नई दिल्ली: देश में सभी के पास न्याय पाने का अधिकार है और जो कोई भी अदालत का दरवाजा खटखटाता है, वो अपना पक्ष और अपनी परेशानियां न्यायाधीश के सामने क वकील के माध्यम से रखता है। देश में मूल रूप से दो प्रकार के अधिवक्ता माने गए हैं जिनमें एक श्रेणी तो साधारण अधिवक्ताओं की है और दूसरी श्रेणी 'वरिष्ठ अधिवक्ता' (Senior Advocate) की है।
एक सीनियर ऐडवोकेट कौन होता है, एक अधिवक्ता 'सीनियर ऐडवोकेट' कैसे बनता है और उन्हें क्या विशेषाधिकार दिए जाते हैं, आइए जानते हैं...
Senior Advocate की प्रक्रिया पर फिर से विचार करें Supreme Court -केन्द्र
अधिवक्ताओं को केवल उनके केसो की संख्या में पेशी से नहीं आंका जाना चाहिए: SC
'अधिवक्ता अधिनियम, 1961' (The Advocates Act, 1961) की धारा 16 में 'सीनियर ऐडवोकेट' उर्फ वरिष्ठ अधिवक्ता का उल्लेख किया गया है। इस धारा के तहत एक अधिवक्ता अपनी मंजूरी के बाद 'वरिष्ठ अधिवक्ता' तब बनता है जब उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) या किसी उच्च न्यायालय (High Court) को ऐसा लगे कि वो इस पद के हकदार हैं। अधिवक्ता की क्षमता, बार में उनकी स्टैंडिंग, उनका खास ज्ञान या फिर कानून में उनका अनुभव- इनके आधार पर एक 'वरिष्ठ अधिवक्ता' का चुनाव होता है।
'MS Indira Jaising Vs Supreme Court of India' मामले के आधार पर उच्चतम न्यायालय ने 'वरिष्ठ अधिवक्ता' चुने जाने की प्रथा को अपहोल्ड किया लेकिन साथ में यह भी कहा कि चुनाव की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए।
नई प्रक्रिया के तहत हर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में एक 'स्थायी समिति' (Permanent Committee) होनी चाहिए जिसमें मुख्य न्यायाधीश, दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, ऐडवोकेट जनरल (उच्च न्यायालय में), अटॉर्नी जनरल (उच्चतम न्यायालय में) और बार के एक प्रख्यात सदस्य शामिल होंगे।
एक अधिवक्ता खुद सीनियर ऐडवोकेट बनने के लिए अपनी एप्लिकेशन इस समिति को भेजते हैं जिसका समिति के सचिवालय द्वारा निरीक्षण किया जाता है। निरीक्षण के बाद समिति को रिपोर्ट भेजी जाती है जिसके बाद अधिवक्ता के अनुभव, उनके मामलों में आए फैसलों, पिछले पांच साल में उनके केसेज में महत्वपूर्ण फैसलों, उनके प्रकाशनों और उनके व्यक्तित्व और उपयुक्तता के आधार पर, इंटरव्यू के बाद समिति अपने हिसाब से 'सीनियर ऐडवोकेट' को चुनती है।
जिन याचिकाओं को मंजूरी नहीं मिलती है, उनको दो साल का इंतजार करना होता है जिसके बाद दोबारा आवेदन किया जा सकता है। जिस दिन एक अधिवक्ता का बतौर 'सीनियर ऐडवोकेट' अपॉइन्टमेंट होता है, उसके अगले दिन से ही वो कोर्ट में इस पद पर काम करना शुरू कर सकते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक वरिष्ठ अधिवक्ता की फीस एक साधारण अधिवक्ता से काफी ज्यादा होती है; जहां एक वकील को केस के लिए फीस मिलती है, एक सीनियर ऐडवोकेट मामले की हर सुनवाई के लिए पैसे चार्ज करते हैं।
एक वरिष्ठ अधिवक्ता किसी भी अदालत में डायरेक्टली अपीयर नहीं हो सकते हैं, उन्हें एक दूसरे वकील द्वारा एंगेज किया जाता है। सीनियर ऐडवोकेट की यूनिफॉर्म भी एक नॉर्मल ऐडवोकेट से अलग होती है; उन्हें अलग तरह के गाउन दिए जाते हैं।
एक सीनियर ऐडवोकेट को अगर किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है तो सेवानिवृत्ति के बाद वो अपने राज्य के अलावा किसी भी अन्य राज्य में बतौर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रैक्टिस कर सकते हैं। बता दें कि यदि कोई सुप्रीम कोर्ट में सीनियर ऐडवोकेट है और फिर उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया जाता है, तो रिटायरमेंट के बाद वो प्रैक्टिस नहीं कर सकते हैं; उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रैक्टिस नहीं कर सकते हैं।