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AIBE की अनिवार्यता से लेकर तलाक मामलों में SC को विशेष शक्तियां प्रदान करने तक... जानें देश के 51वें CJI Sanjiv Khanna के चर्चित फैसले

इस लेख में हम मनोनीत सीजेआई संजीव खन्ना से जुड़े उन मामलों के बारे में बता रहे हैं जिसमें वह सुप्रीम कोर्ट की पीठ का हिस्सा रहे या उन्होंने खुद जजमेंट लिखा.

जस्टिस संजीव खन्ना

Written by Satyam Kumar |Published : November 10, 2024 7:30 PM IST

जस्टिस संजीव खन्ना (Jusice Sanjiv Khanna) कल भारत के 51वें चीफ जस्टिस पद की शपथ लेंगे. भारत की वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  (President Draupadi Murmu) ने उन्हें  भारत के सीजेआई (CJI) पद की शपथ दिलाएंगी. सीजेआई के तौर पर जस्टिस संजीव खन्ना के नाम की सिफारिश भारत के पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (Former CJI DY Chandrachud) ने अपने उत्ताराधिकारी के तौर पर की थी, जिसे केन्द्र से सहमति मिल चुकी है. पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई वाली कॉलेजियम ने जस्टिस संजीव खन्ना को 'सुप्रीम कोर्ट जज' बनाने के लिए मनोनीत किया था, जिस पर भी केन्द्र ने सहमति जताई थी. परिणामस्वरूप जस्टिस संजीव खन्ना ने साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट जस्टिस पद की शपथ ली. अब वे भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे हैं. ऐसे में उन महत्वपूर्ण व चर्चित फैसले (Famous Judgement) के बारे में आपको बताने जा रहे है, जिसकी पीठ में मनोनीत सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना (Nominated CJI Sanjiv Khanna) शामिल रहे या वे मामले में जिसमें उन्होंने जजमेंट लिखा है. आइये जानते हैं....

1. AIBE  की अनिवार्यता बरकरार

सुप्रीम कोर्ट के सामने अहम सवाल था कि क्या वकीलों को एनरोल करने से पहले बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा ली जा रही प्री-एनरोलमेंट परीक्षा अनिवार्य है?

आसान शब्दों में कहें, तो ग्रेजुएट होने के बाद वकीलों को बार की एक परीक्षा देनी होती है, जिसे पास करने के बाद ही बार काउंसिल ऑफ इंडिया वकीलों को प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस (Certificate of Practice) देती है. 10 फरवरी 2023 के दिन, बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम बोनी एफओआई लॉ कॉलेज (Bar Council of India vs Bonnie FOI Law College) मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने  बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा आयोजित अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) आयोजित करने के अधिकार को बरकरार रखा. यह परीक्षा उन अधिवक्ताओं के लिए अनिवार्य है जो सभी अदालतों में बहस और प्रैक्टिस करना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में इस बात पर भी जोर दिया कि यह परीक्षा अधिवक्ताओं के लिए पेशेवर मानकों को बनाए रखने में मदद करेगा. जस्टिस एसके कौल ने पीठ की ओर से फैसला सुनाया. पांच जजों की इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल रहे. सु्प्रीम कोर्ट ने लॉ कॉलेज के ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर के छात्रों को AIBE परीक्षा में बैठने की इजाजत दी थी.

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बता दें कि AIBE को बार काउंसिल इंडिया ने साल 2010 में लागू किया था और उसके बाद प्रैक्टिस करने के लिए इस परीक्षा को पास करना ग्रैजुएट्स के लिएअनिवार्य (Mandatory) कर दिया था. 2010 से पहले, वकीलों को प्रैक्टिस करने के लिए लॉ की डिग्री और अपने राज्य के बार में एनरोल करवाना होता था.

2. VVPATs से शत-प्रतिशत वोटो का मिलान

एडीआर बनाम चुनाव आयोग (Association for Democratic Reforms vs Election Commission of India) मामले में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपंकर दत्ता की अगुवाई पीठ ने EVM में पड़े वोटो के VVPATs से शत-प्रतिशत मिलान करने की मांग को खारिज कर दिया था.

3. भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितो को अतिरिक्त मुआवजा देने का मामला

इसमें सुप्रीम कोर्ट को विचार करना था कि 1989 के समझौते में तय हुए भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए मुआवजा क्या पर्याप्त है?

14 मार्च 2023 के दिन, भारत संघ बनाम यूनियन कार्बाइड (Union of India v Union Carbide) मामले में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले में 1989 में यूनियन कर्बाइड के साथ हुए समझौते को बरकरार रखते हुए केन्द्र की याचिका खारिज कर दी. केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट से भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के पीड़ितो को दी जानेवाली में मुआवजा राशि बढ़ाने की मांग की थी. इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने एकमत फैसला रखा, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल रहे.

4. AMU का माइनॉरिटी स्टेटस

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि आर्टिकल 30 के तहत कब किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान की मान्यता दी जा सकती है?

सुप्रीम कोर्ट ने मानदंडों को तय किया है, वहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को दर्जा देना है या नहीं, इसके लिए इस मामले को वर्तमान पीठ ने अगले यानि मनोनीत सीजेआई संजीव खन्ना के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है. पूरा फैसला आप यहां और पूरा मामला यहां पढ़ सकते हैं.

5. तलाक मामलों में SC को मिली विशेष शक्ति

इस मामले में सु्प्रीम कोर्ट के सामने अहम सवाल था कि SC संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग कर सुप्रीम कोर्ट तलाक के मामलों की सुनवाई कर सकती है? अगर हां, तो सुप्रीम कोर्ट को किन नियमों का पालन करना होगा.

01 मई 2023 के दिन, शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन (Shilpa Sailesh vs Varun Sreenivasan) मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि सुप्रीम कोर्ट के पास भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली विवेकाधीन शक्तियों का उपयोग करते हुए, फैमिली कोर्ट ना जाकर,  सीधे उसके पास आने वाले पक्षों को तलाक देने का अधिकार है. इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल रहें.

पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने विदाई समारोह में जस्टिस संजीव खन्ना की तारीफ करते कहा था कि सुप्रीम कोर्ट उनके कुशल नेतृत्व में सुरक्षित रहेगी.