नई दिल्ली: भारत में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) तब अस्तित्व में आया जब भारत का संविधान (The Constitution of India) लागू किया गया। उच्चतम न्यायालय से बिल्कुल पहले देश में फेडरल कोर्ट (Federal Court of India) सेटअप किया गया था।
थोड़ा और पीछे चलते हैं और जानते हैं कि मुग़ल शासन के बाद जब भारत में अंग्रेजी शासन की शुरुआत हुई, उस समय देश की न्यायिक व्यवस्था कैसी थी? उस समय में, आपराधिक मामलों को किस तरह सुलझाया जाता था.
भारत में अंग्रेजी शासन की शुरुआत तब से मानी जाती है जब ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) की स्थापना हुई थी। इससे पहले भारत की न्यायिक व्यवस्था मुगल शासकों के अनुसार चल रही थी लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी देश में सार्वभौम हुई, तो सिविल और क्रिमिनल मामलों से निपटारे हेतु कई एक्सपेरिमेंट्स किये गए।
इन तमाम मामलों को सुलझाने के लिए अंग्रेजों ने 'हाईकोर्ट ऑफ जूडिकेचर' (High Court of Judicature), 'कोर्ट ऑफ गवर्नर एंड काउंसिल' (Court of Governor and Council) और 'आर्मिलरी एंड मेयर्स कोर्ट' (Armillary and Mayors Court) जैसे न्यायालयों की स्थापना की।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि न्यायालयों को लेकर क्रिमिनल और सिविल केसेज में अंतर तब ठीक तरह से नजर आने लगा जब आपराधिक मामलों के लिए अंग्रेजों ने अलग अदालतों को स्थापित किया।
'मुफ़स्सिल फौजदारी अदालत' (Mofussil Nizamat Adalat), जिन्हें 'फौजदारी अदालत' के नाम से भी जाना जाता है, उनकी स्थापना खास आपराधिक मामलों से डील करने के लिए की गई थी। इस अदालत की स्थापना हार जिले में की गई थी लेकिन इनके पास मृत्यदंड देने या आरोपित प्रॉपर्टी को जब्त करने की शक्ति नहीं थी। बता दें कि इन अदालतों की अध्यक्षता सिर्फ मुस्लिम न्यायिक अधिकारियों द्वारा की जाती थी
'मुफ़स्सिल फौजदारी अदालत' के साथ 'सदर निजामत अदालत' (Sadar Nizamat Adalat) की भी स्थापना की गई। यह प्रांत में स्थापित सर्वोच्च न्यायालय था जो आपराधिक मामलों में न्याय प्रदान करते थे। इन अदालतों को मूल न्यायाधिकार (Original Jurisdiction) और अपील क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction), दोनों के मामलों से डील करने का अधिकार था। इन न्यायालयों के पास मृत्युदंड और संपत्ति की जब्ती के मामलों पर निर्णय लेने का अंतिम अधिकार है।
इस तरह की अदालतों और रिफॉर्म्स को '1772 की न्यायिक योजना' (The Judicial Plan of 1772) के तहत जारी किया गया था। 1774 में, वॉरन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) के सुझावों के आधार पर इस योजना में संशोधन किये गए और कई इस्लामिक कानूनों में तबदीली की गई। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने अलग-अलग प्रांतों में उच्च न्यायालय और कलकत्ता के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of Calcutta) की स्थापना भी की।
बता दें कि 1833 में, अंग्रेजों ने 'भारतीय विधि आयोग' (Indian Law Commission) की स्थापना की गई फिर 1860 में आपराधिक कानून का 'भारतीय दंड संहिता' (Indian Penal Code) के रूप में संहिताकरण हुआ। 1833 और 1860 के बीच कंपनी ने गुलामी (Practice of Slavery) को अवैध और अनैतिक बताया और सती प्रथा (Sati System) को समाप्त कर दिया गया। 'इंडियन पीनल कोड' का सबमिशन 1837 में, Macaulay द्वारा किया गया था और इस संहिता को 1860 में मंजूरी देकर कानून के रूप में स्वीकार किया गया था।
साल 1860 में 'भारतीय दंड संहिता' को कानून के रूप में स्वीकृति मिली और फिर 1861 में 'दंड प्रक्रिया संहिता' (Code of Criminal Procedure) का संहिताकरण हुआ। बता दें कि उस समय 'दंड प्रक्रिया संहिता' सिर्फ अंग्रेजों के अधिकारों और विशेषाधिकारों के संरक्षण का काम करती थी, जैसे इसके तहत सिर्फ अंग्रेजी न्यायाधीशों और मैजिस्ट्रेट्स को जूरी ट्रायल का अधिकार था।
'उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861' (The High Courts Act, 1861) और 'भारतीय परिषद अधिनियम, 1861' (The Indian Council Act, 1861) के लागू होने के बाद कलकत्ता (Calcutta), बंबई (Bombay) और मद्रास (Madras) में उच्च न्यायालयों की स्थापना हुई और फिर जब 'भारत सरकार अधिनियम, 1935' (The Government of India Act, 1935) लागू किया गया, अंग्रेजी शासन के अंतर्गत भारत एक 'फेडरल स्ट्रक्चर' कहलाया जाने लगा, दिल्ली में फेडरल कोर्ट की स्थापना हुई। 1950 में जब संविधान लागू किया गया, तब उच्चतम न्यायालय बना।