नई दिल्ली: भारत देश में ऐसे कई कानून हैं जो महिलाओं को ध्यान में रखकर, उन्हीं की सुविधाओं और सुरक्षा हेतु बनाए गए हैं। इन कानूनों में गर्भवती महिलाओं के लिए भी एक कानून शामिल है जो उनके लिए कार्यस्थल पर कुछ फायदों को सुनिश्चित करता है। यह कानून 'प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961' है।
'प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम' (The Maternity Benefits Act) केंद्र सरकार द्वारा देश की स्वतंत्रता के लगभग 14 चौदह साल बाद ही पारित कर दिया गया था और इसके प्रावधानों को उस समय के प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय मानकों का ध्यान रखते हुए तैयार किया गया था। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान क्या हैं और इसके तहत महिलाओं को क्या सुविधाएं मिलती हैं, आइए जानते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम के माध्यम से देश की महिलाओं हेतु प्रसूति प्रसुविधाओं को नियंत्रित किया जाता है. इसमें गर्भावस्था, प्रसव और इससे जुड़ी जटिलताओं हेतु सशर्त लाभ शामिल हैं और यह उन सभी संस्थानों पर लागू होता है जिनमें दस या दस से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं।
इस अधिनियम के तहत अगर एक महिला ने एक संस्थान में कम से कम 80 दिनों के लिए काम किया है, तो उनका इस Act के तहत प्रसूति प्रसुविधाओं पर अधिकार है।
उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने साल 2000 के मामले 'दिल्ली नगर निगम बनाम महिला कर्मचारी (मस्टर रोल)' (Municipal Corporation of Delhi Vs Female Workers (Muster Roll)) में यह अब्ज़र्व किया था कि "प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 का उद्देश्य एक कामकाजी महिला को सम्मानजनक तरीके से सभी सुविधाएं प्रदान करना है, ताकि वह प्रसवपूर्व या प्रसवोत्तर अवधि के दौरान जबरन अनुपस्थिति के लिए पीड़ित होने के डर के बिना, सम्मानपूर्वक और शांतिपूर्ण तरीके से मातृत्व की स्थिति को पार कर सके।"
प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 की धारा 5 में प्रसूति प्रसुविधाओं के पेमेंट से जुड़े अधिकारों के बारे में बताया गया है-
इस अधिनियम को 2017 में संशोधित किया गया था और धारा 5 में एक नया खंड जोड़ा गया था; इस अधिनियम की धारा 5(5) के तहत नियोक्ता एक नर्सिंग मदर को आपसी सहमति से वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दे सकता है, ऐसा तब होगा अगर काम घर से किया जा सकता है। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों पर एक नजर डालते हैं.
एक महिला को इस अधिनियम के तहत अधिकतम 26 हफ्तों के लिए प्रसूति प्रसुविधाएं मिलती हैं जिनमें ड्यूडेट से पहले के आठ हफ्ते शामिल नहीं हैं. यह नियम 2017 में अधिनियम की धारा 5(3) में हुए संशोधन के तहत आया था।
अगर किसी महिला का इस दौरान देहांत हो जाता है तो पसूति प्रसुविधाएं सिर्फ तब के लिए दी जाएंगी जिनमें वो बीमार थीं और जिस दिन उनका देहांत हुआ।
प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम की धारा 5(4) के तहत अगर एक महिला एक ऐसे बच्चे को गोद लेती है जिसकी उम्र तीन महीने से भी कम है तो उसे उस दिन से 12 हफ्तों के लिए मटर्निटी बेनेफिट्स मिलेंगे जिस दिन मां को बच्चा दिया जाएगा।