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भगवद् गीता का श्लोक पढ़ 'जस्टिस' ने दो भाइयों के बीच जमीनी मुआवजे के विवाद को किया बंद, जानें पूरा मामला

साल 2004 में वह जमीन इंडस्ट्रियल कार्यों के लिए जमीन का अधिग्रहण हुआ. मुआवजे की राशि करीब 17 लाख 72 हजार रूपये तय हुई और सभी को पैसा भेजा गया. गलती पैसे भेजने के दरम्यान हुआ, अब जमीन अधिग्रहण का पैसा एक व्यक्ति को मिलने वाला मुआवजा दूसरे व्यक्ति को मिल गया. आइये जानते हैं कि उड़ीसा हाई कोर्ट ने क्यों इस मामले को रद्द किया...

उड़ीसा हाई कोर्ट (सांकेतिक चित्र)

Written by Satyam Kumar |Published : February 6, 2025 12:48 PM IST

Land Aquisition Compensation: उड़ीसा हाई कोर्ट के सामने जमीन मुआवजे से जुड़ा एक बेहद रोचक मामला आया, जिसमें एक व्यक्ति को मिलने वाला पैसा दूसरे व्यक्ति को चला गया. उसने पैसे वापस लौटा भी दिए, लेकिन उसके खिलाफ मुकदमा रद्द नहीं किया गया. हाई कोर्ट ने कहा कि गलती का अपराध का बोध होना भी सजा से मुक्ति राह है, भगवद गीता का ये श्लोक दोहराते हुए उड़ीसा हाई कोर्ट ने इस मामले को रद्द कर दिया. आइये जानते हैं पूरा मामला...

जमीन अधिग्रहण मुआवजे का मामला

साल 1979 से 1983 के बीच भ्रमरबर मोहंती नामक व्यक्ति ने अपने बेटे अरूण कुमार मोहंती के नाम पर दो जमीने खरीदी थी. साल 2004 में वह जमीन इंडस्ट्रियल कार्यों के लिए जमीन का अधिग्रहण हुआ. मुआवजे की राशि करीब 17 लाख 72 हजार रूपये तय हुई और सभी को पैसा भेजा गया. गलती पैसे भेजने के दरम्यान हुआ, अब जमीन अधिग्रहण का पैसा एक व्यक्ति को मिलने वाला मुआवजा दूसरे व्यक्ति को मिल गया. अधिग्रहण का पैसा ना पाकर पहले व्यक्ति ने जमीन अधिग्रहण ऑफिसर(LAO) के पास शिकायत दर्ज कराई. अधिकारी ने पैसे गए आदमी के नाम पर नोटिस जारी किया. व्यक्ति अधिकारी के सामने पेश होकर 'पैसे' लौटाने का वादा किया. उसने बताया कि उसे लगा कि पिता ने उसके नाम पर जमीन खरीदी होगी. हालांकि व्यक्ति ने पैसे लौटा दिया. चूंकि जमीन अधिग्रहण का पैसा सही आदमी को ना मिलने पर मुआवजा की राशि पाए व्यक्ति और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. ट्रायल कोर्ट ने फैसले को मामले को बरकार रखा.

भगवद गीता का श्लोक जिक्र कर HC ने रद्द किया मामला

उड़ीसा हाई कोर्ट में सिबो शंकर मिश्रा की पीठ ने मामले को रद्द करने का आदेश दिया. अदालत ने गौर किया कि व्यक्ति ने जमीन अधिग्रहण के नाम पर मिला पैसा, उसने वापस कर दिया और उस पैसे को रखने का उसका कोई इरादा नहीं था.

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जस्टिस ने कहा, 

"पैसे लौटाना, खासकर तब जब, वह गलती से या अनुचित तरीके से प्राप्त हुआ हो, नेक स्वभाव को दिखाता है. यह न केवल ईमानदारी, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी की भावना को भी दर्शाता है. कानूनी और नैतिक संदर्भ में, इस तरह की कार्रवाई विश्वास को मजबूत करती है और दिखाती है कि मामले में व्यक्ति का गलत लाभ उठाने का कोई इरादा नहीं है. भगवद गीता में भी कहा गया है, "अपराध बोध के बाद पश्चाताप और भक्ति से मुक्ति और शांति मिलती है."

हाई कोर्ट ने आऱोपी को राहत देते हुए मुकदमा रद्द करने का निर्देश दिया.