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कानून महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए है लेकिन यहां तो सीन ही उल्टा चल रहा है, जानें दिल्ली हाई कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा

दिल्ली हाई कोर्ट ने दहेज की मांग और स्त्रीधन ना लौटाने के मामले में पति के खिलाफ अस्पष्ट आरोपों को रद्द कर दिया, जिसमें दहेज की मांग का कोई ठोस सबूत नहीं था.

दिल्ली हाईकोर्ट (चित्र पीटीआई)

Written by Satyam Kumar |Published : February 19, 2025 5:52 PM IST

कानूनों के दुरूपयोग की घटना कोई नई नहीं है. अदालतें भी कई बार ये बात कह चुकी है. हाल के दिनों में वैवाहिक विवाद के कई मामले सुनने को मिला, जिसे लेकर लोगों ने कानून पर सवाल उठाया. टाइटल आपने पढ़ लिया है, थोड़ा बहुत विचारों के घोड़े को भी दौड़ा लिया होगा. अब हम बताते हैं, दिल्ली हाई कोर्ट एक वैवाहिक विवाद से जुड़े मामले को सुन रही थी. अदालत को क्यों कहना पड़ा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए का उद्देश्य विवाहित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना है, लेकिन इसका दुरुपयोग हो रहा है. आइये जानते हैं कि महिला ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ क्या आरोप लगाया, अदालत से क्या मांग की. ससुराल वालों ने अपना पक्ष कैसे रखा. आइये जानते हैं...

पति के खिलाफ आरोप अस्पष्ट

दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस अमित महाजन की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि उत्पीड़न के वास्तविक मामले मौजूद नहीं हैं, लेकिन यह देखना दुखद है कि अब इसका दुरुपयोग पति और उसके परिवार के सदस्यों को परेशान करने तथा लाभ उठाने के लिए भी किया जा रहा है, जबकिभारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए का प्रावधान विवाहित महिला को उत्पीड़न से बचाने के उद्देश्य से बनाया गया था.

अदालत ने कहा कि वह दहेज के लालच की गहरी जड़ें जमा चुकी सामाजिक बुराई की जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ नहीं है, जिसके कारण पीड़ितों को अवर्णनीय आचरण और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. दिल्ली हाई कोर्ट ने वैवाहिक मुकदमेबाजी में पति और उसके परिवार को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर ध्यान दिया है. अदालत ने वकीलों के रवैये पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसे मामले वकील की सलाह पर तात्कालिक उत्तेजना में वास्तविक घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर और गलत व्याख्या करके दायर किए जाते हैं.  अदालत ने कहा कि जिन मामलों में पति के खिलाफ अस्पष्ट आरोप लगाए गए हों, वह भी देरी से, वहां कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. अदालत ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए की.

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दहेज और स्त्रीधन को लेकर पत्नी ने किया था मुकदमा

याचिकाकार्ता ने अपने और अपने परिवार के खिलाफ उसकी अलग रह रही पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था. मामले में पति पर दहेज की मांग और स्त्रीधन न लौटाने की शिकायत के साथ उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था. अदालत ने मामले में प्राथमिकी और इससे संबंधित अन्य कार्यवाही को रद्द कर दिया. इसने कहा कि प्राथमिकी में दहेज की मांग या उत्पीड़न के कथित मामलों की कोई तारीख, समय या विवरण निर्दिष्ट नहीं किया गया. इसे याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों के खिलाफ भी कोई सबूत नहीं मिला. अदालत ने व्यक्ति के इस तर्क को उचित पाया कि आरोप बाद में लगाए गए थे और तलाक याचिका के जवाब में लगाए गए थे.