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FIR में नाम नहीं! बिना सोचे-समझे अदालत ने Police Custody में भेजा, GST Fraud Case में गुजरात हाईकोर्ट पहुंचे पत्रकार का दावा

पत्रकार महेश लंगा ने गुजरात हाईकोर्ट के सामने दावा किया कि अदालत ने बिना सोचे-समझे दस दिन का रिमांड आदेश पारित कर दिया. साथ ही जिस FIR के सिलसिले में लांगा को गिरफ्तार किया गया, उसमें उनका नाम नहीं है.

गुजरात हाइकोर्ट (फाइल फोटो)

Written by Satyam Kumar |Published : October 12, 2024 8:53 AM IST

गुजरात उच्च न्यायालय ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) धोखाधड़ी मामले में गिरफ्तार एक वरिष्ठ पत्रकार की उस याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की, जिसमें 10 दिन तक हिरासत में रखने के मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती दी गई है. अहमदाबाद अपराध शाखा ने धोखाधड़ी के मामले में एक प्रमुख समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार महेश लांगा को आठ अक्टूबर को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने पत्रकार पर शेल कंपनियों के सहारे टैक्स छूट लेने का आरोप लगाया है.

जिस FIR के लिए गिरफ्तार किया गया, उसमें नाम ही नहीं

गुजरात हाईकोर्ट में जस्टिस संदीप भट्ट की अदालत ने मामले की संक्षिप्त सुनवाई के बाद लांगा के वकील से अभियोजन पक्ष को याचिका की प्रतियां देने को कहा और मामले में आगे की सुनवाई को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया.

लांगा के वकील जल उनवाला ने मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि अदालत ने बिना सोचे-समझे आदेश पारित कर दिया. उनवाला ने उच्च न्यायालय के समक्ष यह भी कहा कि जिस प्राथमिकी के सिलसिले में लांगा को गिरफ्तार किया गया, उसमें उनका नाम नहीं था. वकील ने कहा कि ये एफआईआर (FIR) लगभग 220 मास्कड कंपनियां (Shell Companies) कर छूट लेने की कोशिश से जुड़ा है. इनमें एक डीए एंटरप्राइज’ है जिसे लेकर याची को गिरफ्तार किया गया है. जबकि याचिकाकर्ता की कथित कंपनी ‘डीए एंटरप्राइज’ के दो मालिक हैं और लांगा उनमें से एक नहीं है, जिसके दो साझेदार या मालिक हैं - एक मनोज और दूसरा कविताबेन. वकील ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार, इस मामले में अपराध की गंभीरता नहीं, बल्कि हिरासत की आवश्यकता प्रासंगिक होगी.

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क्या है मामला?

याचिकाकर्ता (पत्रकार) ने बताया कि 7 अक्टूबर को अहमदाबाद में अपराध शाखा के सहायक पुलिस आयुक्त के पास वरिष्ठ खुफिया अधिकारी, वस्तु और सेवा कर खुफिया निदेशालय (DGGI) द्वारा एक शिकायत दर्ज कराई गई. इस शिकायत में आरोप लगाया गया है कि 20 से अधिक फर्जी कंपनियां/संस्थाएं संगठित तरीके से फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठा रही है जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हो रहा है.

Ahmedabad के DCB पुलिस स्टेशन में 7 अक्टूबर को पत्रकार के खिलाफ FIR दर्ज की गई. 8 अक्टूबर को पुलिस ने महेश लंगा को गिरफ्तार किया. पुलिस ने IPC की विभिन्न धाराओं के तहत FIR दर्ज की, जिसमें धारा 420, 467, 468, 471, 474 और 120B शामिल हैं. आईपीसी की धारा 420 धोखाधड़ी और संपत्ति की डिलीवरी को धोखाधड़ी से प्रेरित करने से संबंधित है, धारा 467 मूल्यवान सुरक्षा, वसीयत आदि की जालसाजी से संबंधित है औक धारा 120B आपराधिक साजिश की सजा से संबंधित है.

याचिका के मुताबिक, लंगा को 7 अक्टूबर की सुबह 1 बजे से 9 अक्टूबर को 11:30 बजे तक पुलिस हिरासत में रखा गया. वहीं जब लंगा को अदालत के समक्ष पेश किया गया तो जांच अधिकारी (IO) ने 14 दिन की कस्टडी मांगी, लेकिन अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 10 दिन की रिमांड मंजूर की, जो 18 अक्टूबर तक चलेगी.

जांच अधिकारी ने आरोप लगाया कि लंगा ने 'DA Enterprise' का प्रबंधन किया, जो एक फर्जी फर्म 'ध्रुवी एंटरप्राइज' के साथ 236,74,533 रुपये के लेन-देन में शामिल थी. जांच अधिकारी ने कहा कि कि लंगा ने अपने भाई और पत्नी के नाम पर 'DA Enterprise' का प्रबंधन किया है. वहीं जब पुलिस को लंगा के घर से 20 लाख रुपये नकदी मिले, तो उस पैसे का वह सही-सही जवाब नहीं दे पाया.

याचिका में गुजरात हाईकोर्ट से 'डी ए एंटरप्राइज' से लंगा के संबंध को खारिज करने की मांग करते हुए कहा गया कि जांच अधिकारी ने लंगा के संबंध में कोई ठोस उदाहरण नहीं प्रस्तुत किया है. याचिका में आगे कहा गया है कि अदालत के आदेश में केवल जांच अधिकारी के आवेदन के आधार पर बातें दोहराई गई हैं. मजिस्ट्रेट की अदालत ने यह नहीं बताया कि मामले की डायरी के अध्ययन के बाद किस आधार पर 'Prima Facie' मामला स्थापित किया गया है.

हालांकि याचिकाकर्ता की बातों को सुनने के बाद अदालत ने मामले को सोमवार के लिए स्थगित किया है.