पटना हाई कोर्ट ने एक पूर्व विधायक को सरकारी आवास का किराया, 20 लाख रूपये, भरने के निर्देश दिए हैं. हाई कोर्ट ने कहा कि जैसे ही कोई विधायक पद से इस्तीफा देता है या उस पर प्रभावी रूप से होना बंद कर देता है, उसे उस दिन से ही सरकारी आवास को छोड़ देना चाहिए था. हाई कोर्ट ने पाया कि सिंह ने विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद सरकारी आवास खाली नहीं किया था. इसे लेकर पर पूर्व विधायक अवनीश कुमार सिंह ने 2008 के एक अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें 'राज्य विधानमंडल अनुसंधान और प्रशिक्षण ब्यूरो' के सदस्यों को विधायकों के समान सुविधाएं मिलने का उल्लेख था. हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिसूचना में पूर्व विधायकों द्वारा सरकारी आवास पर कब्जा बनाए रखने का कोई प्रावधान नहीं था और इस्तीफे के बाद बंगले का आवंटन रद्द हो गया था और सिंह का कब्ज़ा अवैध था.
सिंह को जब वह विधायक थे, तब टेलर रोड, पटना पर सरकारी क्वार्टर नंबर 3 आवंटित किया गया था. अदालत ने कहा कि जैसे ही उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दिया, उन्हें तुरंत क्वार्टर खाली करना चाहिए था. इसके बजाय, उन्होंने अवैध रूप से इस क्वार्टर पर कब्जा बनाए रखा. हाई कोर्ट की एक डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस पी बी बजंथरी और जस्टिस आलोक कुमार सिन्हा शामिल थे, ने यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता का सरकारी क्वार्टर पर कब्जा रखना बिना किसी अधिकार के था. सिंह ने अपनी स्थिति को साबित करने के लिए 2008 के एक नोटिफिकेशन का सहारा लिया, जिसमें कहा गया था कि 'राज्य विधानमंडल अनुसंधान और प्रशिक्षण ब्यूरो' का सदस्य सभी सुविधाओं का लाभ उठा सकता है.
हाई कोर्ट ने कहा,
"21.08.2008 के नोटिफिकेशन का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट है कि राज्य विधानमंडल अनुसंधान और प्रशिक्षण ब्यूरो' का सदस्य आवास, दैनिक भत्ता, टेलीफोन सुविधा आदि का लाभ उठा सकता है. लेकिन इस नोटिफिकेशन में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि पूर्व विधायक अपने इच्छानुसार सरकारी आवास बनाए रख सकता है."
हाई कोर्ट ने कहा,
"यकीनन याचिकाकर्ता का आचरण अनुचित था. उन्होंने 14.04.2014 से 12.05.2016 तक सरकारी क्वार्टर नंबर 3 पर अवैध रूप से कब्जा बनाए रखा और इसलिए 20,98,757/- रुपये किराया मांगना पूरी तरह से कानूनी और उचित है."
हाई कोर्ट ने इस मांग को बिना मेरिट के पाते हुए खारिज कर दिया.
हाई कोर्ट पूर्व विधायक की अपील सुन रहा था, जो कि 2021 में एक एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश के खिलाफ थी. एकल न्यायाधीश ने सिंह की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उन्होंने पहले 2015 में इसी राहत के लिए याचिका दायर की थी, जिसे उन्होंने बिना किसी स्वतंत्रता के वापस ले लिया था. सिंह ने तर्क दिया कि मार्च 2014 में बिहार विधान सभा से इस्तीफा देने के बाद, उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़े (जिसमें वह हार गए थे). बाद में उन्हें राज्य विधानमंडल अनुसंधान और प्रशिक्षण ब्यूरो का सदस्य नामित किया गया था. इसलिए पूर्व विधायक ने 2008 के नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें विधायक या एमएलसी के समान सभी सुविधाएं प्राप्त करने का अधिकार है. वहीं, सरकार ने तर्क किया कि जैसे ही सिंह ने विधानसभा से इस्तीफा दिया, उन्हें क्वार्टर पर कब्जा बनाए रखने का कोई अधिकार नहीं था. यह क्वार्टर मंत्रियों के लिए आवंटित पूल का हिस्सा था और पहले से ही एक बैठे मंत्री को आवंटित किया गया था. अपील में कोई मेरिट नहीं पाते हुए पटना हाई कोर्ट ने इस मामले को खारिज कर दिया.