सोमवार यानि की आज सुप्रीम कोर्ट बिहार सरकार की 65% आरक्षण पर रोक लगाने के फैसले को चुनौती वाली याचिका पर सुनवाई की मंजूरी दे दी है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया है. पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के 65% आरक्षण के फैसले रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की अपील याचिका पर किसी अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के सामने बिहार राज्य की अपील पर सुनवाई के लिए लाया गया. पीठ के सामने बिहार सरकार की ओर सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान मौजूद रहें. उन्होंने शीर्ष अदालत से अनुरोध किया कि छत्तीसगढ़ के ऐसे ही मामले में इस अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाई थी. सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ जिसमें जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल हैं, उन्होंने पटना हाईकोर्ट के फैसले पर किसी तरह का रोक लगाने से इंकार कर दिया है.
पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस हरीश कुमार की डिवीजन बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. अदालत ने पदों की रिक्तियों में आरक्षण कानून को खारिज किया है.
पटना हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य विधानमंडल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले से व्याख्या की गई संवैधानिक योजना पर फिर से कानून बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. इंद्रा साहनी और अन्य मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि 50% से अधिक आरक्षण समानता के संवैधानिक मानदंड का उल्लंघन होगा.
बिहार सरकार ने साल 2023 में भर्ती और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को लेकर ये संशोधन किए थे.
बता दें कि पटना हाईकोर्ट का ये फैसला विभिन्न व्यक्तियों और संगठनों द्वारा नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार द्वारा लाए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया है. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% की सीमा से अधिक आरक्षण बढ़ाना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है.