नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने गुरुवार को 1996 के लाजपत नगर विस्फोट मामले (1996 Lajpat Nagar Bomb Blast) में चार दोषियों को बिना किसी छूट के शेष जीवन के लिए आजीवन कारावास (Life Imprisonment without Remission) की सजा सुनाई।
21 मई, 1996 की शाम को दिल्ली के लाजपत नगर सेंट्रल मार्केट में हुए विस्फोटों में 13 लोगों की मौत हो गई थी और 38 घायल हो गए थे।
न्यायमूर्ति बी आर गवई (Justice BR Gavai), विक्रम नाथ (Justice Vikram Nath) और संजय करोल (Justice Sanjay Karol) की पीठ ने अपने फैसले में कहा, "अपराध की गंभीरता को देखते हुए, जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष व्यक्तियों की मौत हुई और प्रत्येक आरोपी व्यक्ति द्वारा निभाई गई भूमिका को देखते हुए, इन सभी आरोपी व्यक्तियों को बिना छूट के आजीवन कारावास की सजा दी जाती है, जिसे स्वाभाविक जीवन तक बढ़ाया जा सकता है।"
दोषियों की पहचान मोहम्मद नौशाद, मिर्जा निसार हुसैन उर्फ नाजा, मोहम्मद अली भट्ट उर्फ किल्ली और जावेद अहमद के रूप में हुई।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में आता है, लेकिन कुल मिलाकर 27 साल और ट्रायल कोर्ट में 14 साल की देरी को देखते हुए दोषियों को मौत की सजा नहीं दी गई। इसने एक दशक से अधिक समय के बाद धीमी गति से जांच होने पर चिंता जताई।
इसमें कहा गया, “देरी, चाहे किसी भी कारण से हो, चाहे प्रभारी न्यायाधीश या अभियोजन पक्ष के कारण हो, निश्चित रूप से राष्ट्रीय हित से समझौता किया गया है।” अदालत ने ऐसे मामलों की शीघ्र सुनवाई के महत्व पर भी प्रकाश डाला, खासकर जब यह राष्ट्रीय सुरक्षा और आम आदमी से संबंधित हो।
पीठ ने कहा, “राजधानी शहर के बीचोबीच एक प्रमुख बाज़ार पर हमला किया गया… बड़ी निराशा के साथ हम यह देखने के लिए मजबूर हैं कि शायद प्रभावशाली व्यक्तियों की संलिप्तता के कारण कई आरोपी व्यक्तियों में से केवल कुछ पर ही मुकदमा चलाया गया है, जो तथ्य से स्पष्ट है।”