नई दिल्ली: भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और धर्मनिरपेक्षता को संविधान की प्रस्तावना (Preamble) में भी उद्धृत किया जाता है. इसके साथ ही, संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को कई मौलिक अधिकार दिए गए हैं उनमें से नागरिकों को दिया गया अंतःकरण की स्वतंत्रता (Freedom of Conscience) और अपने धर्म का स्वतंत्रता से अभ्यास और प्रचार अत्यंत महत्वपूर्ण है.
इन्हीं अधिकारों की रक्षा करने हेतु, देश के आपराधिक कानून में कई प्रावधान बनाए गए हैं ताकि जो लोग अपने कृत्यों के जरिए किसी धर्म या किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं या पहुंचाने का प्रयास करते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सके.
इसी उद्देश्य से भारतीय दंड संहिता की धारा 297, उन लोगों को दंडित करती हैं, जो कब्रिस्तान आदि में अतिचार (Trespass) करते हैं. आइए जानते हैं इस धारा की अहम बातें.
भारतीय दंड संहिता की धारा 297 के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से, या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान करने के इरादे से, या यह जानते हुए कि किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचने की संभावना है, या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान होने की संभावना है, फिर भी वह जानबूझकर किसी भी -
यदि आरोपी व्यक्ति का दोष साबित होता हैं तो उसे एक साल की जेल या जुर्माने या दोनों की सज़ा हो सकती है.
धारा 297 का सार: किसी अन्य व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाने या धर्म का अपमान करने का इरादा या ज्ञान है, और जब उस इरादे या ज्ञान के साथ समाधि के स्थान पर अतिचार करना, मानव शव का अपमान करना, या अंतिम संस्कार समारोहों के लिए इकट्ठे हुए व्यक्तियों को परेशान करना है.
यदि अभियोजन पक्ष आरोपी के संदर्भ में उपरोक्त इरादे को साबित करने में विफल रहती है, तो आरोपी को इस धारा के तहत दंडित नहीं किया जा सकता है.
धारा 297 के अंतर्गत परिभाषित अपराध एक जमानती और संज्ञेय अपराध है. इस तरह के मामलों में अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार किया जा सकता है. इस तरह के अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है.
कोई भी व्यक्ति किसी की धार्मिक आस्था और किसी भी धर्म की किसी पवित्र वस्तु का अपमान नहीं कर सकता. अगर कोई ऐसा करता है तो भारतीय दंड संहिता में ऐसे मामलों से निपटने के लिए सख्त सज़ा के प्रावधान बनाए है.