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84 लाख रूपये के धोखाधड़ी मामले में आरोपी को समन करने पर Delhi HC ने जताई नाराजगी, दी ये सख्त हिदायत

84 लाख रूपये के धोखाधड़ी से जुड़े इस मामले में जारी समन को रद्द करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अधीनस्थ अदालतों को निर्देश देते हुए कहा कि समन जारी करने के लिए तथ्यों और साक्ष्यों का गहन अध्ययन आवश्यक है, केवल प्रथम दृष्टि में संतुष्टि पर्याप्त नहीं है.

Delhi HC

Written by Satyam Kumar |Published : June 28, 2025 8:33 PM IST

दिल्ली हाई कोर्ट 84 लाख रूपये के धोखाधड़ी मामले में जारी समन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि पैसे ना चुकाना और धोखधड़ी में अंतर है, केवल कॉन्ट्रैक्ट के टूटने से धोखधड़ी का मुकदमा नहीं बनता जब तक कि शख्स शुरू से ही बेईमानी करने का इरादा ना हो. उक्त टिप्पणी के साथ दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा जारी समन को रद्द कर दिया.

जस्टिस अमित महाजन ने अपने आदेश में कहा कि समन जारी करने के लिए यह जरूरी है कि मामले के तथ्यों और साक्ष्यों का गहन अध्ययन किया जाए. जस्टिस ने यह भी कहा कि केवल तथ्यों पर ध्यान देना और प्रथम दृष्टि में संतुष्टि दर्ज करना अपर्याप्त है. यह स्पष्ट है कि अदालतें ऐसे मामलों में सतर्कता बरतेंगी. हाई कोर्ट ने यह कहा कि दिवानी उपायों की मौजूदगी आपराधिक कार्यवाही को रोक नहीं सकती है. लेकिन, यह स्थापित कानून है कि मात्र अनुबंध का उल्लंघन धोखाधड़ी का अपराध नहीं है, जब तक कि इसके लिए यह आवश्यक है कि यह साबित किया जाए कि आरोपी का इरादा बेईमानी का था.

बता दें कि यह मामला स्टॉक का कारोबार करने वाली कंपनी 'मेसर्स इंडियाबुल्स सिक्योरिटीज लिमिटेड' द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज शिकायत से जुड़ा है. कंपनी ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने बेईमानी से कंपनी को अपने नाम से खाता खोलने के लिए प्रेरित किया और 'मार्जिन कारोबार' की सुविधा का लाभ उठाया है. कंपनी का आरोप है कि याचिकाकर्ता ने कई 'मार्जिन कॉल' के बावजूद भुगतान करने में विफल रहा. वहीं, याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि उसके खिलाफ लगाए गए आरोप बेतुके और असंभव हैं. उसने यह भी कहा कि अधीनस्थ अदालत ने बिना आवश्यक बुनियादी बातों पर गौर किए आदेश पारित किया. याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है. हाई कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि समन जारी करने के लिए विवेक का प्रयोग किया जाना चाहिएय. हाई कोर्ट ने कहा कि केवल आरोपों के आधार पर बिना ठोस साक्ष्यों के समन जारी करना उचित नहीं है.

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