नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) ने कुछ समय पहले ही आधिकारिक तौर पर यह ऐलान किया है कि सीनियर ऐडवोकेट (Senior Advocate) को जिन मानदंडों पर नामित किया जाता है, उनमें उनके पांच साल तक के मामलों और फैसलों को कन्सिडर नहीं किया जाएगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (Supreme Court Bar Association) के अनुरोध पर उच्चतम न्यायालय ने ऐलान कर दिया है सीनियर ऐडवोकेट को नामित करते समय उनके पुराने मुकदमों पर विचार करते समय पांच साल की समय सीमा को हटा रहे हैं।
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सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की कार्यकारी समिति (Executive Committee) के सदस्यों ने देश के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) से मुलाकात की थी। समिति के सदस्यों ने सीजेआई से अनुरोध किया था कि वो सीनियर ऐडवोकेट के नामांकन के मानदंडों में निर्णयों पर विचार करने की पांच साल की जो सीमा है, उसे हटा दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जारी हुआ आधिकारिक नोटिस
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति के सदस्यों के अनुरोध को मानते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने पांच साल की लिमिट हटाने के लिए हां किया और इस बारे में एक आधिकारिक नोटिस भी जारी किया गया।
यह नोटिस कहता है 'सक्षम प्राधिकारी ने उपरोक्त नोटिसों से जुड़े एनेक्जर-ए और एनेक्जर-ए1 में रिपोर्ट किए गए और असूचित निर्णयों की संख्या और प्रो बोनो/एमिकस क्यूरी कार्य से संबंधित परिवर्तनों का निर्देश दिया है। उपरोक्त के संदर्भ में, रिपोर्ट किए गए और गैर-रिपोर्ट किए गए निर्णयों और प्रो बोनो/एमिकस क्यूरी कार्य के संबंध में उपरोक्त नोटिस से जुड़े एनेक्जर-ए और एनेक्जर-ए 1 में दिखाई देने वाले शब्द "5 वर्ष" हटा दिए जाएंगे।'
सर्वोच्च न्यायालय ने 17 जुलाई को जारी किये थे ये दिशानिर्दश
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 17 जुलाई, 2023 को ही उच्चतम न्यायालय ने सीनियर ऐडवोकेट के डेजिग्नेशन हेतु मानदंडों को संशोधित कर, नए दिशानिर्देश प्रकाशित किये थे। ये दिशानिर्देश 'इंदिरा जयसिंह बनाम भारत के सुप्रीम कोर्ट' के फैसले के अनुसार दिए गए थे।
इन नए दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रत्याशी को अपने आवेदन पत्र में यह स्पष्ट करना था कि पिछले पांच साल में उनके ऐसे कौन से रिपोर्ट किये गए और गैर-रिपोर्ट किये गए मामले हैं जिनमें वो मुख्य बहस करने वाले वकील या सहायक वकील के रूप में अदालत में प्रस्तुत हुए हैं। प्रो बोनो/एमिकस क्यूरी मामलों के लिए भी पांच साल की समय सीमा थी।