प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शुक्रवार को कहा कि उसने अपने जांच अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार का उल्लंघन करते हुए किसी भी वकील को समन जारी न करें और इस संबंध में कोई भी अपवाद एजेंसी के निदेशक द्वारा अनुमोदन के बाद ही किया जा सकता है.
जांच एजेंसी का यह बयान सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को समन जारी करने के बाद उठे विवाद के मद्देनजर आया है. इस घटना की सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAOR) ने निंदा की है और साथ ही भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) से मामले का स्वत: संज्ञान लेने की मांग की है.
धन शोधन अपराधों से निपटने के लिए कार्यरत केंद्रीय एजेंसी ईडी ने एक बयान में कहा कि उसने क्षेत्रीय इकाइयों के मार्गदर्शन के लिए एक परिपत्र जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132 का उल्लंघन करते हुए किसी भी वकील को कोई समन जारी नहीं किया जाएगा.
ईडी ने कहा,
“इसके अलावा, यदि बीएसए, 2023 की धारा 132 के प्रावधान में दिए गए अपवादों के तहत कोई समन जारी करने की आवश्यकता है, तो उसे केवल ईडी के निदेशक की पूर्व स्वीकृति से ही जारी किया जाएगा.”
पेशेवर संचार पर यह धारा बताती है कि किसी भी अधिवक्ता को, अपने मुवक्किल की स्पष्ट सहमति के बिना, उसकी सेवा के दौरान उसे दी गई किसी भी सलाह या संचार का खुलासा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इस प्रावधान को आमतौर पर वकील-ग्राहक विशेषाधिकार के रूप में भी जाना जाता है.
ईडी ने कहा कि वेणुगोपाल को जारी किया गया समन एक कंपनी के स्वतंत्र निदेशक के तौर पर उनकी हैसियत से जारी किया गया था और इसे वापस ले लिया गया है. उन्हें इस बारे में सूचित कर दिया गया है. एजेंसी ने आगे कहा कि यदि सीएचआईएल के स्वतंत्र निदेशक के रूप में उनसे किसी दस्तावेज की आवश्यकता होगी तो उन्हें ईमेल के माध्यम से प्रस्तुत करने का अनुरोध किया जाएगा.
दातार के खिलाफ जारी समन के मामले में एजेंसी सूत्रों ने कहा कि उनके खिलाफ जारी समन वापस नहीं लिया गया है, बल्कि स्थगित रखा गया है तथा उन्हें ऐसा कोई नया नोटिस जारी नहीं किया जाएगा.
(खबर पीटीआई इनपुट पर आधारित है)