Abstaining Political Activities As Bail Conditions: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त जमानत से जुड़े मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा. जमानत की शर्तों में ‘किसी व्यक्ति को राजनैतिक गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाने के फैसले’ को शामिल नहीं किया जाना चाहिए. इससे उक्त व्यक्ति के मैलिक अधिकारों का उल्लंघन होता हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला ओडिशा हाईकोर्ट द्वारा लगाए जमानती शर्तों को रद्द करते हुए दिया, जिन जमानत की शर्त में राजनेता को राजनैतिक गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाया गया था. यह मामला सिबा शंकर दास बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य के बीच है. [Siba Shankar Das vs State of Odisha and another]
मामला एक नेता की जमानत शर्तो से जुड़ा है. शर्त .ये कि उसे राजनीतिक क्रियाकलापों में शामिल नहीं होना होगा. नेता ने ओडिशा हाईकोर्ट के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी. जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मामले को सुना. इस जमानती शर्त को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन पाया. परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा हाईकोर्ट के राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने पर रोक के जमानती शर्त को रद्द किया.
बेंच ने कहा,
"इस जमानती शर्त से अपीलकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई जा सकती है. इसलिए, हम उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई शर्त को संबंधित सीमा तक रद्द करते हैं."
मौलिक अधिकारों को चुनौती देना संवैधानिक प्रदत शक्तियों का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट को इन अधिकारों की रक्षा के लिए कस्टोडियन ऑफ कंस्टीट्यूशन भी कहा जाता हैं.
याचिकाकर्ता सिबा शंकर दास एक राजनेता है. वर्तमान में ओडिशा बीजेपी में हैं. पूर्व में बेरहामपुर के मेयर भी रहे हैं. बीजू जनता दल (बीजद) से भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के क्रम में नेता सिबा शंकर दास पर कई अपराधिक मुकदमे दर्ज कराए गए.
ओडिशा हाईकोर्ट ने इन मामलों में सिबा शंकर दास को राहत तो दी, किन्तु एक बड़े शर्त के साथ. शर्त ये था कि नेता को किसी भी राजनैतिक गतिविधियों से खुद को दूर रखना था. हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस जमानती शर्त को पलटते हुए राजनेता सिबा शंकर दास को राहत दी है.