Religious Discrimination With Muslim Lawyers: हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायिक कदाचार (Judicial Misconduct) के मामले में एक जज के खिलाफ समन जारी किया है. जज के ऊपर पर मुस्लिम वकीलों से भेदभाव करने के आरोप लगे हैं. जज ने मुस्लिम वकीलों की जगह एक एमिकस क्यूरिए नियुक्त किया जो तय वकीलों के नमाज पढ़ने जाने पर सुनवाई को जारी रखेगा. हालांकि जज साहब ने वकीलों को इबादत करने जाने की इजाजत दे दी थी. जज के इसी फैसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जज साहब से जबाव मांगा है. बता दें कि जज साहब ने ये फैसला यूपी एटीएस (UP Anti Terrorist Squad) पर दो मुस्लिम मौलवियों के जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने के मामले में दिया है.
उच्च न्यायालय में जस्टिस शमीम अहमद की बेंच ने इस मामले को सुनवाई की. बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर रोक लगाया. साथ ही अदालत ने मामले में इलेक्ट्रानिक सबूतों को महत्व नहीं देने के मामले पर भी ट्रायल कोर्ट को फटकार लगाई है. हाईकोर्ट ने कहा इस रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट मामले की गंभीरता समझने में असफल रही है. साथ ही उच्च न्यायालय ने मामले की ट्रायल कोर्ट में आगे की सुनवाई पर भी रोक लगाया है.
उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के जज के उस विचार से भी आपत्ति जताई जिसमें 'शिकायतकर्ता की ओर से पेश काउंसिल के दूसरे धर्म से होने के कारण ट्रायल से अनुपस्थित रहें'
जज ने कहा,
"यह धर्म के आधार पर ट्रायल कोर्ट की ओर से स्पष्ट भेदभाव को दर्शाता है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 में निहित मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है."
उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा अमिकस क्युरिए रखे जाने के फैसले को संविधान निहित अधिकारों का उल्लंघन बताया है.
बेंच ने कहा,
“यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ट्रायल कोर्ट ने जो आदेश पारित किया था वे एक विशिष्ट संवैधानिक के अनुच्छेद 15 (1) की शर्तों के विपरीत है. ट्रायल कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप से केवल धर्म के आधार पर एक समुदाय के साथ भेदभाव किया है."
बेंच ने जज साहब के अपने कर्तव्यों की ओर ध्यान दिलाया.
बेंच ने कहा,
"एक जज को अपने न्यायिक कार्यों का निर्वहन तटस्थता के साथ निष्पक्ष होकर बौद्धिक ईमानदारी के साथ करना चाहिए. इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक जज को मामले का फैसला केवल रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों और मामले पर लागू कानून के आधार पर करना चाहिए. यदि कोई जज किसी मामले का फैसला किसी बाहरी, अन्य कारण से करता है तो वह कानून के अनुसार अपना कर्तव्य नहीं निभा रहा है.”
हाईकोर्ट ने जज साहब के खिलाफ समन जारी कर उनके फैसले को लेकर जबाव मांगा है. जज अदालत में हाजिर हुए, अपने फैसले के लिए माफी भी मांगी. बेंच ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से हलफनामे में ये बात देने के निर्देश दिए है. केस में अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी.