Mohori Bibi Vs Dharmodas Ghose: क्या कोई Minor संविदा कर सकता है? आइए जानते है
हालांकि एक नाबालिग द्वारा किया गया करार, शून्य (Void) अवश्य है, लेकिन ऐसा करार अवैध (Illegal) नहीं है, क्योंकि इसको लेकर कोई कानूनी प्रावधान मौजूद नहीं है।
हालांकि एक नाबालिग द्वारा किया गया करार, शून्य (Void) अवश्य है, लेकिन ऐसा करार अवैध (Illegal) नहीं है, क्योंकि इसको लेकर कोई कानूनी प्रावधान मौजूद नहीं है।
जो करार विधिताः प्रवर्तनीय हो संविदा है। बहुत छोटे में संविदा की यहां पर परिभाषा बताई गयी है। जहां स्पष्ट यह कह दिया गया है कोई भी करार जो विधि द्वारा प्रवर्तनीय यानी जिसे न्यायालय में जाकर लागू कराया जा सकता हो, ऐसा करार संविदा होता है।
जबरदस्ती और अनुचित प्रभाव दो ऐसे शब्द हैं, जिनका अर्थ तो एक सा ही है लेकिन इनमें से एक अपराध की श्रेणी में आता है
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के तहत 'जबरदस्ती' दंडनीय क्यों है और 'अनुचित प्रभाव' अपराध क्यों नहीं है, समझें अंतर
व्यापार में हो रहे अपग्रेडेशन के साथ, दस्तावेजों के निष्पादन (Execution) का तरीका भी विकसित हुआ है. बाध्यकारी दस्तावेजों को निष्पादित करने के सुविधाजनक और पारदर्शी तरीकों का सहारा लेने की आवश्यकता थी और इस प्रकार, ई-अनुबंधों और ई-हस्ताक्षरों का इस्तेमाल अधिक होने लगा.
'प्रतिफल, अनुबंध का एक अनिवार्य तत्व है ' जिसे अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2(d) के तहत परिभाषित किया गया है. बिना प्रतिफल के अनुबंध वैध नहीं होता, परन्तु इस अधिनियम के धारा 25 के तहत इसके कुछ अपवाद भी है.
यदि कोई व्यक्ति एक अनुबंध/समझौते के सन्दर्भ में, किसी अन्य व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के इरादे से, भारतीय दंड संहिता द्वारा निषिद्ध किसी भी कार्य को करता है या करने की धमकी देता है, या किसी भी संपत्ति को गैरकानूनी हिरासत में रखता है, या हिरासत में लेने की धमकी देता है, तो ऐसी सहमति को उत्पीड़न से प्राप्त की गई सहमति कहा जाता है.
एक भागीदारी, अनुबंध से ही उत्पन्न होती है, और इसलिए, ऐसा अनुबंध न केवल उस संबंध में भागीदारी अधिनियम के प्रावधानों द्वारा शासित होता है, बल्कि ऐसे मामलों में अनुबंध से संबंधित सामान्य कानून भी लागू होता है, जब भागीदारी अधिनियम विशेष रूप से कोई प्रावधान नहीं करता है.
हालांकि एक नाबालिग द्वारा किया गया करार, शून्य (Void) अवश्य है, लेकिन ऐसा करार अवैध (Illegal) नहीं है, क्योंकि इसको लेकर कोई कानूनी प्रावधान मौजूद नहीं है।
जो करार विधिताः प्रवर्तनीय हो संविदा है। बहुत छोटे में संविदा की यहां पर परिभाषा बताई गयी है। जहां स्पष्ट यह कह दिया गया है कोई भी करार जो विधि द्वारा प्रवर्तनीय यानी जिसे न्यायालय में जाकर लागू कराया जा सकता हो, ऐसा करार संविदा होता है।
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के तहत 'जबरदस्ती' दंडनीय क्यों है और 'अनुचित प्रभाव' अपराध क्यों नहीं है, समझें अंतर
व्यापार में हो रहे अपग्रेडेशन के साथ, दस्तावेजों के निष्पादन (Execution) का तरीका भी विकसित हुआ है. बाध्यकारी दस्तावेजों को निष्पादित करने के सुविधाजनक और पारदर्शी तरीकों का सहारा लेने की आवश्यकता थी और इस प्रकार, ई-अनुबंधों और ई-हस्ताक्षरों का इस्तेमाल अधिक होने लगा.
'प्रतिफल, अनुबंध का एक अनिवार्य तत्व है ' जिसे अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2(d) के तहत परिभाषित किया गया है. बिना प्रतिफल के अनुबंध वैध नहीं होता, परन्तु इस अधिनियम के धारा 25 के तहत इसके कुछ अपवाद भी है.
यदि कोई व्यक्ति एक अनुबंध/समझौते के सन्दर्भ में, किसी अन्य व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के इरादे से, भारतीय दंड संहिता द्वारा निषिद्ध किसी भी कार्य को करता है या करने की धमकी देता है, या किसी भी संपत्ति को गैरकानूनी हिरासत में रखता है, या हिरासत में लेने की धमकी देता है, तो ऐसी सहमति को उत्पीड़न से प्राप्त की गई सहमति कहा जाता है.
एक भागीदारी, अनुबंध से ही उत्पन्न होती है, और इसलिए, ऐसा अनुबंध न केवल उस संबंध में भागीदारी अधिनियम के प्रावधानों द्वारा शासित होता है, बल्कि ऐसे मामलों में अनुबंध से संबंधित सामान्य कानून भी लागू होता है, जब भागीदारी अधिनियम विशेष रूप से कोई प्रावधान नहीं करता है.