नकली प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करने पर मिलती है यह सजा
कई मामले देखने को मिलते हैं जिनमें लोग नकली पहचान पत्र को असली के रूप में इस्तेमाल करते हैं लेकिन यह एक अपराध है और ऐसे अपराध में सख्त कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.
कई मामले देखने को मिलते हैं जिनमें लोग नकली पहचान पत्र को असली के रूप में इस्तेमाल करते हैं लेकिन यह एक अपराध है और ऐसे अपराध में सख्त कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.
यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceeding) में ऐसे झूठे प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करता है तो उसे अधिकतम 7 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.
जहां एक विक्रय में एक विक्रेता और एक खरीदार होना अनिवार्य है वहीं विक्रय (Sale) की विषय वस्तु का एक अचल संपत्ति होना भी अनिवार्य है.
चिकित्सा में आपराधिक लापरवाही केवल उन मामलों में उत्पन्न होती है जहां डॉक्टर से "घोर" लापरवाही हुई हो. घोर लापरवाही के आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कियाा जा सकता है तो वही लापरवाही पर मरीज को हुए नुकसान को लेकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत मुआवजे के लिए भी मुकदमा दायर किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों द्वारा प्रदर्शन के दौरान अदालत में तोड़फोड़, न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ गैर मर्यादित भाषा का प्रयोग और पुलिसकर्मियों के साथ किए गए व्यवहार को लेकर नाराजगी जताई.
कोर्ट भी नागरिक जिस राज्य में निवास करता है उस राज्य से संबंधित हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र याचिका भेज सकता है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम भी पत्र याचिका सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर कर सकता है.
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने ये कार्रवाई जजों के लिए असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल करने, पुलिस अधिकारियों को धक्का देने और अदालती कार्यवाही में बाधा डालने के कार्य के लिए की है.
सड़क पर लापरवाही से वाहन चलाने के मामले में साबित करने के लिए सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल वीडियो अहम सबूत बने है. देश में अब इन मामलों में अदालतों से भी लगातार फैसले हो रहे है और लापरवाही से वाहन चलाने पर लोगों को जेल हुई है.
कोलकाता हाईकोर्ट के पूर्व जज दिवंगत जस्टिस सलिल कुमार दत्ता के घर 9 फरवरी, 1965 को जन्मे जस्टिस दीपांकर दत्ता का सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर 8 साल का कार्यकाल होगा. वे 8 फरवरी 30 इस पद पर रहेंगे. जस्टिस दत्ता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अमिताव रॉय के भी करीबी रिश्तेदार हैं.
गर्भतवी महिलाओं को लेकर 1961 में बना मातृत्व अवकाश कानून पहला ऐतिहासिक बदलाव था जिसके द्वारा हमारे देश में कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान कई अधिकार दिए गए.2017 के मैटरनिटी बेनिफिट संशोधित ऐक्ट के बाद इसमें कई नए प्रावधान जोड़े गए है
यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceeding) में ऐसे झूठे प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करता है तो उसे अधिकतम 7 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.
जहां एक विक्रय में एक विक्रेता और एक खरीदार होना अनिवार्य है वहीं विक्रय (Sale) की विषय वस्तु का एक अचल संपत्ति होना भी अनिवार्य है.
चिकित्सा में आपराधिक लापरवाही केवल उन मामलों में उत्पन्न होती है जहां डॉक्टर से "घोर" लापरवाही हुई हो. घोर लापरवाही के आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कियाा जा सकता है तो वही लापरवाही पर मरीज को हुए नुकसान को लेकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत मुआवजे के लिए भी मुकदमा दायर किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों द्वारा प्रदर्शन के दौरान अदालत में तोड़फोड़, न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ गैर मर्यादित भाषा का प्रयोग और पुलिसकर्मियों के साथ किए गए व्यवहार को लेकर नाराजगी जताई.
कोर्ट भी नागरिक जिस राज्य में निवास करता है उस राज्य से संबंधित हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र याचिका भेज सकता है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम भी पत्र याचिका सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर कर सकता है.
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने ये कार्रवाई जजों के लिए असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल करने, पुलिस अधिकारियों को धक्का देने और अदालती कार्यवाही में बाधा डालने के कार्य के लिए की है.
सड़क पर लापरवाही से वाहन चलाने के मामले में साबित करने के लिए सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल वीडियो अहम सबूत बने है. देश में अब इन मामलों में अदालतों से भी लगातार फैसले हो रहे है और लापरवाही से वाहन चलाने पर लोगों को जेल हुई है.
कोलकाता हाईकोर्ट के पूर्व जज दिवंगत जस्टिस सलिल कुमार दत्ता के घर 9 फरवरी, 1965 को जन्मे जस्टिस दीपांकर दत्ता का सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर 8 साल का कार्यकाल होगा. वे 8 फरवरी 30 इस पद पर रहेंगे. जस्टिस दत्ता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अमिताव रॉय के भी करीबी रिश्तेदार हैं.
गर्भतवी महिलाओं को लेकर 1961 में बना मातृत्व अवकाश कानून पहला ऐतिहासिक बदलाव था जिसके द्वारा हमारे देश में कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान कई अधिकार दिए गए.2017 के मैटरनिटी बेनिफिट संशोधित ऐक्ट के बाद इसमें कई नए प्रावधान जोड़े गए है