नई दिल्ली: भारत एक लोकतांत्रिक देश है जो भारतीय संविधान (The Constitution of India) के आधार पर चलता है। भारत के संविधान को देश का 'सर्वोच्च कानून' (Supreme Law of The Land) माना जाता है। संविधान में देश के तीन स्तंभों- विधायिका (Legislature), कार्यकारिणी (Executive) और न्यायपालिका (Judiciary) की शक्तियों और अधिकारों का उल्लेख है, देश के सभी नागरिकों के लिए उनके कर्तव्यों और अधिकारों का विवरण भी संविधान में किया गया है।
निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए संविधान में समय-समय पर बदलाव करना भी जरूरी है, और संविधान में किस तरह यह संशोधन (Amendment to the Indian Constitution) किए जाएंगे, इसकी जानकारी संविधान के अनुच्छेद 368 में दी गई है। भारत के संविधान में पहला संशोधन कब और क्यों हुआ था और एक संशोधन की प्रक्रिया क्या है, आइए विस्तार से समझते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय संविधान को साल 1950 में लागू किया गया था और इसमें पहला संशोधन अगले ही वर्ष, 1951 में किया गया था। 'संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951' (The Constitution (First Amendment) Act, 1951) को संसद में 10 मई, 1950 के दिन इंट्रोड्यूस किया गया था और उसी साल 18 जून को इसे पारित कर दिया गया था।
इस संशोधन से संविधान के अनुच्छेद 15, 19, 85, 87, 174, 176, 341, 342, 372 और 376 में बदलाव किए गए हैं; इस संशोधन अधिनियम में कुल 14 धाराएं हैं। संशोधन से आए प्रमुख बदलाव थे-
अनुच्छेद 19(6) में एक प्रतिस्थापन भी किया गया जिससे सरकार को अन्य संस्थाओं के साथ या उनके बहिष्कार के बिना व्यापार या व्यवसाय करने का अधिकार दिया गया।
इस अधिनियम की धारा 8 ने विधान सभा के सत्रों के विस्तार और विघटन से जुड़े प्रावधान को भी अनुच्छेद 174 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है; यह बिल्कुल अनुच्छेद 85 जैसा है, बस इसमें राष्ट्रपति की जगह शक्तियां अलग-अलग राज्यों के राज्यपाल को मिली हुई हैं।
पहले संशोधन अधिनियम की धारा 9 में राज्यों की विधान सभाओं के संबंध में अनुच्छेद 87 के समान परिवर्तन किये गये; संशोधित अनुच्छेद 176 में राज्यपाल द्वारा विशेष संबोधन का प्रावधान है।
संविधान के अनुच्छेद 368 में इसे संशोधित करने की प्रक्रिया दी गई है; मूल रूप से संविधान में तीन तरह से संशोधन किया जा सकता है।
पहला तरीका 'साधारण बहुमत' (Simple Majority) का है। कुछ संवैधानिक प्रावधानों को संसद के दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है; इसके लिए संसद के किसी भी सदन में एक विधेयक पेश किया जाता है। इन्हें राज्यों के कहने पर या उनके परामर्श से शुरू किया जाता है।
बता दें कि साधारण बहुमत से अनुच्छेद 11, 73 और 169 और अनुसूची V और VI को संशोधित किया जा सकता है।
दूसरा तरीका 'संसद द्वारा विशेष बहुमत' (Special Majority by Parliament) है जिससे उन प्रावधानों को संशोधित किया जाता है जिनका संशोधन साधारण बहुमत से नहीं हो सकता है। इसके लिए इसके लिए संसद के किसी भी सदन में एक विधेयक पेश किया जाता है, संसद के प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से और सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से विधेयक पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत किया जाता है। विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ही संशोधन प्रक्रिया पूरी की जाती है।
'कुल राज्यों में से आधे के अनुसमर्थन के साथ संसद का विशेष बहुमत' (Special Majority of Parliament with the Ratification by half of the Total States) संशोधन का तीसरा तरीका है। कुछ संवैधानिक प्रावधानों के मामले में दोनों सदनों के सदस्यों के वोट के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों की सहमति प्राप्त करना आवश्यक है। इसे अनुसमर्थन कहा जाता है, और यह विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किये जाने से पहले किया जाना होता है।
इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करके संविधान के अनुच्छेद 54-55, 73, 162, 124 से 147, 214 से 231, 241, 245-255 और 368, सातवीं अनुसूची की लिस्ट I, II और III और चौथी अनुसूची को संशोधित किया जा सकता है।