नई दिल्ली: भारत के संविधान में देश के नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों, दोनों का उल्लेख किया गया है। इन कर्तव्यों का पालन न करने पर या फिर किसी तरह का अपराध करने की कानून के तहत सजा निर्धारित की गई है जिसमें 'आजीवन कारावास' (Life Imprisonment) भी शामिल है। जैसा इसका नाम है, आजीवन कारावास के तहत दोषी को उसके शेष जीवन के लिए जेल में डाल दिया जाता है।
आजीवन कारावास को लेकर देश में कानूनी प्रावधान क्या हैं और इसके संदर्भ में 'रेमिशन' (Remission) का इस्तेमाल कब और क्यों किया जाता है, आइए जानते हैं.
भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860) में ऐसी कई धराएं हैं जिनमें अपराधों के लिए दोषी को 'आजीवन कारावास' की सजा सुनाई जाती है; इस सजा को 1955 में हुए एक संशोधन के माध्यम से संहिता में शामिल किया गया था और इसने 'ट्रांसपोर्टेशन इम्प्रिजनमेंट' (Transportation Imprisonment) को प्रतिस्थापित किया था।
'भागीरथ और अन्य बनाम दिल्ली प्रशासन, 1985' (Bhagirath and Ors. v Delhi Administration 1985) मामले में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने आजीवन कारावास को 'दोषी के प्राकृतिक जीवन के संतुलन के लिए कारावास' के तौर पर परिभाषित किया था। सर्वोच्च न्यायालय का यह कहना था कि अगर किसी व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, तो उसे कम से कम 14 साल जेल में गुजारने होंगे और अधिकतम सजा जीवन भर की हो सकती है।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 433A (Section 433A of the Code of Criminal Procedure) के तहत अगर एक व्यक्ति को किसी ऐसे अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है जिसकी एक सजा मृत्युदंड भी है या फिर जिसके मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया है, उसे तब तक जेल से नहीं रिहा किया जाएगा, जब तक उसने कम से कम चौदह साल न पूरे किये हों।
सबसे पहले आइए समझते हैं कि 'रेमिशन' होता क्या है। रेमिशन यानी छूट, यह वो छूट है जो एक दोषी को उसके कारावास की अवधि के खत्म होने से पहले मिलती है, जिससे उसकी सजा की अवधि कम या खत्म की जा सके। 'रेमिशन' का कॉन्सेप्ट 'कारागार अधिनियम, 1894' (Prisons Act, 1894) के अंतर्गत इंट्रोड्यूस किया गया था। इस अधिनियम के तहत सिर्फ राज्य सरकार रेमिशन देने के लिए नियमों को तैयार कर सकते हैं; केंद्र सरकार सिर्फ दिशानिर्देश जारी कर सकती है जो बाध्य नहीं होंगे।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 (Article 72 of The Constitution of India) में देश के राष्ट्रपति के पास यह शक्ति है कि वो केंद्र सरकार के अधिकार एशेतर में होने वाले अपराधों के दोषी की जेल की सजा को रेमिट यानी कम या खत्म कर सकते हैं।
एक राज्य के राज्यपाल के पास संविधान के अनुच्छेद 161 (Article 161 of The Indian Constitution) के तहत रेमिशन देने का अधिकार है। बता दें कि इस अनुच्छेद के तहत राज्यपाल उस मामले में रेमिशन नहीं दे सकते हैं जिनमें मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया हो।
सीआरपीसी की धारा 432, 433, 434 और 435 (Section 432, 433, 434 and 435 of Code of Criminal Procedure) के तहत सरकर के पास यह अधिकार है कि वो जेल की सजा काट रहे एक दोषी की सजा को कम या खत्म कर सकते हैं; इसके लिए राय सरकार अपने-अपने दिशानिर्देश तैयार कर सकते हैं और दोषी की रेमिशन एप्लिकेशन को सुनने के लिए एक खास बोर्ड का गठन कर सकते हैं।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 432 के तहत राज्य सरकार रेमिशन पर फैसला लेने से पहले ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश का मत ले सकती है और इस संहिता की धारा 435 के अनुसार राज्य सरकार को तब केंद्र सरकार से कन्सल्ट करना होता है जब अभियोजन एजेंसी केंद्र सरकार के अधीन आती हो।
बता दें कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता के हिसाब से आजीवन कारावास की सजा में रेमिशन राज्य सरकार द्वारा तभी दिया जा सकता है जब दोषी ने कम से कम जेल में 14 साल पूरे कर लिए हों। आमतौर पर आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषियों को 14 साल बाद सरकार द्वारा रेमिशन मिल जाती है और इसलिए कई लोगों को ऐसा लगता है कि आजीवन कारावास सिर्फ 14 साल के लिए होता है।
कई मामलों में अदालत आजीवन कारावास का निर्देश देती है और ऐसे भी कई मामले हैं जहां कोर्ट ने बिना छूट के आजीवन कारावास (Life Imprisonment without Remission) की सजा सुनाई है। पहले किस्म के मामलों में दोषी की सजा 14 साल की होगी, 20 साल की, 30 साल की या फिर पूरे जीवन की, इसका फैसला राज्य सरकार द्वारा किया जाता है; यह दोषी की पारिवारिक परिस्थितियों, स्वास्थ्य और सजा के दौरान उनके बर्ताव पर भी निर्भर करता है।