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गर्भवती महिला को कार्यस्थल पर Maternity Benefits Act के तहत क्या लाभ मिलते हैं - जानिए

एक महिला को इस अधिनियम के तहत अधिकतम 26 हफ्तों के लिए प्रसूति प्रसुविधाएं मिलती हैं जिनमें ड्यूडेट से पहले के आठ हफ्ते शामिल नहीं हैं. यह नियम 2017 में अधिनियम की धारा 5(3) में हुए संशोधन के तहत आया था।

Maternity Benefits Act 1961

Written by Ananya Srivastava |Updated : August 7, 2023 1:05 PM IST

नई दिल्ली: भारत देश में ऐसे कई कानून हैं जो महिलाओं को ध्यान में रखकर, उन्हीं की सुविधाओं और सुरक्षा हेतु बनाए गए हैं। इन कानूनों में गर्भवती महिलाओं के लिए भी एक कानून शामिल है जो उनके लिए कार्यस्थल पर कुछ फायदों को सुनिश्चित करता है। यह कानून 'प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961' है।

'प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम' (The Maternity Benefits Act) केंद्र सरकार द्वारा देश की स्वतंत्रता के लगभग 14 चौदह साल बाद ही पारित कर दिया गया था और इसके प्रावधानों को उस समय के प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय मानकों का ध्यान रखते हुए तैयार किया गया था। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान क्या हैं और इसके तहत महिलाओं को क्या सुविधाएं मिलती हैं, आइए जानते हैं.

क्या है 'प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961'?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम के माध्यम से देश की महिलाओं हेतु प्रसूति प्रसुविधाओं को नियंत्रित किया जाता है. इसमें गर्भावस्था, प्रसव और इससे जुड़ी जटिलताओं हेतु सशर्त लाभ शामिल हैं और यह उन सभी संस्थानों पर लागू होता है जिनमें दस या दस से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं।

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इस अधिनियम के तहत अगर एक महिला ने एक संस्थान में कम से कम 80 दिनों के लिए काम किया है, तो उनका इस Act के तहत प्रसूति प्रसुविधाओं पर अधिकार है।

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने साल 2000 के मामले 'दिल्ली नगर निगम बनाम महिला कर्मचारी (मस्टर रोल)' (Municipal Corporation of Delhi Vs Female Workers (Muster Roll)) में यह अब्ज़र्व किया था कि "प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 का उद्देश्य एक कामकाजी महिला को सम्मानजनक तरीके से सभी सुविधाएं प्रदान करना है, ताकि वह प्रसवपूर्व या प्रसवोत्तर अवधि के दौरान जबरन अनुपस्थिति के लिए पीड़ित होने के डर के बिना, सम्मानपूर्वक और शांतिपूर्ण तरीके से मातृत्व की स्थिति को पार कर सके।"

Act के प्रमुख प्रावधान

प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 की धारा 5 में प्रसूति प्रसुविधाओं के पेमेंट से जुड़े अधिकारों के बारे में बताया गया है-

  • धारा 7 में तब के लिए प्रसूति सुविधाओं के पेमेंट की बात की गई है अगर उस महिला का देहांत हो जाता है
  • धारा 8 में मेडिकल बोनस का उल्लेख है
  • धारा 9 में मिस्कैरिज के समय पर छुट्टी के प्रावधान दिए गए हैं
  • धारा 10 में गर्भावस्था, डिलीवरी, प्रीमैच्योर डिलीवरी, मिस्कैरिज, अबॉर्शन और ट्यूबेक्टमी ऑपरेशन से बीमारी में छुट्टियों की बात कही गई है,
  • अधिनियम की ग्यारहवीं धारा में नर्सिंग ब्रेकस के बारे में बताया गया है
  • धारा 12 में प्रेग्नेंसी में गैर-मौजूदगी के दौरान डिस्मिसल के बारे में बात की गई है ,और
  • धारा 18 में प्रसूति प्रसुविधाओं के जब्त होने से जुड़े प्रावधान हैं।

इस अधिनियम को 2017 में संशोधित किया गया था और धारा 5 में एक नया खंड जोड़ा गया था; इस अधिनियम की धारा 5(5) के तहत नियोक्ता एक नर्सिंग मदर को आपसी सहमति से वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दे सकता है, ऐसा तब होगा अगर काम घर से किया जा सकता है। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों पर एक नजर डालते हैं.

  • छुट्टी की अवधि (Duration of Leave): इस अधिनियम के तहत महिला को बाढ़ हफ्तों की मटर्निटी लीव की सुविधा मिलती है; ध्यान रहे कि ड्यूडेट से पहले की अवधि छह हफ्तों से ज्यादा की नहीं होनी चाहिए।
  • नौकरी संरक्षण (Protection of Job): प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम के अनुसार अगर एक नियोक्ता महिला को तब नौकरी से निकालता है जब वो गर्भावस्था की वजह से काम पर नहीं या रही हैं, तो इसे गैर-कानूनी माना जाएगा। बता दें कि अगर किसी गंभीर गलती के तहत उस महिला को काम से निकाला जा रहा होगा तो इसकी सूचना नियोक्ता को महिला को लिखित रूप में देनी होगी।
  • छुट्टी के दौरान पारिश्रमिक (Remuneration during Leave): जो महिलाएं इस अधिनियम में दी गई मटर्निटी लीव के प्रावधान का पालन करती हैं, वो उन दिनों के लिए औसत दैनिक वेतन के दर पर प्रसूति प्रसुविधाएं की हकदार हैं जब वो काम के लिए ऑफिस में उपस्थित नहीं हो सकती हैं।
  • वित्तीय लाभ (Financial Benefits): कानून के तहत यदि कोई प्रसव-पूर्व कारावास (Pre-Natal Confinement) और कोई पेड प्रसवोत्तर देखभाल (Postpartum Care) नहीं है, तो नियोक्ता से महिला को मेडिकल बोनस दिया जाएगा; जिसकी महिला को अलग से कोई कीमत नहीं चुकानी होगी। नियोक्ता महिला की मृत्यु की स्थिति में उसके नामित व्यक्ति या कानूनी प्रतिनिधि को मातृत्व लाभ सहित सभी ऋणों का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है।

प्रसूति प्रसुविधाओं की अवधि

एक महिला को इस अधिनियम के तहत अधिकतम 26 हफ्तों के लिए प्रसूति प्रसुविधाएं मिलती हैं जिनमें ड्यूडेट से पहले के आठ हफ्ते शामिल नहीं हैं. यह नियम 2017 में अधिनियम की धारा 5(3) में हुए संशोधन के तहत आया था।

अगर किसी महिला का इस दौरान देहांत हो जाता है तो पसूति प्रसुविधाएं सिर्फ तब के लिए दी जाएंगी जिनमें वो बीमार थीं और जिस दिन उनका देहांत हुआ।

प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम की धारा 5(4) के तहत अगर एक महिला एक ऐसे बच्चे को गोद लेती है जिसकी उम्र तीन महीने से भी कम है तो उसे उस दिन से 12 हफ्तों के लिए मटर्निटी बेनेफिट्स मिलेंगे जिस दिन मां को बच्चा दिया जाएगा।