बिहार पुलिस की एक महिला उपाधीक्षक (DSP) ने पटना हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें एक आईपीएस अधिकारी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था. महिला पुलिसकर्मी ने एक भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी पर शादी का झूठा वादा कर उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया था.
जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ सोमवार को डीएसपी की अपील पर सुनवाई कर सकती है. अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के जरिये दायर याचिका में कहा गया है कि 19 सितंबर, 2024 को पारित हाई कोर्ट का आदेश विकृत, किसी भी कानूनी गुण-दोष एवं तथ्यों से परे तथा स्थापित कानून के विपरीत है.
महिला अधिकारी की शिकायत पर 29 दिसंबर 2014 को आईपीएस अधिकारी पुष्कर आनंद और उनके माता-पिता के खिलाफ बिहार के कैमूर में महिला थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
आनंद के खिलाफ बलात्कार और आपराधिक धमकी जैसे गंभीर अपराधों सहित विभिन्न आरोप लगाए गए हैं, जबकि आईपीएस अधिकारी के माता-पिता के विरुद्ध अपराध के लिये उकसाने का मामला दर्ज किया गया है.
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि भभुआ में डीएसपी के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के दो दिन बाद, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक आनंद ने सोशल मीडिया के माध्यम से उनके प्रति मित्रतापूर्ण व्यवहार करना शुरू कर दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि आरोपी ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई और उन्होंने भी ऐसा ही किया और दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. महिला ने बताया कि उनकी कुंडली मेल नहीं खाने के कारण शादी हालांकि नहीं हो सकी.
याचिका में कहा गया कि उच्च न्यायालय यह समझने में विफल रहा कि अपराध के समय प्रतिवादी संख्या-दो (आरोपी आईपीएस अधिकारी) पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात था और याचिकाकर्ता उनके अधीनस्थ अधिकारी के रूप में तैनात थी और इस प्रकार, प्रतिवादी संख्या-दो के पास अपने अधीनस्थ अधिकारी यानी शिकायतकर्ता को प्रभावित करने के लिए इख्तियार और अधिकार मौजूद था तथा एक अधिकारी होने के नाते, उन्होंने अपराध किया. उन्होंने (आईपीएस अधिकारी ने) उससे शादी करने का आश्वासन भी दिया, जिससे बाद में आईपीएस अधिकारी ने अस्पष्ट कारणों का हवाला देकर इनकार कर दिया.
अदालत ने कहा था,
“यदि संबंध दोनों पक्षों के नियंत्रण से परे कारणों की वजह से ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, तो यह आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता है. इसलिए, याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करना पूरी तरह से अनुचित है.”
याचिका में कहा गया कि उच्च न्यायालय यह समझने में भी विफल रहा कि प्राथमिकी और आरोप-पत्र के मात्र अवलोकन से यह स्थापित हो जाएगा कि संबंधित अपराध किया गया है और प्राथमिकी में दिए गए कथन प्रथम दृष्टया अपराध किए जाने का खुलासा करते हैं. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि महिला काफी समय से आईपीएस अधिकारी के साथ रिश्ते में थी और स्वेच्छा से उसके साथ रही तथा शारीरिक संबंध बनाए.
अब सुप्रीम कोर्ट कल इस मामले पर सुनवाई करेगा.