मध्यस्थता अर्थात दो लोगों के बीच सुलह कराने के लिए एक निष्पक्ष पार्टी द्वारा तय किया फैसला या अवॉर्ड. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ के सामने यह सवाल था कि क्या अदालतें मध्यस्थता द्वारा तय किए गए अवॉर्ड को संशोधित कर सकती है? आज पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation, 1996) के तहत अदालतें कुछ परिस्थितियों में मध्यस्थता पुरस्कारों को संशोधित कर सकती हैं. हालांकि, अदालतों को पुरस्कारों को संशोधित करने में सावधानी बरतने का निर्देश दिया गया है.
चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की विशेष शक्तियों का उपयोग पुरस्कारों में संशोधन करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन यह शक्ति संविधान की सीमाओं के भीतर बहुत सावधानी से प्रयोग की जानी चाहिए. बहुमत से इतर फैसला लिखते हुए जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि अदालतें मध्यस्थता पुरस्कारों में परिवर्तन नहीं कर सकती हैं.
बहुमत के फैसले में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जिनमें अदालतें मध्यस्थता पुरस्कारों में संशोधन करने की अपनी सीमित शक्ति का प्रयोग कर सकती हैं. इसे लेकर शीर्ष अदालत ने आर्टिकल 142 के तहत मिली शक्तियों का प्रयोग किया. संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले या उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी डिक्री या आदेश पारित करने का अधिकार देता है. यह विवेकाधीन शक्ति अदालत को सख्त कानूनी आवश्यकताओं से परे जाने और उन स्थितियों में न्याय सुनिश्चित करने की अनुमति देती है जहां मौजूदा कानून अपर्याप्त या अधूरे हो सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पुरस्कारों में अपनी सीमित शक्ति का प्रयोग करने की परिस्थितियों को स्पष्ट किया है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने तय किए पुरस्कार की merits की समीक्षा से बचते हुए मध्यस्थता के सिद्धांतों की स्थायीता और दक्षता को बनाए रखने के लिए कुछ प्रश्नों को तैयार कर सीजेआई के पास भेजा था. सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार, डेरियस खंबाटा, शेखर नपाहडे, रितिन राय, सौरभ किर्पाल और गौरव बनर्जी मौजूद रहें. सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने तर्क दिया कि अदालतों को, जो 1996 के मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत कुछ आधारों पर मध्यस्थ पुरस्कारों को रद्द करने का अधिकार है, उन्हें इसे संशोधित करने का भी अधिकार है.
दूसरी ओर, एक अन्य वकील समूह ने तर्क किया कि संशोधन शब्द, जो अधिनियम में नहीं है, उसे इस तरह नहीं पढ़ा जा सकता कि यह गैर-मौजूद शक्तियों का अनुमान लगाए. मध्यस्थता 1996 के कानून के तहत विवाद समाधान का एक वैकल्पिक तरीका है और यह न्यायालयों की भूमिका को पुरस्कारों में हस्तक्षेप करने में कम करता है. उन्होंने कहा कि अधिनियम की धारा 34 कुछ सीमित आधारों पर मध्यस्थ पुरस्कारों को रद्द करने के लिए है, जैसे प्रक्रियात्मक असमानताएं, सार्वजनिक नीति का उल्लंघन, या क्षेत्राधिकार की कमी. धारा 37 मध्यस्थता से संबंधित आदेशों के खिलाफ अपीलों को नियंत्रित करती है.अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कुछ परिस्थितियों में ही अदालत इसे संशोधित कर सकती है.