जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए अपना फैसला रिजर्व रखा है. सुप्रीम कोर्ट जल्द ही इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी. इस याचिका में जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में इन हाउस कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य घोषित करने के साथ उन्हें पद से हटाने की पूर्व CJI संजीव खन्ना की सिफारिश को चुनौती दी है. इस मांग को लेकर जस्टिस यशवंत वर्मा की ओर से पेश हुए सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्होंने तथ्यों की पड़ताल के लिए इन हाउस जांच की प्रकिया को चुनौती नहीं दी है, उनकी आपत्ति सिर्फ बात को लेकर है कि इस प्रकिया के जरिए किसी जज को हटाने की कार्रवाई शुरू नहीं हो सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन CJI संजीव खन्ना की जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश का बचाव किया. सुनवाई कर रहे पीठ में शामिल जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि CJI कोई पोस्ट ऑफिस नहीं है. CJI की राष्ट्र के प्रति भी जिम्मेदारी बनती है. अगर CJI के पास ऐसा मटेरियल उपलब्ध है, जिनके आधार पर उन्हें जज का कदाचार( misconduct) लगता है तो वो निश्चित तौर पर PM और राष्ट्रपति को सिफारिश भेज सकते है. जस्टिस दीपांकर दत्ता ने आगे कहा कि इन हाउस जांच प्रकिया के तहत CJI को अधिकार है कि वो किसी जज के खिलाफ आरोपों पर अपने स्तर पर विचार कर सकते है. CJI कोई पोस्ट ऑफिस नहीं है कि वो सिर्फ पीएम और राष्ट्रपति को सूचना ही आगे बढ़ाए. न्यायपालिका के चीफ होने के नाते राष्ट्र के प्रति भी उनकी जिम्मेदारी है.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा से कुछ अहम सवाल पूछे;
जस्टिस दत्ता ने फिर सवाल किया कि अगर इन हाउस जांच प्रकिया से जस्टिस वर्मा को एतराज है तो फिर उन्हें इस प्रकिया में शामिल होना ही नहीं चाहिए था. आप कमेटी के सामने पेश क्यों हुए? आपको तभी SC में इसे चुनौती देनी चाहिए थी. जस्टिस दत्ता ने कहा कि अगर मान भी लिया जाए कि वीडियो को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर नहीं डाला जाना चाहिए तो भी इसका कानूनी प्रभाव क्या पड़ा है. इन हाउस कमेटी की जांच रिपोर्ट और वीडियो से संसद का फैसला प्रभावित नहीं होता!
कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया कि कमेटी ने इस बात की जांच क्यों नहीं की कि जस्टिस वर्मा के आउट हाउस में पैसा कहां से आया ? यह पैसा जस्टिस वर्मा का था या नहीं. साथ ही उन वीडियो ने दोष साबित होने से पहले ही जनता की नजर में उन्हें दोषी बना दिया. इस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि इस बात की खोज करना जांच कमेटी के कार्यक्षेत्र में नहीं था! कमेटी की जांच शुरुआती जांच थी और Cross examination करना उसका काम नहीं था.
जस्टिस वर्मा ने अपना बचाव करते हुए कहा कि अगर CJI को लगता है कि सिफारिश भेजी जानी चाहिए तो उन्होंने भेजी. वो जज का ट्रांसफर कर सकते है, जज से न्यायिक काम वापस लिया जा सकता है लेकिन CJI की सिफारिश संसद के लिए बाध्यकारी नहीं है. संसद ऐसी सूरत में अपनी मर्जी से फैसला ले सकती है.
सिब्बल ने दलील दी कि इन हाउस जांच प्रकिया में भी सिफारिश करने से पहले CJI को जस्टिस वर्मा का भी पक्ष सुनना चाहिए था. मुकुल रोहतगी ने कहा कि जस्टिस सौमित्र सेन के केस में तत्कालीन CJI ने उन्हें सुना था. इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है.
(खबर जी मीडिया एजेंसी इनपुट से है)