नई दिल्ली: सोशल मीडिया का क्रेज लोगों में कितना है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसके अलग -अलग प्लैटफॉर्म पर क्या खा रहे हैं, कहां जा रहे हैं, रो रहे हैं या हंस रहें यूजर्स हर बात को साझा करते रहते हैं. इस तरह सोशल मीडिया लोगों की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया हैं. फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल आज की तारीख में शायद ही कोई होगा, जो नहीं करता होगा. दुनिया भर में इसके लाखों-करोड़ों उपयोगकर्ता हैं. जहां इसके कई फायदे हैं, वहीं इससे संबंधित कई अपराध आय दिन फल फूल रहे हैं. अपराधी इन प्लेटफार्मों का इस्तेमाल कर लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. उन्हीं अपराधों में से एक है व्हाट्सएप ब्लैकमेलिंग. आईए जानते क्या है व्हाट्सएप ब्लैकमेलिंग और अगर कभी इस तरह के अपराध में फंसते तो आपको क्या करना चाहिए.
यहां ब्लैकमेलिंग का तात्पर्य है, जब कोई व्यक्ति किसी को वित्तीय या अन्य प्रकार के लाभों के लिए धमकाता है, तो उसे ब्लैकमेल करना कहते हैं. कानूनी रूप से ब्लैकमेलिंग एक गंभीर अपराध है. वहीं
वॉट्सएप मेसेंजर या वॉट्सऐप एक प्रकार का त्वरित संदेश भेजने और प्राप्त करने वाला मोबाइल ऐप है. जिसे अमेरिकी कंपनी, फेसबुक ने खरीदा है. इसके माध्यम से लोग एक दूसरे को इमोजी के साथ-साथ टेक्सट मेसेज, ऑडियो और वीडियो कॉल के साथ- साथ पैसे भी भेज सकते हैं. आजकल वाट्सअप वीडियो कॉल करके बनाये गए वीडियो ब्लैकमेल करने का अपराध चरम पर है. कई बार लोग डर की वजह से खामोश हो जाते हैं और यही खामोशी एक बड़े अपराध को न्योता दे जाती है. इस तरह के अपराध साइबर अपराध में आते हैं. इससे बचाव के लिए कई साइबर कानून भी हैं. आइए इसे समझते हैं.
अगर आप इस तरह के साइबर ब्लैकमेल के शिकार होते हैं, तो आप इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को जरुर दें. अगर आप चाहें तो पुलिस के पास जाने से पहले, एक वकील से बात कर राय मशवरा ले सकते हैं. इससे आपको ब्लैकमेलर को ट्रैक करने में मदद मिल सकती है. इतना ही नहीं वकील आपके मामले को एक मजबूत केस बनाने में मदद कर सकता है. अधिकारियों को भी अपनी समस्या की रिपोर्ट करके ब्लैकमेलर को रोक सकते हैं. ऑफलाइन के अलावे ऑनलाइन भी अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं. अपनी पहचान छुपाकर www.cybercrime.gov.in पर अपराध की रिपोर्ट कर सकते हैं. गृह मंत्रालय ने साइबर क्राइम की रिपोर्टिंग के लिए यह वेबसाइट बनाई है. इस वेबसाइट पर शिकायत दर्ज करने के लिए पीड़ित को अपना मोबाइल नंबर और नाम देकर एक खाता बनाना होता है. पीड़ित इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन ही साइट पर मामले को ट्रैक कर सकता है. यदि पीड़ित ने घटना की ऑनलाइन रिपोर्ट www.cybercrime.gov.in पर की है, तो पीड़ित द्वारा प्रदान की गई जानकारी के आधार पर राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के संबंधित पुलिस अधिकारियों द्वारा शिकायत पर कार्रवाई की जाएगी. रिपोर्ट करते वक्त अपने पास सबूत ज़रूर रखें.अपराधी की छवियों, ईमेल या अन्य सामग्री को संभाल कर रखें क्योंकि अगर आप उन्हे हटा देंगे तो आभासी दुनिया में सबूतों को ट्रैक करना मुश्किल हो जाएगा. तस्वीरें एकत्र करने या सबूतों को प्रिंट करने पर विचार करें और उस मंच पर घटना की रिपोर्ट करें जहां यह हुई, जैसे कि सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट या ब्लॉग, जहां उत्पीड़न या अपराध हुआ है.
शिकायत कहीं भी दर्ज की जा सकती है, क्योंकि साइबर अपराध का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं होता है. एआरडीसी (अटॉर्नी रजिस्ट्रेशन एंड डिसिप्लिनरी कमीशन) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति किसी भी शहर में तीन जगहों पर जाकर किसी संदिग्ध व्यक्ति की शिकायत कर सकता है:
उन्हें विशेष रूप से साइबर अपराध पीड़ितों से निपटने के लिए बनाया गया है. वो पुलिस विभाग के आपराधिक जांच विभाग के अधिकार क्षेत्र में हैं. आप एफआईआर दर्ज कर सकते हैं. अगर आप जहां रहते हैं वहां साइबर सेल उपलब्ध नहीं है, तो स्थानीय पुलिस स्टेशन में एफ.आई.आर. दर्ज कर सकते हैं. यदि आप एफआईआर दर्ज करने में असमर्थ (एनेबल) हैं तो आप पुलिस आयुक्त से संपर्क कर सकते हैं.
यह एक गैर-लाभकारी संगठन (नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन) है. जो कानून प्रवर्तन (लॉ इनफॉर्मेंट) से निपटने में इंटरनेट दुरुपयोग के शिकार लोगों की सहायता करता है. जांच में तेजी लाने के लिए, आयोग के पास मौके की जांच करने, सबूत इकट्ठा करने, गवाहों से पूछताछ करने और आरोपी को बुलाने के अधिकार के साथ एक जांच समिति नियुक्त करने का भी अधिकार है.
सोशल मीडिया वेबसाइट पर भी रिपोर्टिंग करने का विकल्प होता है. 2011 के आईटी विनियमों (रेगुलेशन) द्वारा उन्हें आपत्तिजनक सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए सूचना प्राप्त करने के 36 घंटे के भीतर कार्रवाई करने की आवश्यकता होती है.