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रिटायर कर्मचारियों के बच्चों को Govt. Job में प्राथमिकता देने का फैसला 'असंवैधानिक': SC

वंशानुगत नियुक्ति से जुड़े इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें चौकीदारों के पद पर वंशानुगत नियुक्तियों की अनुमति देने वाले राज्य सरकार के नियम को असंवैधानिक करार दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट, सरकारी नौकरी

Written by Satyam Kumar |Published : April 7, 2025 11:54 AM IST

हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरी की कमी को लेकर अहम टिप्पणी की है. शीर्ष अदालत ने असल स्थिति से नाराजगी जताते हुए कहा कि आजादी के 80 साल होने जा रहे हैं, फिर भी सार्वजनिक क्षेत्र में पर्याप्त रोजगार के अवसर पैदा करना एक चुनौती बना हुआ है. वंशानुगत नियुक्ति से जुड़े इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें चौकीदारों के पद पर वंशानुगत नियुक्तियों की अनुमति देने वाले राज्य सरकार के नियम को असंवैधानिक करार दिया गया था. इस मामले में बिहार चौकीदारी कैडर (संशोधन) नियम, 2014 के नियम 5(7) के प्रावधान (ए) में सेवानिवृत्त चौकीदार को अपने आश्रित रिश्तेदार को अपनी जगह नियुक्ति के लिए नामित करने की अनुमति दी गई थी, जिसे पटना हाई कोर्ट ने इस प्रावधान को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा है. आइये जानते हैं कि इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा..

सुरेन्द्र पासवान बनाम बिहार राज्य

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की. बेंच ने कहा, हमारे संवैधानिक न्यायशास्त्र (Constitutional jurisprudence) में दो प्रस्ताव अब बहस योग्य नहीं हैं. पहला, यह है कि सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता होनी चाहिए और दूसरा यह कि कोई भी कानून, जो सभी को समान अवसर दिए बिना सार्वजनिक सेवा में प्रवेश की अनुमति देता है, अनुच्छेद 16 का उल्लंघन होगा और इसे गैरकानूनी घोषित किया जा सकता है जब तक कि एक उचित वर्गीकरण (Reasonable classification) की मौजूदगी नहीं दिखाई गई हो.

सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट ऑफ बिहार बनाम सुरेन्द्र पासवान मामले में अपने फैसले का हवाला दिया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान लागू होने से पहले बिहार में ग्राम चौकीदार की नियुक्ति व उसकी नौकरी के बनावट को लेकर अहम टिप्पणी की.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"संविधान लागू होने से पहले बिहार में ग्राम चौकीदारों की नियुक्ति आजीवन तौर पर की जाती थी. इस नियुक्ति में चौकीदारों को कोई छुट्टी या सेवानिवृत्ति नहीं मिलती थी. चौकीदार के बीमार होने या उसकी अनुपस्थिति में उसके परिवार का कोई सदस्य उसकी ड्यूटी संभालता था. मृत्यु या अशक्तता पर, आमतौर पर उसके द्वारा मनोनीत परिवार के सदस्य चौकीदारी का कार्यभार संभालते थे, हालांकि यह पद पूरी तरह से वंशानुगत नहीं था."

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी विचार किया कि क्या हाई कोर्ट को बिना किसी औपचारिक चुनौती के इस नियम को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार था?पटना हाई कोर्ट ने वंशानुगत नियम से जुड़े इस मामले को स्वत: संज्ञान में लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह स्थापित कानूनी सिद्धांत है कि किसी भी कानून (प्राथमिक विधान या अधीनस्थ विधान जैसे नियम, विनियम या आदेश) को अदालत तभी निरस्त कर सकती है जब उस कानून को सीधे चुनौती दी जाए. संवैधानिक प्रश्नों का निर्णय तब ही किया जाता है जब वे किसी मुकदमे की दलीलों में उचित रूप से उठते हैं और मामले के उचित निर्णय के लिए उनका निर्णय आवश्यक होता है. संवैधानिक प्रश्न निर्वात में नहीं तय किए जा सकते. यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि संवैधानिक प्रश्नों पर विचार केवल तभी किया जाए जब वे वास्तविक विवाद का हिस्सा हों और उनके निर्णय का मामले के निष्कर्ष पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़े.

पहले रेलवे की स्कीम रद्द

केंद्रीय रेल मंत्रालय ने सुरक्षा कर्मचारियों के लिए गारंटीकृत रोजगार के लिए उदारीकृत सक्रिय सेवानिवृत्ति योजना (Liberalised Active Retirement Scheme for Guaranteed Employment for Safety Staff) नामक एक योजना शुरू की है. इसके तहत 50 से 57 वर्ष की आयु के ड्राइवरों और गैंगमैन को 33 वर्ष की सेवा (बाद में घटाकर 20 वर्ष) पूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की अनुमति दी गई. सेवानिवृत्ति के बाद, सेवानिवृत्त कर्मचारी के उपयुक्त वार्ड को रोजगार के लिए विचार किया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को पिछले दरवाजे से प्रवेश, और संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करार दिया और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के बच्चों को नौकरी पाने की अनुमति देने वाली रेलवे योजना को रद्द कर दिया था.

प्रश्न: क्या किसी कर्मचारी के आश्रित को केवल इस आधार पर सरकारी नौकरी में तरजीह दी जा सकती है कि कर्मचारी सेवानिवृत्ति की आयु से पहले स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होना चाहता है? यदि योग्यता के आधार पर चयन कैसे किया जाता है?

उत्तर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी कर्मचारी का आश्रित रिश्तेदार केवल इस आधार पर सरकारी रोजगार में प्राथमिकता प्राप्त नहीं कर सकता कि कर्मचारी सेवानिवृत्ति की आयु से पहले स्वेच्छा से रिटायर (VRS) होना चाहता है. हालांकि, यदि आश्रित अन्यथा नियुक्ति के लिए योग्य है और अन्य उम्मीदवारों के साथ प्रतिस्पर्धा करके आवश्यक मानक प्राप्त करता है, और मेरिट सूची में ऊपर है और पर्याप्त रिक्तियां हैं, तो उसे चयन और उसके बाद की नियुक्ति के लिए विचार किए जाने का अधिकार प्राप्त होगा; हालांकि, यह तथ्य कि उसके पिता उसी नियोक्ता के मौजूदा/पूर्व कर्मचारी हैं, योग्यता के आधार पर उम्मीदवारी पर विचार करते समय कोई फर्क नहीं पड़ता.