पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अपील (Appeal) को खारिज कर दिया है, जिसमें पति द्वारा अपनी पत्नी को साथ रखने की मांग की थी. अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि नाबालिग पत्नी को साथ रखने का दावा करने के लिए पति के पास कोई अंतर्निहित अधिकार (Inherent Rights) नहीं है.
जस्टिस पी बी बजंथरी और जस्टिस रमेश चंद मालवीय की बेंच ने एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी, उम्र 17 वर्ष से कम है, को अपने साथ रखने की मांग की थी. कोर्ट ने उसके इस मांग को खारिज (Dismissed) कर दिया.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, कि हमारा मानना है कि पति द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeous Corpus on illegeal detention) की रिट दायर कर पत्नी की मांग करने का कोई अंर्तनिहित अधिकार नहीं है. अपने फैसले में आगे कहा कि पत्नी, अगर एक नाबालिग (18 वर्ष से कम उम्र) है, और उसे माता-पिता के घर अपनी जान खोने का डर (Fear of Life) है, तो कोर्ट उसे बालिग होने तक महिलाओं के आश्रय घर (Shelter home for Women) भेज सकती है.
एक बच्ची, जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम हो, और उसे माता-पिता के घर अपने जान जाने का डर है, तो बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) के सामने प्रस्तुत कर जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 {Juvenile justice (Care and Protection of children) ACt, 2015} के अंतर्गत सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए. साथ ही किसी भी परिस्थिति में भी 18 वर्ष से कम उम्र की बच्ची को शारीरिक संबंध (Sexual Intercourse) बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.
याचिकाकर्ता की शादी एक 14 वर्ष की बच्ची से हुई थी, और बाद में उन्हें एक बच्चा हुआ. जिस पर आपत्ति जताते हुए बच्ची के माता-पिता ने याचिकाकर्ता पर केस कर दिया. और इस केस में अदालत ने बच्ची को महिलाओं के लिए बने आश्रय गृह में रखने का आदेश दिया.
हालांकि, नाबालिग बच्ची ने माता-पिता के घर जाने से इंकार कर दिया, और कोर्ट से अपने पति केस साथ ही रहने की इच्छा जाहिर की. वहीं मामले में पति (याचिकाकर्ता) ने कहा कि बच्ची ने उससे अपनी मर्जी से शादी की है, इसलिए उसे साथ रखने की इजाजत दी जाए.