दंगा करेंगे तो जाना पड़ेगा जेल, जानिए क्या है IPC में सजा का प्राविधान
IPC की धारा 159 में अपराध के एक प्रकार दंगा के बारे में बताया गया है, अगर कोई दंगा फैलाने की कोशिश करता है तो वो सजा का पात्र होगा.
IPC की धारा 159 में अपराध के एक प्रकार दंगा के बारे में बताया गया है, अगर कोई दंगा फैलाने की कोशिश करता है तो वो सजा का पात्र होगा.
गलियों में आतिशबाजी, विस्फोटकों को अपने कब्ज़े रखना, सड़कों पर गड्ढ़े खोदना, अवैध शराब के प्रतिष्ठान, जलधाराओं को प्रदूषित करना, राजमार्गों पर यातायात में बाधा डालना, जैसे कृत्यों को आम तौर पर सार्वजनिक उपद्रव के दायरे में लाया जाता है और सख्त कार्यवाही की जाती है.
कोई भी व्यक्ति किसी की धार्मिक आस्था और किसी भी धर्म की किसी पवित्र वस्तु का अपमान नहीं कर सकता. अगर कोई ऐसा करता है तो वो दोषी माना जाएगा, जिसे कानून के तहत सजा दी जाएगी.
लापरवाही से किए गए कामों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता है क्योंकि ऐसे कामों के पीछे कोई आपराधिक इरादा (Criminal Intention) नहीं होता, लेकिन कुछ मामलों में लापरवाही से किए गए काम भी अपराध के दायरे में आ सकते हैं.
IPC की धारा 292 की उप-धारा 1d के अनुसार जब कोई व्यक्ति इस तरह की सामग्री का विज्ञापन करता है या किसी भी तरह से ज्ञात हो कि कोई भी व्यक्ति किसी ऐसे कार्य में शामिल है या शामिल होने के लिए तैयार है जो इस धारा के तहत एक अपराध है, या ऐसी कोई भी अश्लील वस्तु किसी व्यक्ति से या उसके माध्यम से प्राप्त की जा सकती है.
प्रर्दशन होना आम बात है, लेकिन अक्सर प्रर्दशन के दौरान दंगे हो ही जाते हैं, जिससे देश में आशांति का माहौल हो जाता है। इन्ही दंगों को रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता में कुछ कानून बनाये गए हैं, जिससे लोगों के मन में कानून का डर हो.
कुछ लापरवाही ऐसी होती है जिससे किसी दुसरे व्यक्ति के जीवन पर कोई खतरा नहीं होता है लेकिन कुछ लापरवाही सोच समझकर कर दूसरे को खतरे में डालने के लिए की जाती है.
ऐसा बहुत कम होता है जब कोई जलूस निकल रहा हो और उसमें कोई दंगा ना हो. इससे जुड़े मामले आए दिन अखबारों की सुर्खियां बने रहते हैं. एक ओर शासन से लेकर प्रशासन डाल - डाल चलते हैं तो वही उपद्रवी पात - पात चलते हैं.
जो कोई व्यक्ति किसी भी तरह के गैरकानूनी कार्य या लापरवाही से कोई ऐसा कार्य करता है, यह जानते हुए या ऐसा विश्वास रखते हुए कि इस कार्य के कारण, जीवन के लिए खतरनाक किसी भी बीमारी के संक्रमण को फैलाने की संभावना है, तो ऐसे व्यक्ति को दोषी माना जाएगा.
एक व्यक्ति को इस अपराध का दोषी तब भी पाया जा सकता है, जब वह एक मूल्यवर्ग के वास्तविक स्टाम्प को दूसरे मूल्यवर्ग के स्टाम्प के रूप में इस्तेमाल करता है.
हमारे देश में कानून केवल अपराधियों को सजा के देने के लिए नहीं बल्कि यह अपराधियों को सुधरने का मौका देती है. इसके लिए वो कई तरह के हथकंडे अपनाती है.
इस धारा के स्पष्टीकरण में बताया गया है कि इस धारा में दी गई सजा, उस सजा के अतिरिक्त है जिस अपराध के लिए उसे हिरासत में लिया जाना था या आरोप लगाया गया था, या उसे दोषी ठहराया गया था.
जो कोई लोक सेवक किसी अन्य व्यक्ति को किसी कथित अपराध के चलते या किसी सज़ा के चलते या कानूनी तौर पर कारावास में रखने के लिए बाध्य है, लेकिन वह लोक सेवक अपनी लापरवाही दिखाता है तो जानिए क्या होता है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 133 और 134 में सैनिक द्वारा अपने उच्च अधिकारिओं के खिलाफ किए गए अपराधों और उसके तहत मिलने वाली सजा के बारे में बताया गया है. इनमें सैनिक को अपराध के लिए उकसाना और उसके द्वारा किए गए अपराध की सज़ा का प्रावधान है.
भारतीय दंड सहिंता की धारा 220 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी सम्मानित पद या कार्यालय में होने के नाते अगर उस पद का गलत इस्तेमाल करता है और वह किसी भी व्यक्ति पर मुकदमे करता है या कैद में रखता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
कई बार टैक्स कलेक्शन करने वाले अधिकारी भी व्यापारियों को पूछताछ और जांच के बहाने अवैध रूप से हिरासत में ले लेते हैं. ऐसी कार्रवाई के समय, वह ऐसा जताते हैं कि यह सब न्याय और नियम के अनुसार ही हो रहा है. तो आज हम आपको बता दें कि भारतीय कानून के अंतर्गत, इस तरह की कार्यवाही एक अपराध है.
अपराध करना अगर गुनाह है तो अपराधी को छुपाना, अपराध करने में किसी की मदद करना या अपराधी को अपने पास रखना भी कानूनी रूप से दंडनीय है.
IPC की धारा 213 और 214 इससे संबंधित है और ऐसे कृत्यों के लिए सज़ा का प्रावधान बनाती है. इस धारा के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी अपराधी को बचाने के लिए कोई उपहार या संपत्ति लेता है या देता है, इन दोनों ही स्थिति में उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज़ किया जा सकता है और सख्त सज़ा भी दी जा सकती है.
कुछ लापरवाही ऐसी होती है जिससे किसी दुसरे व्यक्ति के जीवन पर कोई खतरा नहीं होता है लेकिन कुछ लापरवाही सोच समझकर कर दूसरे को खतरे में डालने के लिए की जाती है.
ऐसा बहुत कम होता है जब कोई जलूस निकल रहा हो और उसमें कोई दंगा ना हो. इससे जुड़े मामले आए दिन अखबारों की सुर्खियां बने रहते हैं. एक ओर शासन से लेकर प्रशासन डाल - डाल चलते हैं तो वही उपद्रवी पात - पात चलते हैं.
जो कोई व्यक्ति किसी भी तरह के गैरकानूनी कार्य या लापरवाही से कोई ऐसा कार्य करता है, यह जानते हुए या ऐसा विश्वास रखते हुए कि इस कार्य के कारण, जीवन के लिए खतरनाक किसी भी बीमारी के संक्रमण को फैलाने की संभावना है, तो ऐसे व्यक्ति को दोषी माना जाएगा.
एक व्यक्ति को इस अपराध का दोषी तब भी पाया जा सकता है, जब वह एक मूल्यवर्ग के वास्तविक स्टाम्प को दूसरे मूल्यवर्ग के स्टाम्प के रूप में इस्तेमाल करता है.
हमारे देश में कानून केवल अपराधियों को सजा के देने के लिए नहीं बल्कि यह अपराधियों को सुधरने का मौका देती है. इसके लिए वो कई तरह के हथकंडे अपनाती है.
इस धारा के स्पष्टीकरण में बताया गया है कि इस धारा में दी गई सजा, उस सजा के अतिरिक्त है जिस अपराध के लिए उसे हिरासत में लिया जाना था या आरोप लगाया गया था, या उसे दोषी ठहराया गया था.
जो कोई लोक सेवक किसी अन्य व्यक्ति को किसी कथित अपराध के चलते या किसी सज़ा के चलते या कानूनी तौर पर कारावास में रखने के लिए बाध्य है, लेकिन वह लोक सेवक अपनी लापरवाही दिखाता है तो जानिए क्या होता है.
कई बार टैक्स कलेक्शन करने वाले अधिकारी भी व्यापारियों को पूछताछ और जांच के बहाने अवैध रूप से हिरासत में ले लेते हैं. ऐसी कार्रवाई के समय, वह ऐसा जताते हैं कि यह सब न्याय और नियम के अनुसार ही हो रहा है. तो आज हम आपको बता दें कि भारतीय कानून के अंतर्गत, इस तरह की कार्यवाही एक अपराध है.
अपराध करना अगर गुनाह है तो अपराधी को छुपाना, अपराध करने में किसी की मदद करना या अपराधी को अपने पास रखना भी कानूनी रूप से दंडनीय है.
IPC की धारा 213 और 214 इससे संबंधित है और ऐसे कृत्यों के लिए सज़ा का प्रावधान बनाती है. इस धारा के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी अपराधी को बचाने के लिए कोई उपहार या संपत्ति लेता है या देता है, इन दोनों ही स्थिति में उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज़ किया जा सकता है और सख्त सज़ा भी दी जा सकती है.
कहते हैं गुनाह करने वाले से भी बड़ा गुनहगार होता है उस गुनाह को छिपाने वाले. कानूनी रूप से इसे एक अपराध माना जाता है. हमारे देश में इसे लेकर भारी सजा का भी प्रावधान है.
भारतीय दंड सहिंता (Indian Penal Code) में 208 और 210 के तहत परिभाषित अपराध के अनुसार जो कोई व्यक्ति, किसी राशि के लिए धोख से अपने खिलाफ डिक्री (Decree) होने देता है या अपने हित में डिक्री (Decree) हासिल करता है, तो दोनों ही स्थिति में उसे दंडित किया जा सकता है. आइए जानते हैं IPC की धारा 208 और 210 के विषय में कुछ अहम बातें.
Indian Penal Code की धाराएं 19, 20 और 21 में न्यायाधीश, न्यायालय (Court of Justice) और लोक सेवक को परिभाषित करती है.
भारतीय दंड संहिता 1860 में कई अपराध और सजा दोनों के बारे में जानकारी दी गई है. इनमें से हैं धारा 117 और 118 है. आईए जानते हैं धारा 117 और 118 में किन अपराधों के लिए सजा मिलती है.
भारतीय दंड संहिता(Indian Penal Code)1860 की धारा (Section)120A,120B चैप्टर पांच A के अंतर्गत आता है. इस चैप्टर को दो भागों में बाटा गया है. पहली धारा (Section)120A और दूसरी धारा (Section)120B.
IPC में हर अपराध की अलग परिभाषा दी गई है. इसके अंदर आने वाले धारा 114 और 115 भी किसी अपराध और उसके तहत क्या सजा होनी चाहिए उसके बारे में बताता है.
ऐसे चीज़ जो धरती से नहीं जुड़ी हुई है और उसे उसकी जगह से किसी दूसरी जगह पर आसानी से ले जाया जा सकता है. जैसे आपकी पॉकेट में रखा हुआ पैसा, मोबाईल, आपकी घड़ी, आईपैड, गाडी, आभूषण, कंप्यूटर, धन जैसी मूल्यवान चीजें चल संपत्ति (Movable Property) में आती है, जिन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है.
IPC की धारा 113 भी दुष्प्रेरण (उकसाने) पर मिलने वाले सजा को लेकर ही है. जब कोई किसी को अपराध के लिए उकसाता है तो उस अपराध के अलावा कोई और अपराध हो जाए और अगर उकसाने वाले व्यक्ति को उस बारे में पहले से ही पता हो, तब उसे कैसी सजा मिलेगी. क्या उसे वही सजा मिलेगी जिसके लिए उसने उकसाया था या फिर कुछ और अपराध होने की वजह से उकसाने वाले को सजा नहीं मिलेगी.