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दोबारा से नहीं होगी BPSC Prelims की परीक्षा, छात्रों की मांग हुई खारिज, जानें फैसले में पटना हाई कोर्ट ने आगे के लिए क्या कहा

पटना हाई कोर्ट ने सचिन कुमार और अन्य बनाम दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (DSSSB) के मामले का संदर्भ देते हुए कहा कि परीक्षा प्रक्रिया को केवल तभी रद्द किया जा सकता है जब इसमें प्रणालीगत विफलता हो. अदालत ने कहा, "गलत करने वालों को अलग करना और चयन प्रक्रिया को जारी रखना एक स्वीकार्य सिद्धांत है."

Written by Satyam Kumar |Published : March 29, 2025 3:57 PM IST

पटना हाई कोर्ट ने शुक्रवार को बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की 70वीं संयुक्त (प्रारंभिक) प्रतियोगी परीक्षा के लिए कई याचिकाओं को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता छात्रों ने परीक्षा रद्द करने और पुनः परीक्षा कराने की मांग की थी. पटना हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि 13 दिसंबर 2024 को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा में सभी केंद्रों पर कोई निश्चित साक्ष्य नहीं पाया गया कि कोई बड़ी गड़बड़ी हुई थी, जो पूरे परीक्षा को रद्द करने का आधार बन सके. हालांकि, अदालत ने पटना के बीपीपी केंद्र पर हुई गड़बड़ी को स्वीकार किया, जो सबसे बड़ा केंद्र था. आगे के लिए पटना हाई कोर्ट ने बीपीएससी को निर्देश दिया है कि वह सफल उम्मीदवारों के लिए मुख्य परीक्षा आयोजित करे. अदालत ने बीपीएससी को भविष्य में ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए अपनी प्रक्रिया को और मजबूत करने के लिए हिदायत भी दी.

क्या है मामला?

बीपीएससी प्रिलिम्स की परीक्षा रद्द करने की मांग याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक नियुक्तियों में समान अवसर) के उल्लंघन के आधार पर दायर की गई. याचिका में दावा किया गया कि परीक्षा में अनियमितताओं के कारण छात्रों के साथ समान स्तर की स्थिति नहीं बरती गई. याचिका में परीक्षा के आयोजन में व्यवस्थित विफलता, परीक्षा केंद्रों पर लॉजिस्टिक और प्रशासनिक कुप्रबंधन, गलत उत्तर कुंजी, अनुचित उत्तर मूल्यांकन, परीक्षा केंद्रों पर अनियमितताएं और पेपर लीक की संभावना जैसी कई अनियमितताओं का उल्लेख किया गया. साथ ही, संयुक्त मेरिट सूची बनाने की अपारदर्शी पद्धति को भी चुनौती दी गई थी.

कोर्टरूम आर्गुमेंट

पटना हाई कोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस पार्थ सारथी की डिवीजन बेंच ने कहा कि "हमने रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद पाया कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पुनः परीक्षा की लगातार मांग के बावजूद, केवल पटना के बीपीपी केंद्र पर गड़बड़ी का प्रमाण था. अन्य केंद्रों से कोई गंभीर शिकायत नहीं आई थी." हाई कोर्ट का यह फैसला आनंद लीगल एड फोरम ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका पर आधारित था, इस मामले में परीक्षार्थी पप्पू कुमार और अन्य द्वारा दायर संबंधित याचिकाएं भी शामिल थीं. याचिकाकर्ताओं ने 13 दिसंबर 2024 और 4 जनवरी 2025 को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा की रद्द करने की मांग की थी. उन्होंने आरोप लगाया कि परीक्षा में पेपर लीक, प्रशासनिक चूक और उम्मीदवारों के साथ भेदभाव किया गया.

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वहीं, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इस प्रक्रिया में संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन हुआ है, जिससे परीक्षा का परिणाम अवैध हो गया है. उन्होंने यह भी कहा कि पेपर लीक के मजबूत संकेत हैं और मेरिट सूची की तैयारी में पूरी तरह से अस्पष्टता है.

BPSC ने जवाब में कहा कि गड़बड़ी की घटना केवल बीपीपी केंद्र तक सीमित थी. आयोग ने यह भी कहा कि उम्मीदवारों के प्रति निष्पक्षता बनाए रखना आवश्यक है, और यह संवैधानिक आधार पर आधारित है. आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी परीक्षार्थी को पेपर लीक का कोई लाभ नहीं मिला है, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक जैमर और कड़े सुरक्षा उपायों के कारण ऐसा संभव नहीं था.

बीपीएससी ने गुरपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य, 2005 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए जबाव दिया कि जनहित याचिका पर विचार करने से पहले अदालत को याचिकाकर्ता की विश्वसनीयता, और दी गई जानकारी की प्राथमिक सत्यता से संतुष्ट होना होगा. यह जानकारी अस्पष्ट या अनिश्चित नहीं होनी चाहिए. अदालत को दो परस्पर विरोधी हितों के बीच संतुलन बनाना होगा: एक ओर बेबुनियाद आरोपों से दूसरों के चरित्र को कलंकित करने से बचना और दूसरी ओर सार्वजनिक हानि से बचना. बीपीएससी ने आगे अनुरोध किया, अदालत जनहित याचिकाओं में दो परस्पर विरोधी हितों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती है: एक ओर बेबुनियाद और लापरवाह आरोपों से दूसरों के चरित्र को कलंकित होने से बचाना और दूसरी ओर सार्वजनिक हानि को रोकना. आगे बीपीएससी ने अशोक कुमार पाण्डेय बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, 2004 मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका को एक ऐसे हथियार के रूप में बताया है जिसका उपयोग बहुत सावधानी और विचारपूर्वक किया जाना चाहिए.

इस टिप्पणी पर पटना हाई कोर्ट ने कहा कि आम तौर पर जनहित याचिकाओं में 'locus standi' को कम महत्व दिया जाता है. इस मामले में, चूंकि याचिका परीक्षा में गड़बड़ी के कारण पुनर्मूल्यांकन की मांग करने वाले छात्रों से संबंधित है, अतः याचिका पर सुनवाई करना उचित समझा गया. पटना हाई कोर्ट ने आगे कहा,  याचिकाकर्ता आनंद लीगल एड फोरम ट्रस्ट ने पहले  संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया था, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को निपटाते हुए याचिकाकर्ता को संबंधित उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा था. चूँकि बीपीएससी प्रिलिम्स रीएग्जाम से जुड़ी याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे समान थे, इसलिए सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ दिया गया और उन पर एक साथ सुनवाई की गई.

पटना हाई कोर्ट ने सचिन कुमार और अन्य बनाम दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (DSSSB) के मामले का संदर्भ देते हुए कहा कि परीक्षा प्रक्रिया को केवल तभी रद्द किया जा सकता है जब इसमें प्रणालीगत विफलता हो. अदालत ने कहा, "गलत करने वालों को अलग करना और चयन प्रक्रिया को जारी रखना एक स्वीकार्य सिद्धांत है."

कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ज्यादातर उम्मीदवारों की टिप्पणियों या शिकायतों पर निर्भर थे, जो केवल व्हाट्सएप संदेश और कुछ बिखरी हुई शिकायतें थीं. इन शिकायतों की पुष्टि नहीं हुई थी और ये बिना किसी ठोस प्रमाण के थीं. अदालत ने निर्देश दिया कि BPSC मुख्य परीक्षा आयोजित करे और यह सुनिश्चित करे कि प्रक्रिया शांतिपूर्ण, निष्पक्ष और पारदर्शी हो. आयोग को यह भी निर्देश दिया गया कि वह ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए संरचनात्मक सुधार पर विचार करे.

परीक्षा में सुरक्षा उपायों को मजबूत करने का निर्देश

पटना हाई कोर्ट ने वंशिका यादव मामले (Vanshika Yadav case) में सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले का जिक्र भी किया, जिसमें परीक्षा के दौरान दस्तावेजों के लीक होने की संभावना को रोकने के लिए डिजिटल वॉटरमार्किंग और ट्रैकिंग तकनीकों को शामिल करने का सुझाव दिया गया है. हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि मौजूदा सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता का नियमित अंतराल पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए. इसके साथ ही, तकनीकी उपायों की खोज की जानी चाहिए, जिससे सुरक्षा और दक्षता में सुधार हो सके. आयोग को डिजिटल प्रमाणीकरण और सुरक्षित ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर विचार करने की आवश्यकता है.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 13.12.2024 को सभी परीक्षा केंद्रों पर अनियमितताओं का कोई ठोस सबूत नहीं है. हालांकि, पटना के बीपीपी केंद्र पर सबसे अधिक परीक्षार्थियों के साथ कुछ व्यवधानों का प्रमाण मिला है. आयोग ने इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए 04.01.2025 को उस केंद्र के लिए पुनः परीक्षा आयोजित की. बीपीएससी के इस फैसले को उचित ठहराते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि संदिग्ध उम्मीदवारों को निर्दोष उम्मीदवारों से अलग करना संभव है, तो पूरे परीक्षा को रद्द करने के बजाय ऐसा करना चाहिए.

कोर्ट ने बताया कि प्रश्न पत्र का लीक होना सिर्फ बीपीपी केंद्र पर हुआ था, जबकि अन्य केंद्रों पर परीक्षार्थी सुरक्षित परीक्षा हॉल में बैठे थे. इस संदर्भ में, यह भी कहा गया कि किसी भी उम्मीदवार को इस लीक से लाभ उठाने का कोई प्रमाण नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि परीक्षा के उत्तर कुंजी के संबंध में आपत्तियां केवल तब स्वीकार की जा सकती हैं जब वे स्पष्ट रूप से गलत हों. यदि उत्तरों पर संदेह है, तो लाभ हमेशा परीक्षा प्राधिकरण को जाना चाहिए.

कोर्ट ने सुझाव दिया कि आयोग को सुरक्षा उपायों की समीक्षा और परीक्षा प्रबंधन में सुधार के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करना चाहिए. इसके अलावा, परीक्षा प्रक्रिया के दौरान शिकायतों को दर्ज करने के लिए एक समर्पित विंग बनाया जाना चाहिए. आयोग को डिजिटल वॉटरमार्किंग और ट्रैकिंग जैसी उच्च तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है, जिससे परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे.