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लोगों को बिना समझे-बूझे WhatsApp मैसेज शेयर नहीं करना चाहिए, बॉम्बे HC का निर्देश

बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लोगों को हर व्हाट्सएप मैसेज को बिना समझे-बूझे शेयर करने से बचना चाहिए और लोगों हर फॉरवर्ड किए गए मैसेज को समाज में अशांति से फैलाने के लिए किया गया, ऐसा मानने से बचना चाहिए.

Written by Satyam Kumar |Updated : September 28, 2024 5:01 AM IST

समाज में सोशल मीडिया की पहुंच व व्हाट्सएप यूजर्स हर वर्ग और उम्र के लोग हैं. सोशल मीडिया में शेयरिंग और लोगों के बीच मैसेज शेयर करने की गति में तो तेजी आई है, साथ ही साथ लोगों को हर मैसेज फॉरवर्ड करने की आदत भी लगी है. अगर आपको भी व्हाट्सएप पर आए हर मैसेज को शेयर करने की आदत लगी है, तो आपको बॉम्बे हाईकोर्ट के ये निर्देश आपके लिए बेहद जरूरी है. इस मामले में एक व्यक्ति के ऊपर प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई गई. FIR में आरोप लगाया कि व्यक्ति ने व्हाट्सएप मैसेज समाज में अशांति फैलाने के लिए शेयर किया था. प्राथमिकी के अनुसार मैसेज में बाबासाहेब अंबेडकर को लेकर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी. ये विवाद बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष पहुंचा तो क्या हुआ. आइये जानते हैं...

व्हाट्सएप मैसेज को फॉरवर्ड करते वक्त लोग संयम बरते: HC

बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस संतोष चपलगांवकर की खंडपीठ ने FIR रद्द करने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की. पीठ ने कहा कि लोगों को हर व्हाट्सएप मैसेज को बिना समझे-बूझे शेयर करने से बचना चाहिए और लोगों हर फॉरवर्ड किए गए मैसेज को समाज में अशांति से फैलाने के लिए किया गया, ऐसा मानने से बचना चाहिए.

अदालत ने कहा, 

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"हम समझते हैं कि व्हाट्सएप मैसेंजर या ऐसे किसी ऐप और सोशल मीडिया का बहुत प्रयोग होने पर भी लोग इसे इस्तेमाल करने को लेकर तकनीकी रूप से कुशल नहीं हुए है और वे आए हर मैसेज को फॉरवर्ड कर देते हैं."

अदालत ने आगे कहा,

"ऐसी स्थितियों में लोगों को संयम दिखाने की जरूरत है, उन्हें हर व्हाट्सएप मैसेज को शेयर नहीं करना चाहिए. साथ ही हर शेयर किये गए हर मैसेज का उद्देश्य समाज या दो समूहों या दो जातियों में अशांति पैदा करना नहीं होता है."

बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए उसके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने का आदेश दिया है.

मामला क्या है?

याचिकाकर्ता ज्ञानेश्वर वकाले के ऊपर 14 अगस्त, 2018 के दिन भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना) और 153-ए (दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत प्राथमिकी कराई गई थी. प्राथमिकी का आधार याचिकाकर्ता द्वारा व्हाट्सएप मैसेज को फॉरवर्ड करना था, जिसमें बाबा अंबेडकर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी.