नई दिल्ली: हमारे देश में अक्सर छापेमारी से संबंधित मामले सामने आते रहते हैं. आपने सुना होगा या समाचार में देखा होगा कि छापे (Raid) के दौरान किसी के घर से करोड़ों रुपये, लाखों के गहने या किसी तरह का कोई नशीला पदार्थ बरामद हुआ है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI ) और ED (Enforcement Directorate) के द्वारा छापेमारी के दौरान जब्त सामान या कैश का क्या किया जाता है.
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act ) 1988 में हर तरह के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और अपराधियों को दंडित करने का प्रावधान है. इसी अधिनियम के तहत देश की जांच एजेंसियां (CBI, ED,NCB,ECI etc) तलाशी वारंट के जरिये छापा मार सकती हैं. यह वारंट अदालत या अधिकृत प्राधिकारी के द्वारा जारी किया जाता है.
छापेमारी किसी भी वक्त और किसी भी इमारत या जगह पर अधिकृत अधिकारियों द्वारा किया गया एक व्यापक तलाशी अभियान है. ये तभी संभव होता है, जब उनके पास किसी भी अज्ञात संपत्ति के बारे में विश्वास करने या अपराध के बारे में कुछ भी संदिग्ध होने का प्रमाण हो. अगर उन्हें छापेमारी के दौरान कोई अघोषित संपत्ति मिलती है, तो वो उसे जब्त कर लेते हैं.
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि दोनों ही एजेंसी अलग हैं और दोनों के पास अलग अलग अधिकार है. पहले जानते हैं CBI को कहीं रेड मारने के लिए किसकी इजाजत लेनी पड़ती है और क्या अधिकार है.
CBI के पास पूरे भारत में जांच का अधिकार होता है. यह आपराधिक मामलों की जांच करने वाली देश की सबसे प्रोफेशनल एजेंसी है. देश और विदेश स्तर पर होने वाले अपराधों जैसे हत्या, घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों और राष्ट्रीय हितों से संबंधित अपराधों की भारत सरकार की तरफ से जांच करती है.
सीबीआई का गठन दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत हुआ है. इस कानून की धारा 6 के मुताबिक, सीबीआई को किसी मामले की जांच करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी जरूरी है. भारत सरकार, राज्य सरकार की सहमति से किसी भी अपराधिक मामले की जांच करने कि जिम्मेदारी CBI को देती है. केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की सहमति के बिना ही इससे किसी भी मुद्दे पर जांच करा सकती है.
सीबीआई तभी किसी मामले की जांच करती है, जब हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट या केंद्र से आदेश मिलता है. अगर मामला किसी राज्य का है, तो जांच के लिए वहां की राज्य सरकार से अनुमति लेनी होती है. अगर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट सीबीआई को जांच करने का आदेश देती है, तो फिर एजेंसी को राज्य सरकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी.
प्रवर्तन निदेशालय यानी एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट जिसे आम तौर पर लोग ईडी के नाम से जानते है. सीबीआई की तरह ED भी केंद्रीय एजेंसी हैं, लेकिन CBI की तरह ED को जांच के लिए राज्य सरकार की मंजूरी की इजाजत नहीं होती है. इसका गठन 1956 में हुआ था. यह भारत में आर्थिक अपराधों के खिलाफ कार्रवाई करने का काम करती है.
ईडी को फाइनेंशियल मामलों की जांच करने के साथ साथ कुर्की और जब्त करने के अलावा गिरफ्तारी करने का भी अधिकार है. देश से फरार बिजनेस मैन मेहुल चौकसी, विजय माल्या और नीरव मोदी की प्रॉपर्टी को ईडी ने ही कुर्क किया था.
छापा मारने के लिए ED को मजिस्ट्रेट या कोर्ट से वारंट लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती है क्योंकि Prevention of Money Laundering Act यानि PMLA स्पेशल एक्ट के तहत ED के अफसर को वारंट जारी करने का हक हासिल है, लेकिन ED के पास ठोस सबूत होनी चाहिए.
ED के पास PMLA के सेक्शन 5 (1) के तहत संपत्ति को अटैच करने का अधिकार है. अदालत में संपत्ति की जब्ती साबित होने पर इस संपत्ति को PMLA के सेक्शन 9 के तहत सरकार कब्जे में ले लेती है.
मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों पर शिकंजा कसने और इसमें शामिल जायदाद को जब्त करने के लिए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग कानून बनाया गया है. इसके जरिए गैरकानूनी तरीके से बनाई गई जायदाद को जब्त करने का हक़ दिया गया है.
इसके अलावा ED मनी लॉन्ड्रिंग और फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट यानि फेमा से जुड़े मामलों को भी देखती है. मनी लॉन्ड्रिंग पर रोक लगाने के लिए PMLA साल 2005 से पूरे देश में लागू है.
जानकारी के अनुसार Raid में जब्त सामानों का पंचनामा किया जाता है. यह पंचनामा जांच एजेंसी का IO या पिर जांच अधिकारी बनाता है. इस दौरान दो स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर लिए जाते हैं. साथ ही इस पर जिस व्यक्ति का सामान जब्त होता है उसके भी हस्ताक्षर होते हैं. छापेमारी में पेपर डॉक्यूमेंट्स, कैश और अन्य कीमती सामान जैसे सोने-चांदी के गहने कुछ भी मिल सकते हैं और वह सब जो संदिग्ध लगेगा एजेंसी जब्त कर सकती है.
पंचनामे में बताया जाता है कि कुल कितने पैसे बरामद हुए हैं नोटों की कितनी गड्डियां है. अगर नोट पर किसी तरह के निशान हों या कुछ लिखा हुआ हो या लिफाफे में कुछ हो तो उसे जांच एजेंसी अपने पास जमा करती है. जिसे अदालत में सबूत के तौर पर पेश किया जाता है.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान अगर अदालत जब्ती का आदेश देती है तो पूरी संपत्ति पर सरकार कब्जा जमा सकती है. अगर यहां ED सारे साक्ष्य प्रस्तुत करने में फेल हो जाती है तो वह पूरी संपत्ति उस व्यक्ति की हो सकती है.
एजेंसी जो भी सामान या पैसे सीज करती है उसे अपने पास रखती है या फिर RBI की मदद लेती है. RBI उसे सुरक्षित रखता है. नियमों के मुताबिक, ये पैसे सरकारी खजाने में तभी भेजे जाते हैं जब कोर्ट में चल रहा वह केस खत्म हो जाए और दोष सिद्ध हो जाए.
पैसों के अलावा अन्य संपत्तियों के मामले में इन एजेंसियों को नीलामी का भी अधिकार है. केस खत्म होने और दोष सिद्ध हो जाने के बाद ये केंद्रीय एजेंसियां सोने-चांदी के गहनों, गाड़ियों, घर, फ्लैट और बंगलों जैसे अचल संपत्ति को नीलाम कर सकती हैं.
अगर इन मामलों में कोई दूसरा प्रभावित पक्ष होता है तो उसकी घाटे की पूर्ति इन्हीं पैसों से की जाती है. बाकी के बचे पैसों को केंद्रीय एजेंसियां सरकारी खजाने में जमा करवा देती हैं.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि ईडी की ओर से जब्त किए गए 1 लाख करोड़ रुपये तक की राशि को ईडी अपने पास ही रख सकती है.