इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बच्चों के साथ यौन-शोषण से जुड़े मामले पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. उच्च न्यायालय ने पॉक्सो के तहत दर्ज हुए मुकदमे में पीड़ित और आरोपी के बीच समझौते होने के आधार पर समाप्त नहीं होगा. अदालत ने कहा, अगर मुकदमा दर्ज करने के दौरान अभियोक्त्री-पीड़ित की सहमति नहीं होती है, तो इसे मुकदमे के दौरान कहीं पर लागू नहीं किया जाएगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट में आपसी समझौते को लागू करने से इंकार किया है. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट एक याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें आरोपी द्वारा उसके खिलाफ कोर्ट के संज्ञान, समन और आईपीसी के सेक्शन 376, 313 के साथ-साथ पॉक्सो के तहत दर्ज मुकदमे पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस समित गोपाल की एकल बेंच ने इस मामले को सुना. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया, पॉक्सो के मुकदमे को समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है.
जस्टिस ने कहा,
“केवल इसलिए कि नाबालिग पीड़िता बाद में आवेदक के साथ समझौता करने के लिए तैयार हो गया है, कार्यवाही को रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.”
जस्टिस ने आगे कहा,
“चूंकि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम), 2012 एक विशेष अधिनियम है, इसलिए, आईपीसी की धारा 375 के मद्देनजर, पीड़िता की सहमति महत्वपूर्ण है.”
आईपीसी के सेक्शन 375, बलात्कार को परिभाषित करता है. अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि पॉक्सो के मामले में नाबालिग पीड़िता के साथ आरोपी के समझौते को रद्द नहीं किया जा सकता हैं.
जस्टिस ने कहा,
“यह न्यायालय की सुविचारित राय है कि POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 3/4 के तहत हुए अपराधों को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि पीड़िता ने आरोपी के साथ मामले में समझौता कर लिया है."
याचिकाकर्ता- आरोपी ने इलाहाबद हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें अदालत द्वारा जारी समन, मुकदमे पर संज्ञान लेने के फैसले और अपने खिलाफ कार्रवाही पर रोक लगाने की मांग की थी. आरोपी के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 376 (बलात्कार), 313 (गैर-सहमति से गर्भपात) और पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. आरोपी ने इन सभी को खारिज करने की मांग की. अपने मांग में आरोपी ने दलील दिया कि, पीड़ित पक्ष समझौते के लिए राजी हो गया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग पीड़िता की सहमति को निराधार बताया है. साथ ही पॉक्सो एक्ट में दोनों पक्षों के बीच समझौते को स्वीकृति देने से इंकार किया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका को सुनने से मना किया है.