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2018 के बाद से 77% जनरल केटेगरी से जजों की नियुक्ति हुई, हायर ज्यूडिशियरी में पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व पर सरकार ने रखा आंकड़ा

राज्यसभा में सरकार ने बताया कि 2018 से नियुक्त 715 हाई कोर्ट जजों में से 22 एससी, 16 एसटी, 89 ओबीसी और 37 अल्पसंख्यक केटेगरी से हैं.

केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल

Written by Satyam Kumar |Published : March 26, 2025 7:36 PM IST

हायर ज्यूडिशियरी में समाजिक विविधता को बरकरार रखने को लेकर सरकार से सवाल किया गया. राजद की राज्यसभा सांसद मनोज कुमार ने सरकार से पूछा कि क्या उन्हें ज्यूडिशियरी में पिछड़े वर्गों की घटते प्रतिनिधित्व की जानकारी है? अगर हां तो सरकार इससे निपटने के लिए क्या कदम उठा रही है. राज्यसभा सांसद ने दावा किया कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिलाओं और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व वांछित स्तर से बहुत कम है, इस बारे में सरकार को जानकारी है. अगर सरकार को इस बारे में कोई जानकारी है, तो इसे दूर करने के लिए क्या कर रही है. इस जबाव में सरकार ने एक आंकड़ा रखा है. 2018 के बाद से नियुक्त हाई कोर्ट में 715 जज नियुक्त किए गए हैं, जिसमें से 164 जज,अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग से हैं. अगर हम कुल 715 जजों में से 164 को घटाएं तो हाई कोर्ट में 551 जजों की नियुक्ति जनरल केटेगरी से हुई है, जो कि लगभग 77.62 प्रतिशत के करीब है. आइये जानते हैं पूरा मामला...

हायर ज्यूडिशियरी में समाजिक विविधता

राजद के राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने सरकार से ज्यूडिशियरी में प्रतिनिधित्व को लेकर सवाल किया है. संसद में पूछे गए प्रश्न में हायर ज्यूजिशियरी (हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट) में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की कमी पर चिंता व्यक्त की गई है.

  • क्या सरकार हायर ज्यूडिशियरी में मार्जिनलाइज्ड सोसाइटी के जजों की नियुक्ति में गिरावट की प्रवृत्ति से अवगत है और अगर हां, तो इसके कारण क्या हैं.
  • सरकार से यह भी पूछा गया है कि क्या उसने सामाजिक विविधता को शामिल करते हुए कार्यप्रणाली ज्ञापन (MoP) के अंतिम रूप से सर्वोच्च न्यायालय का अनुरोध किया है और इसकी क्या स्थिति है.
  • न्यायिक नियुक्तियों में हाशिये पर स्थित वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा कदम उठाए जा रहे हैं. इस प्रश्न में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और उच्च न्यायपालिका में विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधित्व के आंकड़ों का विवरण मांगा गया है.

सरकार ने दिया जबाव

20 मार्च के दिन सरकार की ओर से केन्द्रीय कानून मंत्री ने इस सवाल का जबाव दिया. केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 224 सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को निर्धारित करते हैं. इन अनुच्छेदों में किसी भी जाति या वर्ग के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. इसलिए, हाई कोर्ट के जजों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व से संबंधित आंकड़े केंद्रीय स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं. बताते चलें कि संविधान के अनुच्छेद 124 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना, गठन से जुड़ा है. अनुच्छेद 217 में हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया का प्रावधान है और अनुच्छेद 224, एडिशनल जजों की नियुक्ति के पहलुओं को निर्देशित करता है.

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केन्द्रीय मंत्री ने आगे बताते हुए कहा कि 2018 से, हाई कोर्ट के जजों के पद के लिए सिफारिश किए गए उम्मीदवारों को एक निर्धारित प्रारूप में अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि का विवरण देना आवश्यक है. यह विवरण सर्वोच्च न्यायालय के परामर्श से तैयार किया गया है. इसके अनुसार, 2018 से नियुक्त 715 हाई कोर्ट के न्यायाधीशों में से 22 अनुसूचित जाति, 16 अनुसूचित जनजाति, 89 अन्य पिछड़ा वर्ग और 37 अल्पसंख्यक समुदाय से हैं.

जबाव में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की सिफारिश भारत के मुख्य न्यायाधीश करते हैं, जबकि हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शुरू करते हैं. वहीं, सरकार लगातार हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध करती रही है कि जजों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों पर समुचित विचार किया जाए ताकि हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता सुनिश्चित हो सके. वहीं, नियुक्ति को लेकर सरकार ने कहा कि वे न्यायपालिका से आए सिफारिशों पर अपनी सहमति व्यक्त करती है.