केरल उच्च न्यायालय ने सोमवार को तीन नए लागू आपराधिक कानूनों के हिंदी नामों को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया है. याचिकाकर्ता ने दावा किया भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) गैर-हिंदी भाषियों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. वहीं केन्द्र के वकील दावा किया कि कानून हर भाषा में उपलब्ध है. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद केरल हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया.
केरल हाईकोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस ए. मुहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति एस. मनु की खंडपीठ ने एक अधिवक्ता द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें नए अपराधिक कानूनों के नाम को बदलने को लेकर निर्देश देने की मांग की गई थी.
इस साल 1 जुलाई से भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लागू किया गया.
याचिकाकर्ता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि कानूनों का हिंदी में नामकरण संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि कानूनों के सभी आधिकारिक पाठ अंग्रेजी में होने चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह हिंदी में होगा तो इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है, खासकर गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों के वकीलों और नागरिकों के लिए, जिससे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा, जो किसी भी पेशे को अपनाने के अधिकार की गारंटी देता है. याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि यह देश की भाषाई विविधता का भी उल्लंघन करता है. लेकिन केंद्र के वकील ने इसका विरोध किया और कहा कि स्क्रिप्ट और सामग्री सहित अधिनियम अंग्रेजी में हैं और प्रसार भारती अधिनियम और लोकपाल विधेयक के उदाहरण दिए जो हिंदी नाम हैं, और आगे विचार करने के बाद, इसने वकील की जनहित याचिका को खारिज कर दिया.