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कर्नाटक हनीट्रैप मामले की CBI जांच कराने से इंकार, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका भी की खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता बिनय कुमार सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें कर्नाटक में एक मंत्री और अन्य राजनीतिक नेताओं को कथित रूप से हनीट्रैप में फंसाने के प्रयास की जांच सीबीआई से कराने का अनुरोध किया गया था.

Honey Trapping, Supreme Court

Written by Satyam Kumar |Updated : March 26, 2025 11:01 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में एक मंत्री और अन्य राजनीतिक नेताओं को कथित रूप से मोहपाश (Honey Trap) में फंसाने का प्रयास करने के मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से कराने का अनुरोध करने वाली याचिका बुधवार को खारिज कर दी. जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता बिनय कुमार सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया.

PIL में हनीट्रैप मामले की जांच

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह भी अनुरोध किया गया था कि वह जांच की निगरानी करे या एक मॉनिटरिंग कमेटी का गठन करे, जिसका नेतृत्व एक रिटायर सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा किया जाए. याचिका में दावा गया, "मॉनिटरिंग कमेटी को उन सभी अधिकारियों/व्यक्तियों की भूमिका की जांच करनी चाहिए जो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से इस घटना से लाभान्वित हुए हैं." पिछले सप्ताह, सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना ने दावा किया था कि राज्य में 48 लोग "हनी ट्रैप" के शिकार हो चुके हैं और उनके अश्लील वीडियो प्रसारित किए गए हैं. कांग्रेस विधायक ने दावा किया कि यह सूची विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की है, जिसमें राज्य और राष्ट्रीय स्तर के नेता शामिल है.

हनीट्रैप में फंसाने का मामला

याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक राज्य विधानसभा में बहुत गंभीर और चिंताजनक आरोप लगाए गए हैं कि एक व्यक्ति, जो राज्य का मुख्यमंत्री बनने की आकांक्षा रखता है, ने कई व्यक्तियों को हनीट्रैप में फंसाने में सफलता हासिल की है, जिनमें जज भी शामिल हैं. इस आरोप को एक मंत्री द्वारा उठाया गया है, जिसने खुद को एक शिकार बताया है, जिससे आरोपों की गंभीरता को बल मिलता है. याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि सरकार के एक अन्य मंत्री ने पहले मंत्री द्वारा उठाए गए आरोपों को न केवल दोहराया है, बल्कि यह भी कहा है कि इस स्कैंडल का पैमाना और अनुपात वर्तमान में जो दिख रहा है, उससे कम से कम दस गुना अधिक है. याचिका में यह भी कहा गया है कि जजों का हनीट्रैप के माध्यम से समझौता होना न्यायिक स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर खतरा है और यह संस्थान में जनता के विश्वास को गंभीर रूप से कमजोर करता है.

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