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सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या रिफ्यूजी और शरणार्थियों को हिरासत में रखने के मामले में दायर याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court ने भारत में अनिश्चित काल तक हिरासत में रखे गए Rohingyaa's Refugees की रिहाई की मांग वाली PIL पर केंद्र से जवाब मांगा है. याचिका में महिलाओं और बच्चों सहित रोहिंग्या शरणार्थियों को विभिन्न हिरासत केंद्रों, किशोर गृहों और कल्याण केंद्रों में हिरासत में रखे जाने को चुनौती दी गई है. अदालत ने केंद्र को 12 अगस्त तक जवाब देने का निर्देश दिया है. याचिका में राज्यविहीन बंदियों के लिए पहचान दस्तावेजों के प्रावधान की भी मांग की गई है.

Written by My Lord Team |Updated : August 16, 2024 3:46 PM IST

Supreme Court Seeks  Centre's Response On Rohingya's Refugees: सुप्रीम कोर्ट ने देश में अनिश्चितकालीन हिरासत में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों और शरणार्थियों की रिहाई की मांग वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को 12 अगस्त तक जवाब देने को कहा है. जनहित याचिका में भारत में युवा महिलाओं और बच्चों सहित रोहिंग्या शरणार्थियों और शरणार्थियों को अनिश्चितकालीन हिरासत में रखने को चुनौती दी गई है और कहा गया है कि यह कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं का उल्लंघन है.

रोहिग्यां रिफ्यूजी को हिरासत में रखने पर केन्द्र से जवाब की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं, ने केंद्र और अन्य से याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा.  याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह प्रतिवादियों को निर्देश दे कि वे विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम (भारत में प्रवेश), 1929 के तहत दो साल से अधिक समय से हिरासत में रखे गए रोहिंग्या बंदियों को किसी भी उचित प्रतिबंध के अधीन रिहा करें.

रोहिंग्या के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों के सम्मान और मानवीय व्यवहार के अधिकार के लिए एक मामला" जिसमें उन्होंने भारत में विभिन्न हिरासत केंद्रों, किशोर गृहों और कल्याण केंद्रों में हिरासत में लिए गए रोहिंग्याओं के मामलों का दस्तावेजीकरण किया है. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे अपनी रिपोर्ट में इस बात के सबूत मिले हैं कि हिरासत में लिए गए रोहिंग्याओं को कभी कोई नोटिस नहीं दिया गया या उन्हें शरणार्थी के रूप में अपना मामला पेश करने का अवसर नहीं दिया गया.

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याचिकाकर्ता ने केंद्र को निर्देश देने की मांग की कि वह भारत भर में उन सभी रोहिंग्याओं के नाम, लिंग और आयु प्रदान करे, जिन्हें पासपोर्ट अधिनियम 1929 और विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत अनिश्चित काल के लिए हिरासत में लिया गया है, साथ ही उनके हिरासत आदेश, निर्वासन के संबंध में म्यांमार के दूतावास के साथ अंतिम संचार, व्यक्तिगत डेटा/मूल्यांकन फॉर्म और न्याय के हित में 20 मार्च 2019 के एसओपी के अनुसार शरणार्थी की स्थिति की अस्वीकृति के अंतिम आदेश। इसके अलावा, याचिका में शीर्ष अदालत से प्रतिवादियों को न्याय के हित में पासपोर्ट नियम, 1980 (अनुसूची II, भाग II) के प्रावधानों के अनुसार राज्यविहीन बंदियों को पहचान दस्तावेज जारी करने का निर्देश देने का भी आग्रह किया गया। याचिका में प्रतिवादियों को निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वे 20 मार्च, 2019 की मानक संचालन प्रक्रिया, 2019 के अनुसार तीन महीने के भीतर बंदियों की शरणार्थी स्थिति के दावे का आकलन करें और न्याय के हित में या तो रोहिंग्याओं को दीर्घकालिक वीजा प्रदान करें या मानक संचालन प्रक्रिया, 2019 के अनुसार निर्धारित समय सीमा के भीतर उनके तीसरे देश में पुनर्वास की व्यवस्था करें.