सुप्रीम कोर्ट ने देश के विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित केसों की बड़ी संख्या के मद्देनजर 2021 के फैसले में लगाई शर्तो में कुछ बदलाव किया है. मुकदमों की बोझ से निपटने के लिए हाई कोर्ट में एड हॉक जजों की मंजूरी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि किसी भी हाई कोर्ट में उसमें स्वीकृत जजों की कुल संख्या से 10% से ज़्यादा पद एडहॉक जजों के नहीं होने चाहिए. एडहॉक जज उन बेंच में बैठेंगे जो आपराधिक मामलों को सुन रही हो और उस बेंच की अध्यक्षता हाई कोर्ट के सीटिंग जज करेंगे. बताते चलें कि पिछली सुनवाई में भी मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्याकांत की विशेष पीठ ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित आपराधिक अपीलों की संख्या का उल्लेख किया, अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा था कि अकेले इलाहाबाद हाई कोर्ट में 63,000 मामले लंबित हैं.
आज सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने पहले ही कहा था कि एड-हॉक जजों की नियुक्ति के लिए 2021 के निर्णय में आंशिक संशोधन किया जा सकता है, जिसके अनुसार एड-हॉक जजों को मौजूदा हाई कोर्ट के जजों के साथ मिलकर काम करने की अनुमति दी जाएगी. हालांकि, उस वक्त यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि हाई कोर्ट का 80 प्रतिशत स्वीकृत जजों की संख्या के साथ कार्यरत है, तो -हॉक जजों की नियुक्ति नहीं की जाएगी, लेकिन शीर्ष अदालत ने आज इस नियम को संशोधित किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"वो हाई कोर्ट भी एडहॉक जज की नियुक्ति कर पाएंगे जिनमे 20 % या उससे ज़्यादा की वैंकसी है (यानि वो हाई कोर्ट जो अभी कुल स्वीकृत पदों की 80% या उससे ज्यादा संख्या के साथ काम कर रहे है, वो भी एड हॉक जज की नियुक्ति कर पाएंगे."
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी हाई कोर्ट में उसमें स्वीकृत जजों की कुल संख्या से 10% से ज़्यादा पद एडहॉक जजों के नहीं होने चाहिए. एड-हॉक जज उन बेंच में बैठेंगे जो आपराधिक मामलों को सुन रही हो. उस बेंच की अध्यक्षता हाई कोर्ट के सीटिंग जज करेंगे.
इस सुनवाई के दौरान सीजेआई संजीव खन्ना ने लंबित मामलों की सूची का हवाला देते हुए कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में अकेले 63,000 आपराधिक अपीलें लंबित हैं. झारखंड उच्च न्यायालय में यह संख्या 13,000 है, जबकि कर्नाटक, पटना, राजस्थान, और पंजाब और हरियाणा में क्रमशः 20,000, 21,000, 8,000 और 21,000 मामले लंबित हैं.
संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत एड-हॉक जजों की नियुक्ति का प्रावधान है. इसके अनुसार, एड-हॉक जजों की नियुक्ति के लिए संविधान के अनुच्छेद 224A का उपयोग किया जाएगा, जिसके अनुसार हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी भी पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने एड-हॉक जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि इसके वास्तविक उद्देश्य को पूरा किया जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि एड-हॉक जजों की नियुक्ति के लिए एक स्पष्ट मार्गदर्शिका बनाई जाए, जिसमें उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया, कार्यकाल, वेतन आदि की जानकारी हो.