हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि स्थायी गुजारा भत्ता (Permanent Alimony) ऐसा होना चाहिए जिससे पत्नी को सम्मानजनक जीवन मिल जाएं और यह राशि पति के लिए भी कष्टकारी नहीं हो. तलाक को मंजूरी देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पति को पांच करोड़ रूपये पत्नी को एकमुश्त गुजारा भत्ता के तौर पर देने को कहा है. वहीं बच्चे की देखभाल के लिए एक करोड़ रूपये की राशि तय की है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस प्रसन्ना वी वराले और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस केस में पति पत्नी शादी के बाद सिर्फ पांच- छह साल साथ रहे हैं. करीब 20 साल से वो अलग रह रहे है. जब वो साथ रहे, तब भी उनके आपसी रिश्ते सही नहीं रहे. दोनों ने एक दूसरे पर गम्भीर आरोप लगाए है, अब उनके बीच रिश्तों में सुधार की कोई गुजाइश नहीं है. इसलिए कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए दोनों पक्षों की मंजूरी से शादी खत्म करने की इजाजत दे दी.
कोर्ट ने कहा,
"एकमुश्त गुजारे भत्ता राशि इस तरह से तय की जानी चाहिए कि पति को दंडित न किया जाए बल्कि इसके जरिये पत्नी के लिए सभ्य जीवन स्तर सुनिश्चित हो."
हालांकि कोर्ट ने कहा कि इस केस में पति दुबई में एक बैंक के CEO के रूप में काम कर रहा है और उसका वेतन लगभग 10 से 12 लाख रुपये प्रति माह है. वही पत्नी बेरोजगार है. इसलिए एक मुश्त राशि के रूप में 5 करोड़ की राशि देना सही रहेगा.
इस केस में भले ही बेटा वयस्क हो गया हो और इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर चुका हो लेकिन तब भी उसकी देखभाल की जिम्मेदारी पिता की बनती है . आज के प्रतिस्पर्धी वक़्त में इंजीनियरिंग की डिग्री रोजगार की गांरटी नहीं है. ऐसे में बेटे के लिए अलग से 1 करोड़ की रकम की व्यवस्था करना बेहतर होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने अधीनस्थ सभी अदालतों को निर्देश देते हुए कहा कि वे इस आधार पर एकमुश्त गुजारा भत्ता की राशि तय करें.
सुप्रीम कोर्ट ने एकमुश्त गुजारा भत्ता की राशि तय करने में इन बातों को ध्यान में रखने को कहा है.