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नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड: पुणे कोर्ट ने दो को दोषी ठहराया, तीन को बरी किया

आरोपी सचिन अंदुरे, शरद कालस्कर को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास और 5 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई. डॉ. वीरेंद्रसिंह तावड़े, विक्रम भावे और संजीव पुनालेकर को बरी कर दिया गया.

Written by arun chaubey |Published : May 10, 2024 1:20 PM IST

पुणे की एक अदालत ने आज तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में दो आरोपियों को दोषी ठहराया और तीन को बरी कर दिया. आरोपी सचिन अंदुरे, शरद कालस्कर को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास और 5 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई. डॉ. वीरेंद्रसिंह तावड़े, विक्रम भावे और संजीव पुनालेकर को बरी कर दिया गया. सत्र न्यायाधीश पीपी जाधव ने करीब तीन साल तक चली सुनवाई के बाद आज फैसला सुनाया.

हालांकि, सत्र मामला 2016 में शुरू किया गया था, लेकिन मुकदमा 2021 में ही शुरू हुआ था. महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (एमएएनएस) के संस्थापक दाभोलकर की 2013 में पुणे में सुबह की सैर के दौरान दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

सनातन संस्था संगठन से जुड़े आरोपियों को 2016 से 2019 तक केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने गिरफ्तार किया था. सीबीआई ने 2014 में पुणे सिटी पुलिस से मामले को अपने हाथ में लिया और मामले में 5 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया. चार आरोपियों डॉ. वीरेंद्रसिंह तावड़े, सचिन अंदुरे, शरद कालस्कर और विक्रम भावे पर आपराधिक साजिश रचने और हत्या को अंजाम देने के लिए धारा 302 के साथ धारा 120बी के तहत आरोप लगाए गए.

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इसके अलावा उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य) और शस्त्र अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए। मुंबई के एक वकील संजीव पुनालेकर पर आईपीसी की धारा 201 के तहत सबूतों को गायब करने का आरोप लगाया गया था. तावड़े, अंदुरे और कलस्कर न्यायिक हिरासत में हैं, जबकि भावे और पुनालेकर जमानत पर बाहर हैं.

मामले में पुणे सत्र न्यायालय ने 15 सितंबर, 2021 को सभी पांचों आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे. न्यायालय ने पाया कि डॉ. दाभोलकर को खत्म करने की साजिश रची गई थी ताकि लोगों के मन में भय पैदा किया जा सके और कोई भी व्यक्ति 'अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति' के रूप में काम न करे. 2015 में, दाभोलकर की बेटी और बेटे ने एक स्वतंत्र विशेष जांच दल की नियुक्ति और अदालत द्वारा की गई जांच की निगरानी करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया. अगस्त 2015 से, उच्च न्यायालय ने जांच की निगरानी शुरू कर दी. दिसंबर 2022 में, तावड़े ने निगरानी बंद करने के लिए वर्तमान मामले में एक अंतरिम आवेदन के साथ न्यायालय का रुख किया. उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि हत्या के मामले में मुकदमा शुरू हो चुका है, इसलिए अब हाईकोर्ट मामले की निगरानी बंद कर सकता है.

इसके बाद एक अन्य आरोपी ने भी निगरानी बंद करने की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने कहा कि वह मामले की लगातार निगरानी नहीं कर सकता. जांच एजेंसी ने कोर्ट को यह भी बताया कि अगर मामले की सुनवाई में तेजी लाई जाए तो दो महीने में मुकदमा खत्म हो सकता है.

इन परिस्थितियों में, हाईकोर्ट ने जांच की आगे की निगरानी बंद करने का फैसला किया था.