष्ट्र एक सांस रोककर इंतजार कर रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि इस घटना पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है और न्यायाधीशों के पैनल द्वारा की जा रही जांच ने अपने निष्कर्ष नहीं बताए हैं. उपराष्ट्रपति ने यह भी बताया कि कई न्यायाधीशों ने अपनी संपत्तियों की घोषणा नहीं की है. उन्होंने न्यायालय के कामकाज पर सवाल उठाते हुए कहा कि जांच का कार्य न्यायपालिका का नहीं होना चाहिए.