All India Lawyers Association: अखिल भारतीय अधिवक्ता संघ की दिल्ली इकाई ने15 जुलाई को तीन अपराधिक कानून के विरोध में प्रदर्शन करने की घोषणा की है. लॉयर्स एसोसिएशन द्वारा जारी विज्ञपत्ति के अनुसार उन्होंने कानूनों को लागू करने के तरीके एवं कानून के कुछ प्रावधानों में सुधार की मांग की है. संघ ने दावा किया कि नए कानून लोगों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करते हैं और संवैधानिक तत्वों की उपेक्षा करते हैं जो आपराधिक न्याय प्रणाली का आधार रही है.
विज्ञप्ति के अनुसार, AILU ने कानूनों में कुछ परिवर्तन करने की मांग कर रही है जो इस प्रकार से है;
पुलिस हिरासत की समय बढ़ाने से आपत्ति
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता(बीएनएसएस) की धारा 187 (3), पहले सीआरपीसी धारा 167 (2), पुलिस हिरासत को 15 दिनों से बढ़ाकर 60 या 90 दिन करने से, नया प्रावधान हिरासत में यातना की संभावना को बढ़ाता है और बंदी की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है.
निजता के अधिकार का हनन
AILU के अनुसार, BNSS की धारा 37 गिरफ्तार व्यक्ति के विवरणों को 'प्रमुख रूप से प्रदर्शित' करने का जिक्र करता है और इस तरह, ये नियम प्राइवेसी के संवैधानिक अधिकार की अवहेलना करता है और गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकारों के बारे में स्थापित सिद्धांतों की अनदेखी करता है.
BNSS की धारा 172: पुलिस अधिकारी अध्याय XII के तहत, किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकता है या हटा सकता है जो किसी भी निर्देश का पालन करने से इनकार करता है, अनदेखा करता है या अवहेलना करता है. यह प्रावधान पर्याप्त जांच के बिना मनमाने ढंग से हिरासत में लेने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है.
जमानत देने को लेकर नियम कठोर
BNSS की धारा 481(2) में कहा गया है कि जहां एक व्यक्ति के खिलाफ एक से अधिक अपराधों या एक से अधिक मामलों में जांच, पूछताछ या मुकदमा लंबित है, तो उसे अदालत द्वारा जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा भले ही उसने अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम कारावास का आधा या एक तिहाई हिस्सा काट लिया हो. AILU ने इसे निर्दोषता के सिद्धांत को चुनौती देनेवाला बताया है.
आरोपी की अनुपस्थिति में ट्रायल
AILU के अनुसार, नया अपराधिक कानून अभियुक्त (आरोपी) की अनुपस्थिति में मुकदमे की अनुमति देता है. बीएनएसएस धारा 356 में न्यायाधीशों को अभियुक्त की उपस्थिति के बिना आगे बढ़ने की विवेकाधीन शक्ति की परिकल्पना की गई है, यदि वे संतुष्ट हैं कि 'न्याय के हित में न्यायालय के समक्ष अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक नहीं है'.
ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन उपरोक्त मांगो को लेकर 15 जुलाई को प्रदर्शन करने की घोषणा की है.