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मनुस्मृति फाड़ने के मामले में राजद प्रवक्ता प्रियंका भारती की बढ़ी मुश्किलें, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने FIR रद्द करने से किया इनकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि याची द्वारा राहत पाने के लिए दी गई दलीलें विश्वास करने योग्य नहीं हैं और मामला संज्ञेय अपराध का है, इसलिए एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती.

इलाहाबाद हाई कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : March 7, 2025 11:55 AM IST

राष्ट्रीय जनता दल की प्रवक्ता और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की पीएचडी शोधार्थी प्रियंका भारती को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राजद प्रवक्ता के खिलाफ दायर मुकदमे को रद्द करने से इंकार कर दिया है. राजद प्रवक्ता के खिलाफ यह मुकदमा दिसंबर 2024 में टीवी चैनल में बहस के दौरान मनुस्मृति फाड़ने को लेकर किया गया है. प्रियंका भारती ने एफआईआर को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता के खिलाफ अलीगढ़ के रोरावर थाने में बीएनएस की धारा 299 के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई है.

कोर्टरूम आर्गुमेंट

जस्टिस विवेक कुमार बिरला और जस्टिस अनिश कुमार गुप्ता की पीठ ने 28 फरवरी को दिए गए आदेश में कहा कि किसी विशेष धर्म की 'पवित्र पुस्तक' के पन्ने फाड़ने से यह साफ जाहिर होता है कि एक संज्ञानात्मक अपराध (Cognizable Offence) किया गया है. अदालत ने यह भी कहा कि यह तथ्य नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि भारती एक उच्च योग्य व्यक्ति हैं और वह एक राजनीतिक पार्टी की प्रवक्ता के रूप में इस बहस में भाग ले रही थीं.

याचिकाकर्ता प्रियंका भारती ने दावा किया कि धारा 299 बीएनएस के तहत कोई अपराध नहीं किया है. एक बहस के दौरान, मनुस्मृति के पन्ने फाड़ने के दावे को लेकर कहा कि यह जानबूझकर नहीं किया गया था या उनका किसी धर्म का अपमान करने का इरादा नहीं था. याचिकाकर्ता ने FIR रद्द करने पर जोड़ देते हुए कहा कि उनका जानबूझकर किसी व्यक्ति या धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था, साथ ही उनका कार्य सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित नहीं करता है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने FIR रद्द करने से इंकार करते हुए कहा कि याची द्वारा राहत पाने के लिए दी गई दलीलें विश्वास करने योग्य नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा मामला संज्ञेय अपराध का है, एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती.  सुनवाई के दौरान याची राजद प्रवक्ता ने दावा किया कि उससे ऐसा अज्ञानता वश हुआ है. हलांकि अज्ञानता वाली दलील मानने से इंकार किया, करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा याची एक राजनैतिक दल के प्रवक्ता होने के नाते अज्ञानता और भूल होने की दलील नहीं दे सकता.

अदालत ने कहा,

"हम पाते हैं कि 'मनुस्मृति' के पन्ने फाड़ने का कार्य एक लाइव टीवी बहस में किया गया, जो 'इंडिया टीवी' और 'TV9 भारतवर्ष' द्वारा आयोजित की गई थी, यह स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता की एक दुर्भावनापूर्ण और जानबूझकर की गई मंशा का प्रदर्शन है."

हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कार्य के लिए कोई कानूनी बहाना नहीं है.

क्या है बीएनएस की धरा 299?

भारतीय न्याय संहिता. 2023 की धारा 299 भारतीय दंड संहिता की धारा 295 -A की जगह पर आई है. ये धाराएं धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्यों से संबंधित हैं.

IPC की धारा 295-A के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करता है, तो उसे तीन साल तक की सजा या जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है. यह धारा उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो किसी भी धर्म का अपमान करने का प्रयास करते हैं.

बीएनएस की धारा 299 भी इसी संदर्भ में आती है, जिसमें कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से शब्दों, संकेतों या इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से अपमान करता है, तो उसे भी समान दंड का सामना करना पड़ेगा. यह धारा डिजिटल युग में भी धार्मिक संवेदनशीलता की सुरक्षा सुनिश्चित करती है.