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Dowry Case में नाम होने से किसी व्यक्ति को 'सरकारी नौकरी' देने मना नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि समाज में मौजूद सामाजिक स्थितियों को देखते हुए जहां महिलाएं अपने ससुराल में क्रूरता की शिकार बन जाती हैं, यह भी समान रूप से सत्य है कि क्रूरता के आरोप में पति के पूरे परिवार को अदालत में घसीटा जाता है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट

Written by My Lord Team |Published : November 26, 2024 11:59 AM IST

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने फैसला सुनाया है कि किसी अभ्यर्थी को सरकारी पद (Government Job) पर नियुक्ति देने से सिर्फ इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता कि उसे दहेज के मामले (Dowry Case) में उसका नाम या उसे फंसाया गया है. याचिकाकर्ता बाबा सिंह ने तकनीशियन पद के लिए आवेदन किया था और परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के चलते उसे नौकरी देने से मना कर दिया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्य अभियंता को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश देते हुए कि दहेज मामले में फंसने से स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है.

दहेज मामलों में पति के पूरे परिवार को घसीटा जाता है!

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जस्टिस जेजे मुनीर की पीठ ने कहा कि एक आपराधिक मामले में महज फंसाया जाना उम्मीदवार को खारिज करने का आधार नहीं बन जाता. उन्होंने कहा कि इस मामले में जो व्यक्ति नियुक्ति की मांग कर रहा है, वह मुख्य आरोपी का भाई है और हो सकता है कि इस आधार पर उसका इस मामले में जोड़ा गया हो. अपीकलकर्ता की भाभी ने ससुराल के पूरे परिवार के खिलाफ दहेज का मामला दर्ज करवाया गया है, जिसके बाद समन आदेश जारी किया गया और इस आधार पर याचिकाकर्ता को नियुक्ति पत्र देने से इनकार किया गया.

अदालत ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए 16 फरवरी 2024 को मुख्य अभियंता द्वारा पारित आदेश रद्द करते हुए मुख्य अभियंता को याचिकाकर्ता के मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है.

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अदालत ने कहा,

“समाज में मौजूद सामाजिक स्थितियों को देखते हुए जहां महिलाएं अपने ससुराल में क्रूरता की शिकार बन जाती हैं, यह भी समान रूप से सत्य है कि क्रूरता के आरोप में पति के पूरे परिवार को अदालत में घसीटा जाता है.”

अदालत ने आगे कहा,

“इस तरह के मामले में क्या सरकारी परीक्षा के जरिए अपने दम पर चयनित एक ऐसे उम्मीदवार को सरकारी नौकरी से वंचित किया जाना चाहिए, जिसकी स्वच्छ छवि है और वह समाज की मुख्यधारा का हिस्सा है.”

अदालत में दलील दी गई थी कि याचिकाकर्ता द्वारा इस आपराधिक मामले को चुनौती दी गई है, जहां अदालत ने शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर इस मामले में आगे सुनवाई पर रोक लगा दी है.

क्या है मामला?

मामले में याचिकाकर्ता बाबा सिंह ने लघु सिंचाई विभाग में बोरिंग तकनीशियन पद के लिए आवेदन किया था. वह संबंधित परीक्षा में शामिल हुआ और परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद उसे दस्तावेजों के सत्यापन के लिए बुलाया गया. विभाग में पहुंचने पर उसे अधिकारियों द्वारा नियुक्ति पत्र जारी करने से इस आधार पर इनकार कर दिया गया कि उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (दहेज के लिए महिला से क्रूरता) और 323 (जानबूझकर नुकसान पहुंचाना) और दहेज निरोधक कानून की धारा 4 के तहत एक आपराधिक मामला लंबित है. इसके बाद याचिकाकर्ता ने चयन परिणाम के आधार पर नियुक्ति पर पुनर्विचार करने का प्रतिवादियों को निर्देश जारी करने का अनुरोध करते हुए एक रिट याचिका दायर की.

अदालत ने याचिका निस्तारित करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को नए सिरे से मुख्य अभियंता, लघु सिंचाई विभाग के समक्ष प्रत्यावेदन प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाए और मुख्य अभियंता कानून के मुताबिक उस पर निर्णय करें. याचिकाकर्ता ने अपना प्रत्यावेद प्रस्तुत किया जिसे मुख्य अभियंता द्वारा 16 फरवरी, 2024 को खारिज कर दिया गया था.  इससे पीड़ित याचिकाकर्ता ने मौजूदा रिट याचिका दायर की. याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि जब उसने इस पद के लिए आवेदन किया था, उसे अपने खिलाफ दायर आपराधिक मामले की जानकारी नहीं थी.

(खबर PTI इनपुट के आधार पर लिखी गई है)