दिल्ली हाई कोर्ट ने हत्या के मामले में FIR दर्ज नहीं करने के कारण पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जारी अनुशासनात्मक कार्रवाई में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है. हाई कोर्ट में उत्तरी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त (DCP) ने सेशन कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अधिकारियों के खिलाफ जांच बिठाने के आदेश दिए गए हैं. सेशन कोर्ट ने मर्डर से जुड़ी घटना में FIR दर्ज नहीं करने पर गृह मंत्रालय को नोटिस जारी कर संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं. वहीं, मामले की सुनवाई कर रहे स्पेशल जज ने यह आदेश दिया था कि पुलिस अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारियों का पालन नहीं किया. उन्होंने यह भी कहा कि 14 एंटी मॉर्टम (मौत से पहले) चोटों के साथ मृतक की स्थिति को देखते हुए FIR तुरंत दर्ज की जानी चाहिए थी. आइये जानते हैं कि अनुशासनात्मक कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग को डीसीपी की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा...
मृतक मेरठ में हस्तशिल्प का व्यवसाय करता था और दिल्ली में एक किराए के फ्लैट में रहता था. उसकी प्रेमिका, तविषी चंद्र, के साथ उसका संबंध था. घटना के दिन, तविषी और मृतक एक साथ थे. अगले दिन जब तविषी वापस आई, तो उसने मृतक को फांसी पर लटका पाया और तुरंत पुलिस को सूचित किया. मृतक की मां, त्रिशला जैन ने अगले दिन ही पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस ने FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया. अदालत ने पाया कि पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट में 14 चोटों का उल्लेख है, जिनमें से कुछ तेज धार वाले वस्त्र से हुई थी. सुनवाई कर रहे ट्रायल कोर्ट ने कहा कि यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि मृतक की मृत्यु एक सामान्य परिस्थिति में नहीं हुई थी, और इसमें FIR के तत्काल पंजीकरण की आवश्यकता थी.
सेशन कोर्ट के इस फैसले को डीसीपी ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी. डीसीपी ने दावा किया कि पुलिस अधिकारियों को सुनने का अवसर नहीं दिया गया, जो कि न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है. विशेष न्यायाधीश ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुचित टिप्पणियां कीं. इस दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है जिसमें पुलिस की लापरवाही साफ दिखाई दे रही है.
दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्पष्ट किया कि पुलिस अधिकारियों की लापरवाही के मामले में FIR का तुरंत पंजीकरण आवश्यक था. उन्होंने कहा कि यदि पुलिस ने उचित कार्रवाई की होती, तो शायद दोषियों पर कार्रवाई की जा सकती थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए निर्देश दिया कि संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के संबंध में जांच की रिपोर्ट trial court में छह सप्ताह के भीतर प्रस्तुत की जाए.