नई दिल्ली: भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जो मूल रूप से तीन स्तंभों पर टिका है जिनमें एक न्यायपालिका (Judiciary) है। न्यायपालिका के तहत निचली अदालत, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय का अपमान नहीं किया जा सकता है, यह एक कानूनी अपराध है और इसे 'न्यायालय की अवमानना' (Contempt of Court) कहते हैं।
'न्यायालय की अवमानना' क्या है, इसके तहत कार्रवाई किसके खिलाफ की जा सकती है और क्या किसी सिटिंग जज (Sitting Judge) को इसके तहत सजा मिली है, आइए जानते हैं.
'न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971' (Contempt of Court Act, 1971) के अनुसार यदि कोई भी, किसी भी तरह से न्यायालय की गरिमा का अपमान करता है या फिर किसी अधिवक्ता या न्यायाधीश के खिलाफ अनादर प्रदर्शित करता है, उसके खिलाफ इस अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाती है। मुख्य रूप से 'कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट' दो प्रकार के होते हैं- सिविल अवमानना (Civil Contempt) और आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt)।
सिविल अवमानना का केस तब दर्ज किया जाता है जब कोई अदालत के किसी निर्णय, आदेश, रिट आदि का उल्लंघन करता है और आपराधिक अवमानना का मामला उस शख्स के खिलाफ दर्ज होता है जो मौखिक, लिखित, चित्रित आदि तरीके से न्यायालय की अवमानना करे।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 सभी के लिए सामान्य है। इसके तहत हर उस शख्स को सजा दी जाएगी जो न्यायालय की अवमानना करता है; फिर वो चाहे कोई आम इंसान हो या फिर खुद कोई अधिवक्ता या न्यायाधीश।
अगर कोई अधिवक्ता या न्यायाधीश अदालत की अवमानना करते हैं तो उनके खिलाफ भी 'कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट' के मामले दर्ज किये जा सकते हैं; यह अधिनियम सिटिंग जज यानी वो न्यायाधीश जो किसी कोर्ट में नियुक्त है, उसपर भी लागू होता है।
सिटिंग जज के खिलाफ 'कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट' की कार्रवाई का भारत में एक बहुत बड़ा उदाहरण है। यह उदाहरण मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) के न्यायाधीश सी एस कर्णन (Justice CS Karnan) का है। 'न्यायालय की अवमानना' के मामले में जस्टिस कर्णन को उच्चतम न्यायालय ने छह महीने की जेल की सजा सुनाई थी।
वो कौन से विवाद थे जो जस्टिस सी एस कर्णन के नाम से जुड़े हैं और जिनके चलते आगे चलकर उन्हें सलाखों के पीछे जाना पड़ा-
इसी के चलते उस समय के मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजेश कुमार अग्रवाल (Justice Rajesh Kumar Agrawal) ने देश के मुख्य न्यायाधीश पी सथासिवम (Justice P Sathasivam) से अनुरोध किया कि वो जस्टिस कर्णन का स्थानांतरण कर दें।
जस्टिस कर्णन के इस फैसले के बाद 9 मई, 2017 को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) के तब के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली सात सदस्यों की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के जज को 'अदालत, न्यायपालिका और न्यायिक प्रक्रिया की अत्यंत गंभीर प्रकृति की अवमानना' करने पर 'कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट' के तहत दोषी ठहराया और उनको छह महीने की जेल की सजा सुनाई।
12 जून, 2017 को जस्टिस सी एस कर्णन रिटायर हुए जिसके एक हफ्ते बाद, कोलकाता पुलिस ने उन्हें 21 जून, 2017 को कोयम्बटूर से गिरफ्तार किया जहां न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक वो तीन दिन से छुपे हुए थे। 20 दिसंबर, 2017 को, अपने छह महीने की सजा काटने के बाद वो जेल से रिहा हो गए थे।
आपको जानकर हैरानी होगी कि 2009 में, मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश असोक कुमार गांगुली ने ही कॉलेजियम को हाईकोर्ट जज के लिए जस्टिस कर्णन के नाम की अनुशंसा की थी। कॉलेजियम इनके काम को लेकर बहुत खुश नहीं था लेकिन फिर भी तब के देश के मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन ने उनकी नियुक्ति को अप्रूव कर दिया था।
बाद में एक न्यूज पोर्टल से बात करते समय जस्टिस गांगुली ने यह बताया था कि जस्टिस कर्णन एक ऐसे समुदाय से थे जिसका जजों की सूची में प्रतिनिधित्व होना चाहिए और इसलिए ही उन्हें नियुक्त किया गया था।
जस्टिस गांगुली ने फिर यह भी कहा कि यह सब देखने के बाद उन्हें और उस समय के कॉलेजियम के बाकी सदस्यों को अपने फैसले पर पछतावा भी हुआ था।