नई दिल्ली: जब कोर्ट अपने आप किसी बात या घटना पर संज्ञान लेती है तो उसे स्वत: संज्ञान (Suo Motu Cognizance) कहते है. स्वत: संज्ञान का जिक्र CrPC की धारा 190(1)(c) में किया गया है. इस धारा में बताया गया है की पुलिस अधिकारी के अलावा किसी और से प्राप्त सूचना या स्वयं प्राप्त जानकारी से अगर कोर्ट कार्रवाई करती है तो उसे स्वत: संज्ञान कहा जाएगा.
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद 226 तहत हाई कोर्ट जन हित से जुड़े मुद्दे में स्वत: संज्ञान ले सकती है.
जब कोर्ट को पुलिस के अलावा किसी और से या खुद से कोई जानकारी मिलती है तो वह उस मामले की जांच पुलिस से करवाती है. पुलिस उस मामले की जांच करती है और दोषी को 24 घंटे के अंदर कोर्ट में पेश करती है जिसके बाद कोर्ट उस पर कानूनी कार्रवाई करती है.
जिला कोर्ट सिर्फ आपराधिक मामलों (Criminal Cases) का ही स्वत: संज्ञान करती है, क्योंकि सिवल केस में दो या दो से अधिक पक्षों में विवाद होता है जिसमें समझौता भी किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट सिवल केस में भी स्वत: संज्ञान ले सकती है अगर मामला जन हित (Public Interest) से जुड़ा है .
भारतीय अदालतों में आम तौर पर कोर्ट की अवमानना करने पर, पुराने मामलों को दुबारा खोलने के लिए और नए मामलों की जांच के लिए कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लिए जाते हैं.
कोर्ट की अवमानना - कोर्ट के नियमों का पालन ना करना, कोर्ट के आदेश का पालन ना करना, जज का अनादर यानी कि अपमान करना आदि को कोर्ट की अवमानना कहेंगे. कोर्ट आमतौर पर किसी अधिकारी द्वारा किए गए कोर्ट की अवमानना करने पर स्वत: संज्ञान लेती है.
पुराने मामलों को दोबारा खोलना - अगर किसी बंद केस में कोई नया और पर्याप्त सबूत मिलता है तो कोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर उस केस को फिर से खुलवा सकती है.
नए मामलों की जांच के लिए - पत्र, मीडिया या किसी और के माध्यम से अगर कोई जानकारी कोर्ट को मिलती है तो उस पर कोर्ट कार्रवाई कर सकती है. अगर कोर्ट को लगता है कि किसी वर्ग के लोगों के साथ अन्याय हो रहा है तो कोर्ट किसी भी सरकारी जांच एजेंसी से जांच करवा सकती है जैसे की पुलिस, सीबीआई या कोई और एजेंसी.
सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार से कहा कि Google, Yahoo, Facebook और WhatsApp जैसे कंपनियों के साथ मिलकर काम करें और ऐसी वेबसाइटें (websites) को बंद करे जो बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और बाल पोर्नोग्राफ़ी जैसे वीडियो को प्रसारित करती है .
2015 में प्रज्वला नामक एक NGO ने CJI को पत्र लिखा और एक पेन ड्राइव में दो वीडियो डालकर भेजा. उस पेन ड्राइव में सामूहिक बलात्कार का वीडियो था और पत्र में लिखा था की उन सामूहिक बलात्कार करने वाले लोगों पर कार्रवाई की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने उस पत्र को जन हित याचिका में बदल दिया और स्वत: संज्ञान लिया.