IPC की धारा 117 और 118 के तहत किन अपराधों की सजा का है प्रावधान
भारतीय दंड संहिता 1860 में कई अपराध और सजा दोनों के बारे में जानकारी दी गई है. इनमें से हैं धारा 117 और 118 है. आईए जानते हैं धारा 117 और 118 में किन अपराधों के लिए सजा मिलती है.
भारतीय दंड संहिता 1860 में कई अपराध और सजा दोनों के बारे में जानकारी दी गई है. इनमें से हैं धारा 117 और 118 है. आईए जानते हैं धारा 117 और 118 में किन अपराधों के लिए सजा मिलती है.
भारतीय दंड संहिता(Indian Penal Code)1860 की धारा (Section)120A,120B चैप्टर पांच A के अंतर्गत आता है. इस चैप्टर को दो भागों में बाटा गया है. पहली धारा (Section)120A और दूसरी धारा (Section)120B.
हमारे देश के कानून के अनुसार किसी सरकारी कार्मिक यानी लोकसेवक द्वारा किसी अपराध को छुपाने या अपराध करने में मदद करने पर भी जेल की सजा का प्रावधान करता है.
IPC में हर अपराध की अलग परिभाषा दी गई है. इसके अंदर आने वाले धारा 114 और 115 भी किसी अपराध और उसके तहत क्या सजा होनी चाहिए उसके बारे में बताता है.
ऐसे चीज़ जो धरती से नहीं जुड़ी हुई है और उसे उसकी जगह से किसी दूसरी जगह पर आसानी से ले जाया जा सकता है. जैसे आपकी पॉकेट में रखा हुआ पैसा, मोबाईल, आपकी घड़ी, आईपैड, गाडी, आभूषण, कंप्यूटर, धन जैसी मूल्यवान चीजें चल संपत्ति (Movable Property) में आती है, जिन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है.
मानहानि दो रूपों में हो सकती है- लिखित या मौखिक रूप में. लिखित रूप में यदि किसी के विरुद्ध प्रकाशितरूप में या लिखितरूप में झूठा आरोप लगाया जाता है या उसका अपमान किया जाता है तो यह "अपलेख" कहलाता है लेकिन, जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अपमानजनक कथन या भाषण दिया जाता है, जिसे सुनकर लोगों के मन में व्यक्ति विशेष के प्रति घृणा या अपमान उत्पन्न हो तो वह "अपवचन" कहलाता है.
IPC की धारा 113 भी दुष्प्रेरण (उकसाने) पर मिलने वाले सजा को लेकर ही है. जब कोई किसी को अपराध के लिए उकसाता है तो उस अपराध के अलावा कोई और अपराध हो जाए और अगर उकसाने वाले व्यक्ति को उस बारे में पहले से ही पता हो, तब उसे कैसी सजा मिलेगी. क्या उसे वही सजा मिलेगी जिसके लिए उसने उकसाया था या फिर कुछ और अपराध होने की वजह से उकसाने वाले को सजा नहीं मिलेगी.
क्या आपको पता है हमारे देश के कानून में इस तरह के अपराध को गंभीर अपराध माना गया है, क्योकि झूठे सबूत या झूठे प्रमाण पत्र या बयान किसी के जीवन को भी प्रभावित कर सकते है. IPC में झूठे सबूत या गवाही देने वाले व्यक्ति के साथ-साथ उन झूठे साक्ष्यों को इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को भी सख्त सज़ा का प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं, झूठे सबूत, प्रमाणपत्र या घोषणा को सच्चा बताकर इस्तेमाल करने का क्या मतलब है और न्यायालय में ऐसे सबूत जमा करने पर क्या हो सकती है भारतीय दंड सहिंता (IPC) के तहत कार्रवाई.
भारतीय दंड सहिंता की धारा 306 के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाता है और वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है तो उस व्यक्ति को इस धारा के तहत सज़ा सुनाई जा सकती है.
इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जो कानूनी रूप से सत्य बोलने के लिए बाध्य है, या तो शपथ द्वारा या कानून के किसी स्पष्ट प्रावधान द्वारा, लेकिन वह कोई ऐसा बयान देता है जो झूठा है और जिसे वह जानता है या विश्वास करता है कि वह झूठ है या सत्य नहीं है, इस काम को झूठा साक्ष्य देना कहा जाता है. झूठा साक्ष्य देना या तो मौखिक रूप से हो सकता है या किसी भी अन्य तरीके से दिया गया साक्ष्य हो सकता है.
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा (Section) 112 में एक साथ मिलने वाली कई सजा के बारे में बताता है. इस धारा के अंतर्गत बताया गया है कि आखिर कब एक अपराध के लिए उकसाने वाले व्यक्ति को कई अपराध के लिए सजा मिलती है. कैसे दुष्प्रेरक का एक आपराधिक उद्देश्य कई अपराधों में बदल जाता है, जिसके कारण दुष्प्रेरक इस धारा के तहत एक से ज्यादा अपराधों के लिए सजा का पात्र हो जाता है.
भारत में किसी व्यक्ति को अपराध के लिए उकसाना कानून के नजर में दंडनीय है. धारा 111 के तहत इस बात का जिक्र है कि अगर आप किसी को बहका रहे हैं किसी अपराध के लिए तो बहकाने वाले को किस तरह की सजा मिलेगी. जब जिस अपराध के लिए उकसाया गया है. उस अपराध के बजाय कोई और अपराध हो जाए तो बहकाने वाले को क्या सजा मिलेगी. इसी के बारे में धारा 111 में बताया गया है.
IPC की धारा 109 में अपराध के दुष्प्रेरण पर क्या सजा दी जाए इसका जिक्र किया गया है. धारा 110 में इस बात का जिक्र है जब कोई किसी को किसी अपराध के लिए उकसाता है और जिस अपराध के लिए उकसाया गया था. वो ना होकर कोई और अपराध हो जाय तो उकसाने वाले को क्या सजा मिलती है.
IPC की यह धारा कहती है की इस अधिनियम में सारे परिभाषित शब्द सिर्फ इस अधिनियम के संदर्भ में ही प्रयोग किये जायेंगे.
भारतीय दंड संहिता(IPC) की धारा 107 किसी बात के दुष्प्रेरण के लिए लगाई जाती है. यानि अगर कोई किसी व्यक्ति को किसी बात के लिए दुष्प्रेरण (उकसाता) करता है तब यह धारा लगाई जाती है. इसका जिक्र चैप्टर 5 में किया गया है.
दहेज हत्या का अपराध एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके लिए आसानी से जमानत नहीं दी जा सकती.IPC की धारा 304 (बी) के लिए दोषी व्यक्ति को कम से कम 7 साल से लेकर आजीवन उम्रकैद की सजा तक सुनाई जा सकती हैं.
जिस तरह चोरी करना गैर जमानती अपराध है उसी तरह चोरी का सामान खरीदना भी गैर जमानती अपराध है जिसके लिए अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार किया जा सकता है. यह अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है
संसद द्वारा ग्राम न्यायालय अधिनियम वर्ष 2008 में पारित किया गया था और 2 अक्टूबर 2009 से इस कानून की शुरुआत की गई थी. 14 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश में कई राज्यों ने इन ग्राम न्यायालयों की स्थापना करना तक उचित नहीं समझा हैं.